Post – 2017-04-15

ऐसा नहीं है की भाई, माई, खेत अपने अंतिम स्वर के स्वरित उच्चारण को नए द्विस्वर ई – इआ- इया/ इअवा/ अ-आ, -वा में बदल देते हैं. स्वरित उच्चारण को द्विस्वर में बदलना सम्बोधन में तथा अन्य कारक पदों के साथ होता है:
इ हमार खेत ह, हमरे खेतवा में जव बोवल बा, तुहरे खेतवा में पानी लागल बा, इ हमार बहिनि ह. इ ओकरे बहिनिया के साथे इस्कूल जाई. पर इ हमार भाई ह. इ हमार भइया हवें. में भाई का अर्थ छोटा भाई है और भइया आदर सूचक बड़े भाई के लिए. जब भोजपुरी भाषी भइया का प्रयोग करता है तो उसका अर्थ भाई से कुछ अधिक होता है. इसमें सम्मान और आत्मीयता का पुट होता है. यह कुछ वैसा ही प्रयोग है जैसे भाऊ, भावे आदि.
यहां आकर मेरी सोच बदल गई और ऊपर जो कयास लगाया था वह कुछ संशोधित हो गया. अब हम इस नतीजे पर पहुँच रहे हैं की भारत की सभी बोलियों में लालित्य, आदर और आत्मीयता के लिए शब्द के अंत में कुछ अतिरिक्त प्रत्यय लगाते है. मामला पूरी तरह पूरब पश्चिम का नहीं है अन्यथा सिंधी में अतिरिक्त -नी, ब्रजभाषा और भोजपूरी में – मइया, मतवा जैसे

तू ही कहता है कि यह दिन तो किसी शाम का है
मैं भी कहता कि तू आदमी कुछ काम का है
कहता हूं शाम है दिन काम जी लगा के करो
तू बताता है कि यह वक्त तो आराम का है।

अब तो वह दिल नहीं जो टूटता जुड़ जाता था
सपने बुनता था आसमान में उड़ जाता था
अब वो धड़कन नहीं जो मौज से आगे थी बहुत
अब वो हसरत नहीं जो ख्वाब से आगे थी बहुत
अब जो टूटेगा तो सर्जन ही काम आएगा
अब जो डूबेगा तो बाहर न निकल पाएगा
अब तो बस राम राम राम राम ही कहिए
दिल को अब तो मिले आराम राम ही कहिए