Post – 2016-11-30

नजर अपनी अपनी

”तुम्‍हें वे बातें क्‍यों नहींं दिखाई देतीं जो हम सब को दिखाई देती हैं ।”

”यही सवाल मैं तुमसे करना चाहता हूं, तुम्‍हें वे बातें क्‍यों नहीं दिखाई देती हैं जो पूरे देश की जनता को दिखाई देती हैं, देश देशान्‍तर में दिखाई देती है, यहां तक दुश्‍मनों तक को दिखाई देती हैं।

“पहली बात यह कि जनता अज्ञानी और भावुक होती है । अज्ञान के कारण उसे किसी परिघटना के दूरगामी परिणामों का आभास नहीं होता। भावुक होने के कारण उसे सब्ज बाग दिखाकर बेवकूफ बनाया जा सकता है और हिटलर ने तो बनाया ही था ।”

“तुम्हें जर्मनी का इतिहास तो पता है, पर क्या उस देश का इतिहास भी मालूम है जिस देश की यह जनता है ?”

वह कुुछ सोच में पड़ गया, फिर संभला तो बोला, ”इसमें इतिहास जानने की क्‍या बात है। जनता को तो देख ही रहे है, वह शराब की एक थैली पर बिक जाती है।”

”इतिहास में जाने पर ही यह भी समझ पाओगे कि उसने एक थैली शराब पर बिकना कैसे और किससे सीखा। उसी से समझ पाओगे कि उसकी एक सोच थी जो युगों के ज्ञान और अनुभव से अर्जित थी। उसका जलप्रबन्‍धन तुम्‍हारे जलप्रबन्‍धन से अधिक अच्‍छा था। तुम्‍हारे विशेषज्ञों ने हड़बड़ी में पहले नलकूपों और फिर बोरवेलों से उसके उपस्‍तर का दोहन करके सुखा दिया और और फिर आपाधापी में बनाए गए तुम्‍हारे शौचालयों का गन्‍दा पानी उस सूखे को भरने के लिए नीचे उतरा ताे उपतल का जल ही विषाक्‍त हो गया। उसे विशेषज्ञाें की मदद की जरूरत थी पर ऐसे विशेषज्ञों की नहीं जो किताब से निकले और उन्‍हें गंवार समझ कर उनकी पुरानी तकनीकों में सुधार करने की जगह उन्‍हें विस्‍थापित करके घर बैठे उजाड़ कर रख दें । और राजनीति करने वाले विशेषज्ञों की तो उन्‍हें जरूरत हो ही नहीं सकती। राजनीति करने वाला विशेषज्ञ नोबेल लारिएट हो तो भी अपनी विशेषज्ञता को अपनी राजनीति को सही ठहराने के काम ही लाएगा। उसका मोटा ज्ञान कुछ मानी में तुम्‍हारे विशेषज्ञों से अधिक उपादेय है। उसने आपस में मिल जुल कर रहने का एक सलीका विकसित किया था, जिसे तुम्‍हारे अलीगढ़ के विद्वानों ने उसके ही सपूतों का मन फेर कर अपने घर से उजाड़ दिया। तुम्‍हारे राजनीति करने वालों ने सीधी कार्रवाई के प्रयोगों से उसमें नफरत भरी और उन्‍होंंने ही इस देश को तोड़ा जब कि उसे पता था कि देश बट भी गया तो भी हमें तो यहीं रहना है। सही कौन था ? वह या तुम ? उन्‍हीं विशेषज्ञों से घृणा की लीगी विरोसत को अपनी विरासत बना कर पूरे हिन्‍दू समाज, संस्‍कृति इतिहास से घृणा करने की ऐसी मानसिकता पैदा की कि तुम नफरत फैला कर समाज को बांटते हो और उस आदमी से डरते हो जो कहता है, हम लड़ते रहेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे। तुम्‍हारे विशेषज्ञ इसे धोखाधड़ी बता कर उस सामुदायिक नफरत को अधिक तीखा बनाने की चिन्‍ता में रहते हैं, क्‍योंकि जैसा मैंं पहले भी कह आया हूं, तुम्‍हारे पास कभी कोई ठोस, सकारात्‍मक योजना रही ही नहीं, आज तो नया इंसान बनाएंगे के नाम पर नई नफरत फैलाएंगे ही बच रहा है।”

वह बहादुरी से सुनता रहा, और अकड़ा बैठा रहा, फिर कड़कते स्‍वर में बोला, ”तूम्‍हें पता है कितनी नफरत भरी है उन लोगों में जिनका तुम पक्ष ले रहे हो। नफरत से नफरत पैदा होती है । हम उसी नफरत से नफरत करते हैं ।”

”और उसे किसी भी कीमत पर जिन्‍दा रखना चाहते हो। जिनसे तुम्‍हें शिकायत है उनकी शिक्षा और समझ पर मुझे कभी भरोसा नहीं रहा । परन्‍तु उनकी एक पीड़ा भी रही है, वे यदि अपना दुख नहीं कह पाते तो वे जो सारे जमाने के दुख दर्द को बयान करने के लिए दुख का आविष्‍कार कर सकते हैं, उन्‍हें तो कभी उसके दुख को समझने और बयान करने का सोचना चाहिए था । उन्‍हें लगातार आहत किया गया है, वे अपनी प्रतिक्रिया विचार और विश्‍लेषण के माध्‍यम से नहींं प्रकट कर सकते, करें भी तो अभिव्‍यक्ति और संचार के सभी माध्‍यमों पर तुम्‍हारा अधिकार रहा है जिसमें तुमसे मेल खाने वाले विचाराें को छोड़ कर किसी अन्‍य विचार के लिए जगह ही न थी। जिसे अपनी शिकायत करने का भी अवसर न मिले उसकी प्रतिक्रिया तो घृणा और उद्वेग का रूप ले सकती है, परन्‍तु यही बात तुम पर तो लागू नहीं होती । क्‍या तुमने इस समस्‍या की जड़ों को समझने का कोई प्रयत्‍न आज तक किया है? नहीं । तुम इसकी राजनीति करते रहे हो, इसकी खेती करते रहे हो और आज भी वही कर रहे हो। जनता तुम्‍हारे ही लेखों और बयानों को सुन कर तुमसे उचाट खाती जा रही है और तुम जो कहते हो ठीक उसका उल्‍टा अर्थ लगाने की आदत डालने लगी है।”

”हवा में बात मत करो । उदाहरण या प्रमाण देते हुए बात करो।”

”उदाहरण एक हो तब तो गिनाऊं । उनकी तो एक शृंखला है और उनके अलावा तुम्‍हारे पास कुछ है ही नहीं । पर अभी एक ताजा उदाहरण दूं। एक चैनल है जो तुम्‍हारे प्रिय और तुम्‍हारी नजर में बहुत साहसिक और सत्‍यव्रत है। कल संयाेग वश उसे खोला तो वह एक विशेषज्ञ के माध्‍यम से यह समझाने की कोशिश कर रहा था कि यह जो बढ़े कर भार पर काला धन बैंक में जमा करके उसे सफेद करने का मौका दिया गया है वह तो कानूनी तौर पर ही गलत है। यदि अमुक तिथि से उसके लेन-देन काे बन्‍द को बन्‍द कर दिया गया तो फिर वह बैंक में जमा कैसे हो सकता है। उस पर ऐसे ही विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं और उसी मक्‍कारी और भोलेपन से झूठ को सच बना कर पेश किया जाता है।”

”इसमें मुझे तो गलत कुछ नहीं लगता । तुम क्‍यों उद्विग्‍न हो गए ?”

”इसलिए कि वह झूठ बोल रहा था। यह बार बार दुहराया जाता रहा कि इसके बाद केवल बैंक में ही उन्‍हें जमा किया जा सकता है। इसकी मियाद 31 दिसंबर रखी गई थी। हमें यह एसएमएस भेजा गया था कि जल्‍दबाजी की कोई बात नहीं, आप अपना पैसा 31 दिसंबर तक जमा करा सकते हैं। जो इसका लाभ नहीं उठाते या जिनके पास भारी मात्रा में कालाधन है उन पर छापे आदि पड़ेंगे। जेटली ने नोट जलाने की घटनाओं पर टिप्‍पणी की थी कि उन्‍हेंं जलाने की जगह अतिरिक्‍त कर भार झेल कर बैंक में जमा करना चाहिए । इसलिए जहां सार्वजनिक लेन-देन में यह मात्र कागज का टुकड़ा रह गया था, वहीं बैंक के दरवाजे बन्‍द न थे। वह विशेषज्ञ इस तथ्‍य पर परदा डाल रहा था और अपने चैनल के श्रोताओं को समझाने की जगह उनके कान भर रहा था।

”एक दूसरी चीज थी, काले धन वालों के सामने सरकार के झुकने और काले को सफेद करने में उनकी मदद करना। सरकार का लक्ष्‍य क्‍या था, क्‍यों था, और ये कदम क्‍यों उठाए गए इसकी एक भी तटस्‍थ व्‍याख्‍या तुम्‍हारे विशेषज्ञों ने नहीं की।”

”उन्‍होंने नहीं की तो तुम्‍हीं कर के दिखा देा ।”

”दिखाने का प्रयास तो कर सकता हूं पर यह विश्‍वास नहीं कि तुम देख कर भी उसे स्‍वीकार कर पाओगे। सरकार का सपना था देश का आर्थिक रूपान्‍तरण। भूमि सीमित है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता। उल्‍टे विविध कारणों से कृषिभूमि पहले से घटनी है और अब तक अपनाए गए तरीकों से किसानों की दशा और बुरी होती जानी है। आज तो विमुद्रीकरण के प्रयोग में पचास साठ दुखद मौतों को तुम दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी मान रहे हो पर तब किसान गलत नीतियों के कारण हजारों की संख्‍या में आत्‍महत्‍या कर रहे थे। वे आत्‍महत्‍यायें रुकी हैं तो उसके पीछे कोई कारण भी होगा। खैर, उनको उबारने और देश को खाद्य आपूर्ति के मामले में आत्‍मनिर्भर बनाए रखने के लिए एक आवश्‍यकता थी, खेती को अधिक वैज्ञानिक बना कर प्रति एकड़ उपज को बढ़ाना, दूसरा था अनुपूरक आय से जो कौशल और औजारों के विकास और परिष्‍कार से उत्‍पादक श्रम और स्‍वामित्‍व को प्रोत्‍साहन दे कर ही संभव है । ये सपने जब तक सत्‍ता हासिल नहीं हुई थी तब तब उस विपुल संपत्ति की वापसी से पूरे होते दिखाई दे रहे थे, जो भ्रष्‍ट और लूटपाट में जुटी हुई सरकार की अनिच्‍छा के कारण वापस नहीं आ रहा था।”

”तो इन्‍होंने वादा करने के बाद भी उसकी वापसी क्‍यों नहीं की ?”

”सत्‍ता में आने के बाद पता चला कि इसके कुछ अवसर गंवाए जा चुके हैं और आज यह काम आनन फानन में नहीं हो सकता क्‍योंकि उसमें कानूनी और कूटनीतिक पहलू जुड़े हैं, जिस दिशा में सरकार संभवत: काम कर रही होगी।
विकास के वे सपने कैसे पूरे हों अब चिन्‍ता के केन्‍द्र में यह प्रश्‍न था। एक था मानीटरी फंड का ऋण, वह सरकार को स्‍वीकार न था। दूसरा था, उन देशों काे जिनसे हम आयात करते हैं भारत में ही अपना कारोबार खड़ा करके उत्‍पादन करने का निमंत्रण और इस तरह रोजगार और कौशल का विस्‍तार । भारतीय प्रशासनिक पर्यावरण आज भी न स्‍वच्‍छ हो पाया है, न आकर्षक । एक अन्तिम विकल्‍प जो विदेशों में पड़े काले धन की वापसी से जुड़ा हुआ था, वह था अपने ही देश में पड़े काले धन काे चलन में लाने की बाध्‍यता उत्‍पन्‍न करना और इस दिशा में सरकार पिछले साल से लगातार प्रोत्‍साहन देती रही । यह इतनी बड़ी राशि है कि विकास के लिए आर्थिक संसाधन इसके चलन में आने से ही पूरे हो जाते हैं। वित्‍तविभाग का काम आय पर कर वसूलना है, छिपे आय पर अधिक कर वसूलना है, इसके बाद उसने किस साधन से वह धन कमाया है, नैतिक है या अनैतिक इसकी खोज खबर विधि और व्‍यवस्‍था का है । यह समझाने की जगह तुम लोग जनता की तकलीफ को चुन चुन कर दिखाते और अपने माध्‍यमों का प्रयोग उसे भड़काने के लिए करते रहे । किसी भी तरह यह प्रयास विफल हाे जाय यह तुम्‍हारी योजना है क्‍योंकि इसकी सफलता के बाद तुम्‍हारा सफाया निश्चित है, यह तो अपने दुख और असुविधा के बीच जनता ने बता ही दिया है और इससे तुम्‍हें घबराहट होने लगी है। उस घबराहट में हिन्‍दुस्‍तान तो दिखाई नहीं देता, जर्मनी और हिटलर दिखाई देने लगते हैं।”

”भाषण पूरा हो गया ?”

”मैं भाषण नहीं दे रहा था, तुमको समझा रहा था कि तुम्‍हारा बचा रहना देश के हित में है, परन्‍तु तुम्‍हें बचाने का काम भी तुम्‍हारा है । पहले अपने प्रति ईमानदार बनो, फिर समाज और देश के प्रति ईमानदार और निष्‍ठावान । यह साख तुमने गंवा दी है । विकल्‍पहीनता की स्थिति तुम तैयार करते रहे हो । लाचारी में आत्‍महत्‍या करने वाले किसानों को तो नयी आश्‍वस्ति और उपचारों से मोदी ने बचा लिया, पर तुम्‍हें आत्‍महत्‍या से बचाने की वह कोशिश भी करे तो ऐसी नौबत न आने पाए इसलिए तुम उससे भी पहले आत्‍म‍हत्‍या कर लोगे।”

वह हंसने लगा, ”तुम्‍हें कहीं कुछ गलत नहीं दिखाई देता है ?”

”‍दिखाई देता है । उसकी मैं तालिका बना सकता हूं, इतनी गलतियां । मैं तो स्‍वयं अपने वाक्‍य तक में गलतियां कर बैठता हूं, दिन में इतनी गलतियां करता हूं कि गिनाऊं तो दो चार मिनट लग जाय । पर मैं गलतियां करने के बाद उनकी ओर ध्‍यान जाने पर उन्‍हें सुधारने का प्रयत्‍न करता हूं । तुमसे पूछा जाय तुमने सही क्‍या किया है तो घबरा जाओगे, गलतियों का इतिहास ऐसा कि सुधारने चलो तो मिट जाओगे, इसलिए तुम अपनी गलतियों को समझ नहीं पाते, दूसरों की गलतियों को भुनाने का प्रयास करते हो, सुधारने की फिक्र नहीं ।