Post – 2017-04-07

भाषा की एक भिन्न समझ ने ही मुझे इतिहास को, साहित्य को भिन्न रूप में प्रस्तुत करने में समर्थ बनाया. भाषा, गणित, प्राणायाम (श्वसन प्रणाली की वैज्ञानिक समझ ) का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं परन्तु दो गहरी समानताएं हैं. १- इनमें से किसी के आभाव में हम हतचेत हो जाते हैं; और २- इनका विधिवत ज्ञान अर्जित करने में हम सबसे अधिक आलस्य करते और इसलिए जानने से घबराते हैं जब कि इनमें सबसे कम श्रम लगता है और एक बार इनकी आदत पड़ गई तो आप आनंद की ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं कि बाहर निकलने को जी ही नहीं करता. ब्रह्मानंद का सम्बन्ध इन्हीं से है. परन्तु मेरे इस प्रबोधन के बाद भी बहुत कम लोग ही इसमें रूचि ले पाएंगे, यह जानता हूँ. मेरी अपेक्षा पसंद करने वालों की संख्या नहीं है. जो थोड़े से लोग रुचि लेते या विकसित कर सकते हैं उनसे उनकी समझ में न आनेवाली या गलत लगनेवाली बातों पर उनकी खुली और बेझिझक पर संयत भाषा में व्यक्त की गई टिप्पणियों से है. दूसरा सरोकार राजनितिक ही नहीं मनोवैज्ञानिक भी है जिसे भारतीय मानस की औपनिवेशिक दासता से मुक्ति का मोर्चा कहा जा सकता है. इसमें अधिक लोगों का दखल होगा इस लिए इस पर भी साथ साथ लेखन चलेगा. मित्र अपनी पसंद तय कर सकते हैं.