Post – 2017-06-17

मैं जिनकी आलोचना करता हूँ, जिनसे मेरी लड़ाई है, उन्हीं को प्यार भी करता हूँ. यह रिश्ता ‘तुम्हीं से मुहब्बत तुम्हीं से लड़ाई’ सुनने के बाद का नहीं, उससे पहले का है. मेरा नब्बे प्रतिशत लेखन राजनितिक है और दस प्रतिशत कलाभ्यास.
मेरी राजनीति अपने मोर्चे पर अपना सर्वस्व उत्सर्ग करने की राजनीति है. अपने कार्यक्षेत्र की सही समझ और उसपर दृढ़ता, ईमानदारी और निर्भीकता से कार्यरत रहने की राजनीति है.
अपने काम को पूरी निष्ठा से करने वाले एक क्रन्तिकारी काम करते हैं- अपने दम पर जितना संभव है दुनिया को सही दिशा में बदलने का काम.
दुनिया के सभी अपराधी कामचोर होते हैं. और यदि किसी दर्शन के नाम पर गो स्लो, कामबंद, चक्काजाम को हथियार बनाया जाता है तो वह दल, वह संगठन, वह दर्शन प्रतिक्रान्तिकारी है, वह मार्क्सवाद के नाम पर ही क्यों न हो.
गाना फिर याद आ गया ‘मारे गए गुलफाम उर्फ़ तीसरी कसम.’ पर कुछ बदलाव के साथ- गुलफाम की जगह नकली जनवादी. और तीन की जगह तेरह तो रखना ही पड़ेगा, वैसे जिन्हे कर्दा और बेपर्दा गुनाहों की सजा तक न मिली उनके नाकर्दा गुनाह उनकी आड़ में वे कर रहे हैं जिनकी पूँछ पकड़ कर वे खड़े हैं.
सड़ांध का इलाज है मंथन या तीव्र प्रवाह, वैचारिक जड़ता का इलाज है सवाद. संवाद स्वतः एक क्रन्तिकारी काम है. यह ठहराव से गति की और, जड़ता से प्रबुद्धता की दिशा में ले जाता है.
मार्क्स सही हैं. उनसे अधिक सही की संभावना उनके बाद समाप्त नहीं हो जाती. यही मार्क्सवाद है. जो मार्क्स ने कहा उसका पालन धर्मश्रद्धा है जो मार्क्सवाद को दर्शन से धर्म बना देता है. धर्म और अन्धविश्वास के लिए मार्क्सवाद में जगह नहीं.