”तुमने तुलसीदास की वह पंक्ति पढ़ी है, जिसमें मनुष्य के गुणगान को वह भाषा का अपमान मानते है, ‘कीन्हें मानुष जन गुणगाना, सिर धुनि गिरा लागि पछताना।’ मतलब जहां तक याद आता है कुछ ऐसा ही।
मैं समझ गया वह किस बात की भूमिका बना रहा है इसलिए पहले ही हमला बोल दिया ‘तुम किसी को पढ़ और समझ नहीं सकते । साहित्य की स्वायत्तता में तुम्हारा विश्वास ही नहीं, इसलिए तुम उसमें अपने हथियार तलाश सकते हो, उसका मर्म ग्रहण नहीं कर सकते।’
”हथियार ही सही । समस्त साहित्य किसी विकृति या अन्याय के विरुद्ध हथियार ही होता है । साहित्यकार, अच्छा साहित्यकार किसी व्यक्ति की प्रशंसा नहीं कर सकता। वह सत्ता में हो तब तो और भी नहीं। राजा की प्रशंसा वन्दीजन करते हैं या चारण। यह मामूली समझ तो तुम्हारे पास होगी।”
मैं साहित्य नहीं लिखता । अपने समय का इतिहास लिखता हूं। मेरी पुस्तक का नाम है ‘इतिहास का वर्तमान’ । इसे तुम ‘वर्तमान का इतिहास’ भी कह सकते हो , ‘हमारा वर्तमान और भविष्य’ भी कह सकते हो, क्योंकि इसमें वर्तमान में जो कुछ हो रहा है वही नहीं, जो हुआ था और जिसके कारण हो रहा है इसकी कोशिश भी है, जो हाेना चाहिए और उसमें उपस्थित होने वाली बाधाओं के बीच जितना कुछ हो पाएगा इसका अनुमान भी है। इतिहास वर्तमान के सन्दर्भ में ही अपनी सार्थकता रखता है । वर्तमान में किसी जाति या समाज के मनोबल को ध्वस्त करके अपने दबाव में रखने के लिए उसके इतिहास को नष्ट किया जाता है, और ‘रखने के लिए’ में यह भी निहित है कि उसके भविष्य को नियन्त्रित करने के लिए ऐसा किया जाता है। इसलिए अतीत, वर्तमान और भविष्य ये इतिहास में भी होते है। इतिहासकार के दायित्व की सबसे सटीक व्याख्या हमारे राष्ट्रकवि ने की है, हम कौन थे ? क्या हो गए हैं ? और क्या होंगे अभी? और इतिहास तुम जानते हो देवता का नहीं होता, मनुष्य का होता है, इतिहासकार मनुष्य से अलग जा कर इतिहास नहीं लिख सकता।”
”इसमें इतना और जोड़ लो कि इतिहास राजाओं का नहीं होता, राजाओं का गुणगान तो हो ही नहीं सकता ।”
”तुममें धैर्य होता तो समझ पाते कि मैंने इतिहास के निर्माता का ही पक्ष लिया । वह जीता नहीं है, एक रिक्तता को भरने के लिए इस खास मोड़ पर इतिहास ने उसका चयन किया है और आज तक उसका कोई विकल्प नहीं दिखाई देता। तुम उस खास चरण पर उसे असंवैधानिक और अलाेकतान्त्रिक और अनैतिक हथकंडे इस्तेमाल करके उसे आने से रोकते रहे। इतिहास ने तुम्हारी चीख पुकार को अनसुनी करते हुए उसके लिए रास्ता बनाया। तुम उन्हीं हथकंडों से एक ऐसे समय में उसको हटाना चाहते हो जब उसका कोई विकल्प नहीं है। इसका मतलब है तुम अराजकता पैदा करना चाहते हो या देश पर हजारों अरब का बोझ और अकूत मानव दिवसों की बर्वादी लादना चाहते हो क्योंकि यदि किसी योजना से इस सरकार को गिरा भी दिया जाय और दुबारा चुनाव कराया जाय तो भी इसी को चुन कर आना है; दूसरा विकल्प तैयार ही नहीं है अौर इस बार इसे आना भी अधिक बड़े बहुमत से है, यह तुम जानते हो।
”तुम जिस तन्त्र के हामी हो वह एक पतनोन्मुख तन्त्र है, उसे मामूली सी छूट दे कर खरीदा जा सकता है यह किसिंगर ने चीन के साथ एक सौदेबाजी में चुटकी बजा कर साबित कर दिया। पैसे की हवस भौतिकवादियाें को किस सीमा तक गिरा सकती है इसकी सबसे बीभत्स मिसाल तुम वहां देख सकते हो। मैंने किसी की वाल पर एक फोटो देखी थी जो हृदय को दहला देने वाली थी। विश्वास नहीं हुआ तो पता लगाना चाहा कि यह चित्र और इससे जुड़ी कहानी सच्ची है या नहीं तो और भी डरावने दृश्य सामने आये। जानते हो, लावारिश मानव शवो का मांस चीनी खाते भी है और उनका निर्यात भी करते हैं। उनके सैनिक मोर्चे पर मरें तो शायद उनके परिजनों को पता भी न चल सके कि वे मोर्चे पर मारे गए। जो देश इतना संवेदनशून्य और भौतिकवाद को भी पाशिविकता तक पहुंचा रहा हो उसकी अर्थव्यवस्था की तुम तारीफ करते हो। वह नरमांस भक्षण का अभ्यास ही नहीं कर रहा है, इसका निर्यात कर रहा है।
‘केवल हंगामा मचा कर तुमलोग समाज को जिस दिशा में ले जाना चाहते हो मैं उससे चिन्तित हूं। यह वही दिशा है। आज वह दुनिया का सबसे अमानवीय तन्त्र है जिसकी अर्थव्यवस्था को उदाहृत करते हुए एक राजनीति का समर्थक लेखक कह रहा था, चीन की अर्थव्यस्था जितनी सशक्त है उतनी उन्नति करके तो दिखाओ।
चीन की अर्थव्यवस्था अपने दम पर नही, अमेरिका के समर्थन पर टिकी है। वह उस पर इतना निर्भर हो चुका है कि अमेरिका जिस दिन भी चाहे वह उसे कंगाल बना सकता है। भारत का वह कुछ बिगाड़ नहीं सकता। जानते हो ओबामा ने ऐपल के प्रधान, जिसका नाम मैं अक्सर भूल जाता हूं, उससे अपनी देसी समस्या को देखते हुए अनुरोध किया था कि इसका उत्पादन वह चीन में न करके अमेरिका में करे। उसने मना कर दिया था क्योंकि चीन का श्रमिक सबसे अधिक सस्ता था। उतना सस्ता भारत का श्रमिक भी नहीं। अब दोनों देशों के श्रमिकों की तुलनात्मक स्थिति को समझ सकते हो। यह मोदी का काल नहीं है, इससे पहले भी हमारी अर्थव्यवस्था कम चमकीली और अधिक मजबूत थी। आज कुछ अधिक मजबूत है। चिदंबरम आलोचना करते समय कहते हैं, पहले से कुछ ही अच्छी हुई है, पर उतनी अच्छी नहीं जिसका आश्वासन दिया गया था।
”जो सबसे बुरा पक्ष है उसमें भी यह पहले से अच्छा है और बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अपूर्व और चीन और अमेरिका में अर्थशास्त्री तक इसे अनुकरणीय मानते है परन्तु यह तुम्हें दिखाई नहीं देता।
”मैंने उसकी वकालत करना इसलिए स्वीकार किया कि वह राजा नहीं जनता का सर्वोच्च प्रतिनिधि है। वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुन कर आया है और उसे काम करने की छूट दी जानी चाहिए जब कि पुराने ऐसे शासकों की सेवा में जुटे और उनके द्वारा उपकृत या ऐसी विचारधाराओं से जुड़े जिनकी असलियत चीन बयान करता है, लोग हैं जो उसे काम करने ही नहीं देखा चाहते कि सफल हो गया तो उसका भविष्य में आने का रास्ता बन् द हो जाएगा। ईश्वर ने उस खास मौके पर उनकी सुनने की ताकत कम कर दी और बोलने की ताकत कई गुना कर दी, समझने की ताकत की कीमत पर। मुझे तुमसे सहानुभूति है।”