Post – 2017-05-10

देववाणी (उनतीस)
फिर वही बात चांद तारों की

अब हम नए सिरे से चन्द्रमा पर विचार करें । इससे कुछ रोचक प्रश्न खड़े होते हैं । पहला तो यही कि क्या यह सही है कि यह चार शब्दों के मेल से बना है और उनमें से हर एक का मतलब चांद था? क्या एक ही आशय के कई शब्द मिल कर एक साथ उसी या उससे मिलते जुलते आशय में प्रयोग में भी आसकते हैं ?

दूसरा, क्या ये सभी शब्द मूलत: जलवाची थे?

तीसरा, क्या जब हम चन्द्रमन् कहते हैं तो तीन बार चांद कहते है और मुख्यधारा का अंग बनने वाले एक समुदाय के चांद को छोड़ देते हैं और जब चन्द्रमस् कहते हैं तो भी तीन बार चांद कहते हैं और एक समुदाय के चांद को छोड़ देते हैं?

चौथा प्रश्न यह कि जिस चरण पर भारतीय संपर्क भाषा का तथाकथित भारोपीय क्षेत्र में प्रसार हुआ, उस चरण पर इन सभी समुदायों के शब्द प्रयोग में आते थे ? यदि हां तो क्या इन सभी के चन्द्रवाची शब्दों का देशान्तर में प्रसार हुआ?

पांचवा, ऊपर, प्रश्न दो का निहितार्थ क्या है ?

छठां, चौथे प्रश्न का फलितार्थ क्या है ?

हम पहले प्रश्न को लें। इससे पहले भाषा के समाजशास्त्रीय पक्ष के सन्दर्भ में किसी अन्य अध्येता ने इस प्रश्न को उठाया है या नहीं , यह अपने सीमित ज्ञान के कारण मुझे नहीं मालूम, परन्तु इसके अनगिनत उदाहरण मिलते हैं: तमिल तण् = पानी +नीर=पानी, > तन्नी=पानी, ठंढा पानी; जल+आब =जुलाब; तर/ तल =पानी+आब =तालाब; त. तण् +आग= तड़ाग, (अभी यह सवाल न दागें कि आग का अर्थ पानी कैसे हो सकता है, मुझ पर भरोसा रख कर मान लें कि होता है)।

दूसरे प्रश्न का उत्तर हां में ही देना होगा । पर इसके लिए इनमें से एक एक के विस्तृत विवेचन की अपेक्षा होगी। इसे हम कुछ रुक कर उठाएंगे।

तीसरे प्रश्न का उत्तर भी हां ही है परन्तु इस सुधार के साथ कि हम वास्तव। में चांद कहते हुए भी चमकने वाला कहते है, इसलिए उसी का प्रयोग किसी दूसरे चमकने वाले ग्रह या नक्षत्र के लिए कर सकते हैं। जब आप चांद सा चेहरा या माहजबीं कहते हैं तो भी चमकते हुए चेहरे की ही बात करते हैं।

चौथे का उत्तर देने से पहले यह याद दिलादें कि चकार प्रेमी समुदाय की भाषा में स ध्वनि नहीं थी। वह उसका उच्चारण च के रूप में करता था, तमिल में स्वामी को सामी अर्थात् चामी लिखा और बोला जाता है सं. प्रभाव में इसे सामी भी बोलते हैं इसलिए चान फारसी में शान बना (और सनक और सनकी भी चन्द्रमा के लिए चन/सन से संबन्ध रखता हो तो कुछ अचरज की बात नहीं ) और अंग्रेजी में sun बन गया, द्र (तर/ दर कौरवी प्रभाव में त्र/ तृ, द्र/दृ), drop और निषेधात्मक dry और drought में मिलेगा। प्रकाश वाला भाव भारत से ही वै. स्तृ = तारा बन कर निर्यात हुआ और अंग्रेजी star/ starry और stare में दिखाई देता है। PIE के चक्कर और मूल स्रोत से बचने कतराने के कारण इनकी जो व्युत्पत्तियां पश्चिमी व्युत्पत्तिकोशों में दी गई है इसकी जॉंच पड़ताल का काम उन मित्रों को संभालना चाहिए जिन्हें इसमें निपुणता प्राप्त है । मस् जैसा हम पहले देख आए हैं सं. मास में, फा. माह में तो है ही । यूरोप की किसी बोली में पहुंचा या नहीं, पता करना होगा। निष्कर्ष यह कि भारतीय आर्य भाषा या सेठों साहूकारों और अभिजात वर्ग की भाषा में जल और प्रकाश तथा प्रकाश पिंडों के लिए प्रयोग में आ रहे थे और हड़प्पा के संपर्क क्षेत्र में इन सभी का प्रसार हुआ ।

पांचवे और छठे प्रश्नों का उत्तर बहुत रोचक है। प्रकाश के लिए सभी में संकल्पनातमक समानता एक ही सामािजक गठन से पहले भी लंबे आदान प्रदान और सोच विचार में निकटता का ही परिणाम हो सकता है। कहें, अलगाव की अवस्था में भी सांस्कृतिक एकसूत्रता पैदा हो चुकी थी । ये सभी भाषाई समुदाय वर्षाबहुल प्रदेश के निवासी थे जिनका नैसर्गिक ध्वनि परिवेश जल की विविध गतियों, क्रियाओं और अवस्थाओं से निर्मित था ।