विडंबना
उसने कहा, “वामपंथियों से कभी तुम्हें प्रेम थ एकाएक वह नफरत में कैसे बदल गई?”
“नफरत में नहीं तरस में।”
“चलो तरस ही सही, दक्षिण पन्थियों के लिए इतना प्यार कहां से छलकने लगा?”
“प्यार नही तरस कहो।”
“कमाल के समदरसी हो, दोनों में कौन सी कमी है कि कि दोनों पर तरस खाते हो?”
“एक की दाहिनी आंख काम नहीं करती, दूसरे की बाईं आंख काम नहीं करती। दोनों को पूरा सच दिखाई नहीं देता और दोनो को जो आधा दिखाई देता है वह दूसरे को नजर नहीं आता।”
“यह तो सचाई है, इस पर तरस खाने की बात कहां से आ गई?”
“मैं दोनों की मदद करना चाहता हूं। पर दोनों ने एक आखं की नजर खोई इसका उन्हें अहसास तक नहीं है। दोनों अन्तिम सत्य पह पहुंचे हुए हैं और उल्टे मुझ पर ही तरस खाते हैं कि यह आदमी मेरी बात मानता क्यों नहीं?”