अब जरा इस सक/सुख की ध्वनि से निकले शब्द भंडार पर विचार करें :
सुख/चुक – १. पानी, २. सुख, ३. चोका= धारोष्ण दुग्ध पान , २>४- सौख्य > ५. फा. शौक / शौक़ीन, ६- सोखना > ७- सूखना>८. सं. शुष्क, ६>९. शोषण / शोषित /शोषक, १०. चोषण, ११. चूसना, १२. चस्का, १३. सु- (उपसर्ग) १४. सु-तर (सुंदर),> १५. सुधर /सुधार, १६. सं.(धातु) चूष पाने, १७. शुष शोषणे.
हमने अपनी सीमा के कारण यूरोपीय प्रतिरूपों को छोड़ दिया. ऊपर के आंकड़ों पर ध्यान दें तो धातुओं से ये शब्द नहीं निकल रहे हैं. धातुएं इस शब्दभंडार में से कुछ को समझने के लिए गढ़े घटक हैं. यात्रा धातु से शब्द की ओर न होकर क्रिया विशेष से उत्पन्न ध्वनि से शब्द श्रृंखला से धातु की दिशा में हैं और अब यह धातु उनमें से कुछ का अर्थ समझने में तो सहायता करेगी पर इस पहेली का जवाब न दे पायेगी कि इस ध्वनि से वह अर्थ जुड़ा कैसे.