Post – 2016-10-31

भारतीय राजनीति में मोदी फैक्‍टर – 23

‘कल तुम कुछ आवेश में थे । अच्‍छा ही रहा, यह तो पता चल गया कि तुम साम्‍यवाद से नफरत करते हो।”

”साम्‍यवाद से नहीं, वह तो मानवता की सर्वोच्‍च आकांक्षा है। मैं उस हड़बड़ी की आलोचना करता हूंं जिसमें सामंती व्‍यवस्‍था और मध्‍यकालीन सोच वाले समाज में जहां पूजीवाद आना था, वहांं साम्‍यवाद लाद दिया गया और उसे ताकत के बल पर जिन्‍दा रखा गया, क्‍योंकि यह स्‍वाभाविक विकास न था। उसी की वह परिणति या वे परिणतियां हो सकती थीं जिन्‍हें हम अपने को साम्‍यवादी कहने वाले देशों और संगठनों में पाते हैं। मैं भारतीय मार्क्‍सवादियों की समझ पर भी तरस खाता हूं कि वे आज तक इस चूक को नहीं समझ पाए और भक्तिभाव से पुराने नारे दुहराते हुए क्रान्ति के सपने देखते रहे। क्रान्ति एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया है, गृहयुद्ध नहीं,जिसमें बहुतों की हत्‍या करके बाकी लोगों को जिन्‍दा आैर सुखी रखने का रास्‍ता निकाला जाता है। इस मामले में मार्क्‍स और ऐंगेल्‍स को भी मैं सही नहीं मानता। कम्‍युनिस्‍ट मैनिफेस्‍टो में भी यह जल्‍दबाजी देखी जा सकती है।”

”यार इतना बड़ा विद्वान तो मैंने देखा ही न था जो मार्क्‍स को भी गलत सिद्ध करदे, ऐंगेल्‍स को भी, सारे मार्क्‍सवादी चिन्‍तकों को चुटकी में धूल चटा दे। मेरी किस्‍मत है कि तुम मुझे मिल गए।”

”किस्मत तो है पर मूर्ख भाग्‍य के अवसरों को भी बर्वाद कर देते हैं । उनका लाभ नहीं उठा पाते। मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूं। साम्‍यवाद पूंजीवाद के बाद का चरण है। पूंजीवाद विश्‍वपूंजीवाद बन जाय तब उसका चरण पूरा होगा जैसे सामन्‍तवाद अलग अलग रूपों में ही सही व्‍यवस्‍था में रूप में नहीं तो मूल्‍यों के रूप में पूरी दुनिया में फैल चुका था।

”पूंजीवादी विकास के लिए बहुत बड़ा बाजार चाहिए। एक छोटे से देश को संपन्‍न बनाने के लिए उससे द‍सगुने बड़े बाजार की जरूरत हाेती है। विश्‍वव्‍यापी होने पर किसी के पास वह बाजार नहीं रह जाता। लेन देन ही बचा रह जाता है। बड़े पैमाने पर उत्‍पादन फेल कर जाता है। मकान बना कर बेचने की अन्‍धाधुन्‍ध होड़ में बिल्‍डरों ने इतने अधिक मकान बनाने के प्रोजेक्‍ट ले लिए कि जिसका पैसा आ चुका था उसे भी पूरा नहीं कर सके और जहां लगाया वहां भी काम पूरा नहीं और फालतू मकानों की संख्‍या इतनी हो गई कि कोई लेने वाला नहीं। परेशानी यह कि दाम गिराएं तो जिन्‍होंने पैसा पुराने रेट पर दिया है वे सर चढ़ जाएंगे। अन्‍धाधुन्‍ध गाडि़यों की खरीद ने सड़कों को इस तरह भर दिया कि सायकिल से चलने वाला मोटरगाड़ी से चलने वाले से आगे निकल जाता है। तुम अरब की गाड़ी खरीद लो, चलना तो उसे उसी सड़क पर है जो भर चुकी है और आगे इतनी भर जाएगी कि लोग हैसियत दिखाने के लिए गाडि़यां खरीदेंगे और पैदल चलेंगे। किसी भी चीज का अपनी हद से गुजरना ही अपनी दवा भी बनना होगा है। पूंजीवाद आए, अपनी हदें पार करे फिर स्‍वत: अपनी दवा बन जाय।

”जब बड़े पैमाने पर उत्‍पादन फेल करता है तब छोटी मशीनों और सीमित उत्‍पादनों और जोेे भी संसाधन बचे हैं उनके समझदारी से उपयोग की विवशता पैदा होती है जिससे कौशल का वह विस्‍तार होता है जिसमें आदमी कम श्रम से अपनी जरूरत की चीजें या कहो आपसी जरूरत की चीजें पैदा करके अदल बदल कर सकता है और इस तरह वे छोटी इकाइयां या कम्‍यून स्‍वत: बनने की स्थिति आती है जिससे कम्‍युनिज्‍म कह सकते हैं।

”ऐतिहासिक चरण वह होता है जिसके आने को रोका ही नहीं जा सकता, क्‍योंकि उससे पीछे की व्‍यवस्‍था फेल कर चुकी रहती है। यही बात मैं मोदी के उदाहरण से समझाता हूं तो तुम्‍हारी समझ में नहीं आती। उस नि:सत्‍व व्‍यवस्‍था को कोई मारता नहीं, वह अपनी मौत मरती है। तुम मार्क्‍स और एंगेल्‍स को देवता बनाना चाहते हो, मैं मार्क्‍स को जान सकता हूंं और उन्‍होंने जो देखा समझा था उससे बाद के प्रयोगों और विफलताओं को जानता हूं इसलिए मैं उनकी कमियां निकाल सकता हूं। पर तुम मेरे समझाने के बाद भी उन कमियों को समझ नहीं सकते क्‍योंकि मार्क्‍सवाद तुम्‍हारे लिए मजहब है और मेरे लिए दर्शन। जानना चाहोगे कि मुझमें तुममें अन्‍तर क्‍या है ?”

”बताओ, वह भी जान लूंगा।”

”जिन बातों को मैं कह रहा हूं उनमें से सभी नहीं तो अधिकांश बातें तुम भी कई बार लक्ष्‍य करते होगे, लेकिन तुम डरते हो कि इतने बड़े दार्शनिकों और अधिकारी विद्वानों ने जो नहीं माना उसे कहूं तो लोग मुझे मूर्ख समझेंगे, इसलिए जिस कमी को लक्ष्‍य करते हो उसे कहने का साहस नहीं जुटा पाते। मैं मूर्ख कहे जाने का खतरा उठा कर अपनी बात कहता हूं। यह साहस ही मुझे चिन्‍तक बनाता है और इसी की कमी तुम्‍हें भक्‍त बनाए रखती है इसलिए मैं समझाऊं तो भी तुममें वह साहस नहीं पैदा हो सकता जिससे सही बात को स्‍वीकार किया जाता है। यह ऐसी चीज है जो बाहर से लादी नहीं जाती, भीतर से पैदा होती है और जिनमें होती है उनका स्‍वभाव बन जाती है।

”समाजवाद की कल्‍पना बहुत पुरानी है। जिस चरण पर यह था, उसे सतयुग के रूप में याद किया जाता है। इसमें गिरावट आर्थिक कारणो से आई और जानते हो यह व्‍याख्‍या कहां आई है ? पुराणों में जिनका तुम उपहास करते हो। कुछ लोगों ने आगे बढ़ कर पहल की और निजी संपत्ति का आरंभ हुआ, यह अन्‍तर सभ्‍यता के साथ बढ़ता गया क्‍योंकि पहल की क्षमता के साथ संपत्ति का अन्‍तर बढ़ता गया इससे यह भ्रम हो सकता है कि सभ्‍यता के लिए विषमता जरूरी है जब कि विषमता समाप्‍त होने पर ही हम सही अर्थ में सभ्‍य हो सकते हैं। विषम समाज शक्‍ल में एक जैसे मनुष्‍यों, परन्‍तु वास्‍तव में दो तरह के जानवरों का समाज होता है – एक हिंस्र, दूसरा हिंसा का शिकार। जंगल का चरित्र बदल जाता है, जंगल का कानून काम करता है। इसके छोटे पैमाने से ले कर बड़े पैमान तक, खटपट से ले कर महायुद्ध तक अनन्‍त रूप हो सकते हैं और तब तक बने रहेंगे जब तक यह विषमता बनी रहेगी, लिंग की, वर्ण की, धन की, रंग की ।”

”यही तो हम भी कहते हैं, फिर इसमें इतनी पैंतरेबाजी क्‍यों ?”

”क्‍योंकि तुम इसकी तैयारी के लिए समय नहीं देते, तैयारी का अवसर तक नहीं देते। तुम कहते हो औरत को पुरुष की बराबरी पर लाओ। मैं कहता हूं कोई किसी को बराबरी पर ला ही नहीं सकता, इसके लिए अपनी संभावनाओं में उसे प्रयत्‍न करना है जो बराबरी चाहता है।

”तुम पश्चिम की नकल करते हो, पश्चिम में स्‍त्री को अधिक छूट मिली है, पर बराबरी नहीं। वह छूट फ्यूडल ढांचा टूटने और पूंजीवादी दबाव बढ़ने के कारण मिला है जिसमें विश्‍वयुद्ध ने भी कुछ मदद की। विविध क्षेत्रों में काम करने वाले मर्द मोर्चे पर चले गए तो उन कामों को संभालने के लिए जनबल की आवश्‍यकता ने स्‍त्री को एक बड़ा अवसर दिया। तुम उसकी नकल करते हो हमें भी चांद चाहिए। मिलेगा पर अपनी समस्‍याओं के साथ जो पहले से अधिक खतरनाक होंगी।

”सामन्‍ती व्‍यवस्‍था में एक झटके में उतनी छूट नहीं मिल सकती। पूंजीवादी विकास की नेमतें तुम सामंती व्‍यवस्‍था में तलाशोगे तो खाप पंचायतों और इज्‍जत के लिए अपनों की ही हत्‍या जैसे समाचार भी मिलेंगे। पूंजीवाद केवल पूंजी तक सीमित नहीं रहता, वह एक व्‍यवस्‍था है और पहले की व्‍यवस्‍था को बदलता है। ठीक इसी तरह साम्‍यवाद पूंजीवादी व्‍यवस्‍था को तोड़ कर पूरी बराबरी की संभावना पैदा करेगा। तुमने देखा, इतने लंबे इतिहास में हाल में पहली बार दो आश्‍यर्चजनक बदलाव आए। पहली बार एक काला, राष्‍ट्रपति बना और दो कार्यकाल पूरे किए और पहली बार एक महिला राष्‍ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनी। बराबरी तो वहां भी नहीं रही है, उसकी सीमित संभावना पैदा हुई है।”

”तो तुम्‍हारा मानना है कि जब तक सामन्‍ती ढांचा समाप्‍त नहीं होता, पूंजीवाद नही आता, तब तक स्त्रियों को चारदीवारी में बन्‍द रहना चाहिए, दलितों के साथ अत्‍याचार होते रहना चाहिए ?”

”मैं कहता हूं कि अवसर की समानता के रास्‍ते में जो बाधाएं हैं उन्‍हें हटाया जाना चाहिए ताकि सभी अपना अधिकतम विकास कर सकें। इसकी गारंटी लोकतन्‍त्र ही दे देता है। परन्‍तु सामंती सोच इसमें भी प्रवेश कर जाती है क्‍योंकि अवरोध हटाए नहीं जाते। जब तक कीमती भाषा और मुफत की भाषा, दूसरों की या चन्‍द लोगों की भाषा और अपनी भाषा अर्थात सबकी भाषा का अन्‍तर शिक्षा, साहित्‍य, प्रशासन में रहेगा, बराबरी नहीं पाई जा सकती। ऊपर से कुछ वजीफे दिए जा सकते हैं जिनके साथ ईर्ष्‍या भी जुड़ी रहेगी और टकराव भी।

”जैसा ऊपर से लादे साम्‍यवाद के साथ हुआ, ऊपर से थोपी गई नारी स्‍वतन्‍त्रता और स्‍त्री पुरुष की समानता के मामले हुआ, इसमें शक्ति अधिक बर्वाद होगी, परिणाम अनुकूल न रहेंगे। प्रश्‍न अवरोधों को कम करने का है। बराबरी जैसी चीज नहीं होती, अपनी संभावनाओं तक पहुंचने के अवसर अवश्‍य होते हैं जो दिए नहीं जा रहे हैं।

”यह वर्णवाद के कारण है, पुरुषवादी सोच के कारण है, ऐसा तुम्‍हें नहीं लगता ?”

”लगता है, परन्‍तु इसे भी हथौड़े से या पुलिस के डंडे से खत्‍म नहीं किया जा सकता। अपनी संभावनाओं को जब व्‍यक्ति स्‍वयं हासिल करता है तो ये अवरोध अपने आप टूटते हैं। चुटकी बजाते यह नहीं होता। तुम चुटकी बजाते कर लेना चाहते हो और परिवर्तन की जगह उपद्रव का सामना करते हो। किसी के एहसान से मिला अवसर मनोबल को ऊंचा नहीं उठा पाता। भीतर कचोट बनी रहती है। इसलिए सर्वसुलभ भाषा मे शिक्षा सामाजिक बराबरी और आर्थिक उन्‍नयन की पहली शर्त है जिसके तुम विरोधी रहे हो फिर भी प्रगतिशील रहे हो और जिस संघ को तुम गाली देते हो उसने पहले भी इसे उठाया था आज भी उठा रहा है और वह तुम्‍हें देश के लिए अनिष्‍टकर लगता है। तुमने देखा, उसने घोषित किया है कि हमारी शाखाओं में मुसलमान भी आ सकते हैं। मात्र एक दो मुसलमानों के होने से ही अब यदि वे पहले अपने स्‍वयं सेवकों के मन में बौद्धिक के बहाने जहर भरते भी रहे हों तो नहीं भर सकते। इससे सन्‍देह दूर होगा। अपरिचय से भय पैदा होता है और भय से हिंसा की प्रवृत्ति।”

”‍फिर पहुंच गए तुम संघ पर। कमाल है, बात साम्‍यवाद से आरंभ करो तो भी तुम संघ पर पहुंचोगे जरूर।”

”इसलिए कि उसने अपने को नई परिस्थितियों के अनुसार समायोजित किया है। अपने को बदला है। वह फिटेस्‍ट नहीं है, पर तुमसे अधिक फिट है । वह अवसर की समानता की नींव डाल रहा है। अपनी भाषा के माध्‍यम से ही सारे काम काज के लिए अभियान चला रहा है और तुम समानता की बात करते हुए अंग्रेजी के हिमायती और स्‍वभाषा शिक्षा और अवसर के विरोधी रहे हो। उसकी करनी और कथनी में मुझे उससे कम दूरी दिखाई देती है जितनी तुम्‍हारे । और जाहिर है, इन्‍हीं कारणों से वह आगे बढ़ा है, तुम पीछे हटे हो और अपनी साख तक गंवाई है ।”

वह हंसने लगा, ‘संघ पर ही रुक गए । मोदी तो आया नहीं । तुम्‍हारा खाना कैसे हजम होगा।”

”हो सकता है इसमें मोदी की भी भूमिका हो । सबका साथ सबका विकास के इरादे का भी ।”

वह ताली बजाने लगा।