Post – 2017-07-05

मैं सोच रहा था की घिसी उपमाओं और जुमलों में भी सर्जनात्मकता पैदा हो सकती है क्या, और नतीजा यह रहा :

चाँद तो था नहीं पर उसके ही मानिंद था वह।
आसमाँ में न ज़मीं पर था वहीं पर था वह।
शर्म से छिपता हुआ दर्द से घबराया हुआ
अपने को खोने की गर्दिश में कहीं पर था वह।।

प्यार कहना है अगर इसको प्यार कह लीजे
जान पहचान न थी उसको यार कह लीजे
शर्म इकतरफा न थी दर्द आर पार भी था
खलिश में लिपटा कहीं था तो, कहाँ पर था वह ?