कुछ घडी का है संग होली का
अजब देश है . मैं अपने भारत की बात कर रहा हूँ. राजतन्त्र से इतना प्रेम कि कोई दबंग कहे, यह मेरे खानदान का देश है तो लोग मान लेते हैं. होशियार समझे जाने वाले लाइन लगा कर खड़े हो जाते हैं – हम राजवंश के साथ हैं. मूर्ख कहते हैं यह मेरा देश है. कोई विश्वास ही नहीं करता.
कोई कहे हम लोकतंत्र में रहते हैं.
जानकार लोग समझाते हैं – यह संविधान में लिखा है। संविधान हमने इसलिए अपनाया कि हम सिद्ध कर सकें कि हम कानून कायदा मानने वाले देश के नागरिक हैं। इसे लिखने का काम एक शूद्र को सौंपा कि दुनिया जान सके कि हम जात पांत से इतने ऊपर उठ चुके हैं, कि हमने उस शूद्र को आधुनिक मनु बना दिया, जिसने मनुस्मृति का हवन किया था, पर उसका धुंआ उसके दिमाग में था। उसने संविधान बनाने की जगह नयी मनुस्मृति लिख डाली, इसे हम कैसे मान सकते हैं?
समझ में बात न आए तो वे दुबारा समझाते हैं- देखो जो दलित और पिछडे लोग मनुस्मृति को जलाते आए हैं, अंबेडकर स्मृति को जला न सकें, रौंद तो सकते हैं न।
आशका जताओ, ‘ब्राह़मणों ने संविधान का पालन किया? पुरानी स्मृतियों का पालन करने वालों को तो नई स्मृति का पालन करना ही चाहिए था।’
वे समझाते हैं – ब्राह्मण स्मृतियां बनाता है, स्मृतियों का पालन नहीं करता। वह नियमों से ऊपर है, जो उसकी कलम से लिखा गया, जो उसकी कलम की नोक के नीचे है, उसका पालन करने के बाद वह उससे नीचे हो जाएगा, इसलिए वह किसी नियम का पालन नहीं करता, जो कुछ वह करता है वह नियम बन जाता है, जैसे पाराशर का जी मचल गया तो वह जो गलती कर बैठे, वह परंपरा है।
मूर्ख हैं वे, और इसलिए अपने हाथों उस डाल को काट कर इसे साबित भी कर दिया जिस पर बैठे थे, जिन्होंने कहा था, बच्चों से गलतियां हो जाती हैं।’ कहना चाहिए था, परंपरा का सम्मान करने वालों का सम्मान करो, दंडित मत करो। नालायक ने इसे गलती मान लिया । उसको बच्चों की गलतियों का शिकार तो होना ही था।
आशंका करो, ‘आप विचार की जगह हुड़दंग कर रहे हैं! सब कुछ गड्मड्ड। सबके चेहरे काले और काले कहो तो नीले पीले रंग सजीले, कुछ चिपके कुछ सचमुच ढीले दिखाई देने लगते है।’
वे समझाने की जगह चांटा मारते हैं, ‘नालायक यहां पहुंच गए तो तुक मिलाने के लिए नशीले कह लेना, पर जहरीले मत कहना, गो जहर तो लोग रंगों में भी मिला देते है और विचारों में भी घोल देते है।’ गजब का चांटा है कि गोपियों के मैं मारूंगी तुझे अब मुझे मार की आवाज सुनाई देती है।
हत्तेरे की। सोचा था, चुनाव के नतीजों पर होली के रंग में कुछ रंग भरेंगे पर उसके जहर से बचने की चिन्ता में पड़े रहे। सोचा था, देश किसका है, देश किनका है के बीच का फैसला करेंगे और बीच में चिन्ता की लहर। सामने आ गया उत्तर प्रदेश का एक नेता।
पूछा, होली का रंग कैसा है?
बोला, मेरी भैंस के रंग जैसा है।
पूछा, ‘उत्तर प्रदेश अब उत्तम प्रदेश बन पाएगा?
बोला, उत्तम बने या मद्धिम, यह तय है कि कानून और व्यवस्था का हाल यह होगा कि अगर मेरी भैंस सचमुच खो गई तो पुलिस उसे ढूढ़ नहीं पाएगी। यदि मैं गाय पालूँ, मेरी गाय खो जाय तो मैं थाने में गाय का गा कह कर य कहूँ उससे पहले ही पूरा मजमून भांप कर गाय सामने हाजिर कर देगी ।