Post – 2016-12-09

चिन्तित रहने वाले लोग

”कहो कुछ भी यह विचित्र तो लगता ही है कि पूरे देश में सोच समझ का इतना सीधा विभाजन है कि एक को रोज कोई न कोई खामी नजर आ जाती है, दूसरे इतने निश्चिन्‍त कि उन्‍हें कहीं कोई दोष दिखाई ही नहीं देता। राजमार्गों पर, गांव देहात में नकदी की कमी से कष्‍ट भोग रहे लोगों की तकलीफ, उनकी मौत तक इनको विचलित नहीं कर पाती । प्रश्‍न कुछ हितबद्ध लोगों या राजनीतिक ऊसर क्षेत्र तक सीमित नहीं है, विशेषज्ञ हैं और उनकी आशंकाएं है, इन सभी की अनदेखी कैसे कर सकते हो तुम ?”

”भरे बैठे थे, लगता है। एक साथ इतने सवाल कि सोचना पड़ जाय कि किसका समाधान करूं और किस तरह । पहली बात तो यह कि मैं साहित्‍य का और इतिहास का विद्यार्थी हूं। अर्थशास्‍त्र की बारीकियां नहीं जानता। यहां तक कि वे कूटनीतिक शंकाएं जो कई देशों ने व्‍यक्‍त की हैं, उनकी पेचीदगी से परिचित नहीं हूं। उनको यथातथ्‍य मान भी नहीं सकता, नकारने का प्रश्‍न ही नहीं उठता, पर यह तो मानना ही होगा कि इस प्रयोग के कई पहलू हैं जिनको लेकर ऐसे लोग चिन्तित है जिनकी नीयत पर सन्‍देह नहीं किया जा सकता।

” पहले हम इन विशेषज्ञों की बात लें, जिनमें राजनयिक पहलू की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। उनमें सबका एक निष्‍कर्ष है कि हमें अभी कुछ समय तक प्रतीक्षा करनी होगी, जिसमें हालत सुधरने की संभावना है। यह संभावना एचडीएफसी के सीईओ ने भी प्रकट की जो कभी इस निर्णय के प्रशंसक थे और फिर आलोचक बन बैठे। उन्‍होंने कठिनाइयां गिनाई हैं और कुछ आशंकाएं प्रकट की है पर साथ ही यह कहा कि जनवरी तक हालत में सुधार संभव है। उनका एक समय का आकलन उनकी ही समझ से गलत हुआ, और दूसरा आकलन दूसरे कारणों से उतना सही नहीं हो सकता ।

”एक प्रश्‍न इस सन्‍दर्भ में यह भी कि पिछले दिनों एचडीएफसी के विषय में नाम ले कर लोगों की शिकायतें आती रहीं कि उसमें कुछ ही घंटों के बाद यह ऐलान कर दिया जाता है कि कैश नहीं है। अकेले इस बैंक के साथ यह शिकायत नाम ले कर आई । क्‍या सीइओ के नये आकलन और दूसरे बैंकों से अलग इस बैंक के व्‍यवहार और चोर दरवाजे से कैश के गलत हाथों में चले जाने में कोई संबन्‍ध हो सकता है? यदि हां तो अभी तक इसके किसी शाखा प्रबन्‍धक का नाम क्‍यों नहीं आया? और यदि नहीं, तो इसका कैस इतनी जल्‍द क्‍यों खत्‍म हो जाता रहा कि एक दो बार लोगों को अपना आपा खोना पड़ा। ये भी उतने ही टेढ़े सवाल है जो विशेषज्ञता और उसके अलग अलग चरणों के आकलन आदि से जुड़े हैं जिन पर कुछ कहने की योग्‍यता मुझमे नहीं है ।

”लोगों काे असुविधा है और इसका तीखा बोध मोदी सरकार को भी है, यह पहली बार मैंने 28 नवम्‍बर की अपनी पोस्‍ट में कुशीनगर में मोदी जी के सुझाव को सुन कर उनकी भावभंगिमा को देख कर कहा था। यह चिन्‍ता सभी को है सिवाय उनके जो इनकी फेहरिश्‍त तैयार करते हुए अपने को दूसरों से अधिक चिन्तित दिखाते हैं और घूम घूम कर इसका राग अलापते हैं, क्‍योंकि इसमें उन्‍हें जनता की तकलीफ नहीं दिखाई देती, इसकी आड़ में एक दुर्लभ अवसर दिखाई देता है जो उनकी आकांक्षा को फलीभूत कर सकता है। कयामत के दिनों की भविष्‍यवाणियों करने वालों में कुछ तो मर्सिया भी लिखने लगे हैं।

”हमने उसी पोस्‍ट में लिखा था, जनता कष्ट झेल रही है, इसे झेलने की एक सीमा है । उपचार उस सीमा के भीतर हो जाए यह शुभ होगा।” परन्‍तु अन्‍तर शुभ के आकांक्षी और अशुभ की प्रतीक्षा में खड़े कराहने वालों का है । आज की स्थि‍ति यह है कि अनगिनत शिकायतों के बाद भी शहरों में हालत सुधरी है। मेरे निकट स्‍टेट बैंक की एक शाखा है और दूसरी पंजाब नेशनल बैंक की । पहले जहां अछोर लाइन लगती थी, वहां कल 20 लोग स्‍टेट बैंक में और आठ दस पंजाब नेशनल बैंक में दीखे। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि जो काले को सफेद करने के जंग में उतारे गए लोग थे, उनको यह आभास हो गया है कि यह सौदा उन्‍हें मंहगा पड़ सकता है। वे रास्‍ते से हट गए हैं।

”गांव देहात में सुधार हुआ होगा, पर स्थिति अभी गंभीर है। इसकी चेतना मोदी सरकार को है। वह स्‍वयं इसमें जो भी संभव है करने को तत्‍पर है। अभी पचास दिन पूरे नहीं हुए। इसके पूरे होते ही काफी अन्‍तर वहां भी दिखेगा। बाढ़, सूखा, फसल की अकाल वृष्टि से बर्वादी आदि की तकलीफों से गुजरने वाले गांव के लोग परेशानी में भी शहरी लोगों की तरह धीरज नहीं खोते । अपना तरीका निकाल लेते हैं। ये शहरी लोग हैं जो मामूली असुविधा होने पर तोड़ फोड़ और आगजनी पर उतारू हो जाते हैं । दंगे भी ये ही भड़काते हैं। इस बार नोटबन्‍दी के पीछे के महान लक्ष्‍य को देखते हुए उन्‍होंने भी अपना धैर्य बनाए रखा। इसलिए आशा है ग्रामीण जनों का मनोबल टूटने से पहले स्थिति पूरे देश्‍ा में सामान्‍य हो जाएगी। नोटों की भरपाई ही नहीं, छोटे मूल्‍य के बीस, पचास, सौ, ही नहीं हजार और पांच सौ के नोट लाने का प्रयत्‍न हो रहा है। यह भी दुष्‍प्रचार है कि पूरे तन्‍त्र को रोकड़मुक्‍त कर दिया जाएगा। उपदेश देने वालों की तुलना में मोदी को गरीबों, किसानों और मजदूरों की अधिक अच्‍छी समझ है। वह भी जानते हैं कि रोकड़ के बिना ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था नहीं चल सकती। शहरों में भी हमारा अर्थतन्‍त्र विकसित देशों से भिन्‍न है। परन्‍तु इस क्राइसिस से ही टकाहीन लेन देन की संस्‍कृति शहरों में और फिर मोबाइल के प्रचलन की तरह देहातों तक में जन्‍म लेगी जो नकली नोटों, जमाखोरी, मिलावट, कालाबाजारी, टैक्‍स चोरी जो मुनाफाखोरी और कालाधन की जड़ है, का कारगर इलाज है।

”जिन्‍होंने केवल विलाप किया है वे इसके साथ जुड़े सेवा कर आदि का इकहरा चित्र पेश करके डराने या विचलित करने का प्रयत्‍न कर रहे हैं, परन्‍तु वे उन विकृतियों को जिनसे इसने मुक्ति दी है नहीं देख पाते। वे नहीं देख पाते कि कथित रूप में रिजर्व बैंक तक में नकली नोटों का इतना बड़ा भंडार जमा हो चुका था, एक ही नंबर के आवर्ती नोट तक छापे गए थे और हमारे पूर्ववर्ती प्रशासनिक तन्‍त्र की जानकारी के बिना यह संभव नहीं लगता। पाकिस्‍तान से पंप किए जाली नोटों से भी अधिक भयानक समस्‍या घरेलू स्‍तर पर बैंक के छापाखानों में हुई इस हेराफेरी की है। यदि ये खबरें सही हैं तो नोटबन्‍दी के अलावा कोई उपाय ही न था।

”कांग्रेस ने इतने असंख्‍य घोटाले किए। स्‍वच्‍छ शासन का अपना नैतिक अधिकार खो चुके सभी दलों ने कर अपार काला धन जमा कर रखा था, उसे इस एक ही निर्णय ने कूड़े की ढेर में बदल दिया। लोकतन्त्र की बहाली का इतना कारगर उपाय धन, जाति, धर्म के उन क्षुद्र हथकंडों से पार जा कर कर पाना असाधारण साहस और दूरदर्शिता का प्रमाण है जिसे आम जन जानते हैं, विशेषज्ञ इसकी ओर ध्‍यान ही नहीं दे पाते। यह उन रहस्‍यों में से एक है जिसके कारण जनता के निर्णय बार बार विशेषज्ञों के निर्णय से अधिक निखोट होते हैं।

”जिन दलों ने काले धन के तहखाने भर रखे थे वे संसद में चीत्‍कार कर रहे हैं और वहां कोई काम होने नहीं दे रहे हैं और उन पर पलने बढ़ने वाले बाहर चीत्‍कार कर रहे हैं और लोगों का ध्‍यान केवल आहो फुगां पर ही टिकाए रखना चाहते हैं और जाति औ धार्मिक विद्वेष और अलगाव को हवा देते रहना चाहते हैं जिसने समाज को भीतर से जर्जर कर रखा है जब कि जनता को दिखाई देता है पहली बार ऐसा नेता जो तोड़ने और बांटने वाली क्षुद्रताओं से ऊपर उठ कर जोड़ने और देश को विकास की दिशा में ले जाने वाली राजनीति करना चाहता है। ये क्षुद्र लोग हैं जिन्‍होंने पवित्र शब्‍दों की मर्यादा को उसी तरह नष्‍ट किया है जैसे ईसाइयत के पोपतान्त्रिक विनाश ने किया जिससे यूरोप में अन्‍धकार युग आया था। मैंने कहा था न कि उस पोप को जिसने यूरोप के पुराने पुस्‍तकालयों, देवालयों, वास्‍तुकृतियों को नष्‍ट करने का आरंभ किया और बुद्धिजीवियों को देश से पलायन करके अपने प्राण बचाने को विवश किया था, उसका नाम इन्‍नोसेंट था और जिसने मातृदेवी के मन्दिर को नष्‍ट किया था उसका नाम स्‍वर्ग का द्वार या थियोडेारस था। इनके अभियान का नाम सेक्‍युलरिज्‍म पड़ गया और उसके तहत क्‍या कारनामे किए गए इसका इतिहास तक उन्‍हें पता नहीं, उससे पीछे के इतिहास की तो बात ही अलग है।

”यदि तुम्‍हारी शंकाओं का समाधान हो गया हो, तो कल से मोदी केन्द्रित और मुद्रा केन्द्रित सवाल न करना। मोदी मेरे लिए राजनीतिज्ञ से अधिक एक द्रष्‍टा और युगनिर्माता के रूप में सार्थकता रखते हैं।”

”और इसीलिए तुम उनके भक्‍त हो जिसे उसमें कोई दोष नहीं दिखाई देता।” उसने फिकरा कसा।

”गालियों की यह भाषा कभी बड़े बड़ों की छुट्टी कर देती थी। आसमान छूते शिखरों को तुमने गालियों से जमीदोज कर दिया। लोगों पर इतना प्रभाव था तुम्‍हारा और तुम्‍हारे प्रचार तन्‍त्र का। जिनकी संगत में तुम पाए गए उनके चरित्र को जानने वाले तुम्‍हारे प्रभाव से, उस प्रचारतन्‍त्र के भी प्रभाव से मुक्‍त हो गए इसलिए पहले जहां तुम्‍हारी गालियों के कारण दूसरे डरते थे, वहां अब तुम्‍हें डरना चाहिए क्‍योंकि इनके प्रयोग के कारण अब वे ही लोग तुम्‍हें बदतमीज समझते हैं। भाषा के स्‍खलन में तुम्‍हारा योगदान सबसे अधिक रहा है । अब भी समय है, तर्क और प्रमाण के साथ बात करो और दूसरों के तर्क और प्रमाण का सामना करो। सर्वनाशे समुत्‍पन्‍ने अर्धं रक्षति पंडित: । अब भी कुछ कहना हो तो मेरे पास सुनने का धैर्य है ।”

वह कुछ कहने की जगह उठ खड़ा हुआ ।