Post – 2016-10-25

भारतीय राजनीति में मोदी फैक्‍टर – 18

मित्रों मेरी एक फेसबुक मित्र Farhat Durrani की तीन तलाक पर क्षोभ, अपमान और आक्रोश भरे एक पोस्‍ट से बहुत विचलित हो कर एक टिप्‍पणी 23.10.16 को लिखी थी। वह टिप्‍पणी निम्‍न प्रकार थी:

”मैं इस्‍लामी रवायात पर कुछ कहने से इसलिए बचता हूं कि मैं मुसलमानों के लिए बाहरी आदमी हूूंं। कोई बात उचित हो तो भी बाहरी आदमी के कहने के कारण अनुचित मानी जाएगी। अनधिकार हस्‍तक्षेप मानी जाएगी। परन्‍तु मुझे यह बात खलती है कि मुल्‍लों ने, और वह भी भारतीय मुल्‍लों ने सेकुलरिस्‍टों की सह पर इस्‍लाम को जितना अडियल बना दिया है उसमें विचार जिद के सामने हार जाता है। बन्दिश, वह परदे की हो या तलाक की और छूट वह बहुविवाह की हो या तीन तलाक कहने के अधिकार की, केवल मर्दों तक सीमित रहनेके कारण, क्‍या उसमें औरत की जगह शैटल की नहीं बना दी गई है। यह शब्‍द गुलामों के लिए प्रयोग में आता था, परन्‍तु इसके साथ यह अवधारणा जुड़ी थी कि इनके पास आत्‍मा नहीं होती, इसलिए इन्‍हें जितना भी सताओ इन्‍‍हें दुख नहीं होता। पर हो सकता है मैं हिन्‍दू होने के नाते इसे इस रूप में देख रहा होऊं । फिर भी मुझे डर है कि इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। हिन्‍दू जिस मुल्‍लावाद से आजिज हैं, उसी से मुस्लिम महिलाएं। वे बोल नहीं सकती, न यह बता सकती हैं कि उन्‍होंंने किसे वोट दिया पर यह बहुत मुमकिन है कि उनका वोट भाजपा के पक्ष में जाए जिससे उन्‍हें कुछ सुकून मिलने की उम्‍मीद हो सकती है। इसलिए मुल्‍लों काे इस बात का अभियान चलाना चाहिए कि कोई अपनी महिलाओं को वोट देने की छूट न देगा, यदि किसी महिला ने मतदान किया तो उसे तलाक दे दिया जाएगा और सरकार से यह मांग करनी चाहिए कि चूंकि हजरत मुहम्‍मद के समय में महिलाएं वोट नहीं देती थीं इसलिए मुस्लिम महिलाओं को दिया गया मताधिकार गैरइस्‍लामी है और इसे हम अपने परसनल ला में हस्‍तक्षेप मानते हैं।”

इसमें मैं यह जोड़ना भूल गया था कि इस्‍लामिक परसनल ला और हदीस के अनुसार मुसलमानों को भी मताधिकार नहीं दिया जाना चाहिए क्‍योंकि पैगंबर मुहम्‍मद के जमाने में न लोकतंत्र था, न मताधिकार का प्रश्‍न था, और जिसकी लाठी उसकी भैंस का न्‍याय था। इसलिए जिसके हाथ में लाठी हो, अर्थात् सरकार हो उसे भैंस किसकी है, क्‍यों कहां बांध दी गई है, इसकी जवाबदेही नहीं रखी जा सकती। यही नियम उत्‍तरप्रदेशी, बिहारी और बंगाली सेक्‍युलरिज्‍म में चलता रहा है जो, मैं कई बार याद दिला आया हूं कि मुस्लिम लीग अर्थात् मुल्‍लावाद का सीमित प्रयोग है, परन्‍तु समग्र सत्‍ता हाथ में आ जाय तो इसे असीमित बनाया जा सकता है। इसका एक प्रमाण है उत्‍तर प्रदेश के एक सम्‍मान का वितरण! इस‍के विषय में हम कुछ कहना नहीं चाहेंगे, इसके बाद की पोस्‍ट में (जो ऊपर है) सार्वजनिक किया गया । चित्र किसी की वाल से लिया गया है और मुझे इस पर अविश्‍वास करने का कोई कारण नहीं दीखता। समाजवाद के यदुवंशी पुनर्जन्‍म में उत्‍तर प्रदेश में पहली बार अठारह सौ इंसपेक्‍टरों की भरती में मुहफट वर्मा सहयोगी थे इसलिए एक वर्मा को छोड़ कर सभी पदस्‍थ यदुवंशी थे। कम्‍युनिस्‍ट विचारधारा से जुड़े लोग विश्‍वविद्यालयों में जहां निर्णायक स्थिति में थे वहां किसी व्‍यक्ति की नियुक्ति का पहला आधार उसका वामपंथी होना था। कांग्रेस के सबसे अल्‍पभाषी और म़दुभाषी प्रधानमंत्री को जो भाजपा विरोधी गठबंधन की बैसाखी पर एक तकनीकी खामी के बल पर बहुमत सिद्ध कर पाए थे यह कहते सुना था कि जनता ने हमें बहुमत दिया है इसलिए हम जो भी फैसला करें उस पर आप टोकने वाले कौन होते हैं और आप आपु कर आरसी लखि रीझति लखवारि पार्टी तो प्रथम दिवस से ही पुकारती आ रही है कि जनता ने हमें इतने भारी बहुमत से जिताया है इसलिए हमारे सामने संविधान और विधान और परंपरा की मर्यादाएं क्‍या होती हैं।
ये जिस अधिकार का मुक्‍त उपयोग करते च माह आपको अपने काम का हिसाब देंगे और आप की हर सलाह पर ध्‍यान देंगे। मुल्‍लावादी निरंकुशतावाद के समाजवादी, साम्‍यवादी और कांग्रेसी संस्‍करणों के बीच लोकतन्‍त्र का सम्‍मान करने के लिए प्रतिश्रुुत, अपनी सक्रियता से उनको पूरा करने को आतुर, और जनता के प्रति जवाबदेही का निर्वाह करने की एक अभूतपूर्व परंपरा स्‍थापित करने वाले व्‍यक्ति से ये सभी निरंकुशतावादी जवाब तलब करते हैं, मोदी चुप क्‍यों है? मोदी क्‍यों नहीं बाेलता ? मोदी इस पर क्‍या कर रहा है? उसका छप्पन इंच का सीना कहां गया? सभी कार्यों विचारों के लिए मोदी को उत्‍तरदायी बनाने वाले क्‍या इस बात के लिए आतुर नहीं है कि वह तानाशाह बना दिया जाये और उनके ही प्रश्‍नों का जवाब दे तो यह कहने का अवसर निकाल लें कि वह तानाशाह है? अभी अभी एक मित्र ने याद दिलाया कि आपात काल से भी बुरी अवस्‍था में देश जाते जाते रह गया, बचा लिया सीजेआई ने पर यह नहीं देख पाये कि दोनों उस गुत्‍थी काे सुलझाने के लिए तैयार हो गए हैं जिसका एक इतिहास है और जिसकी जटिलता पर लगातार बहस की जाती रही है।

बहकने की आदत देखिए, मैं तो यह कहना चाहता था मोदी को इस देश की रगों का इतना अच्‍छा ज्ञान है कि लोग उसको गालियां देते हैं तो उन गालियों की उल्‍टी चपेट से अपने सारे किए कराए पर पानी फेर देते हैं। लोग किसी न किसी बहाने उसका नुक्‍स निकालने के सामूहिक अभियान में अपनी सक्रियता दिखाने के लिए अपनी खुन्‍दक निकालते हैं और उसके अपने लिए खन्‍दक खुदती चली जाती है और विश्‍वसनीयता कम होती जाती है।

लोग सारे सामाजिक, लोकतांत्रिक सरोकारों को ताक पर रख कर मुसलमानों काे अपना वोट बैंक बनाने के लिए नंगा नाच करने लगते हैं और कुछ कुयोग से और कुछ नासमझी से यह हिसाब तक नहीं लगा पाते कि पन्‍द्रह या बीस प्रतिशत का कितना हिस्‍सा उनके हिस्‍से में आएगा और हिन्‍दुत्‍व के प्रति घृणा पैदा करते हैं, वहां मोदी को इस बात की समझ है कि मुल्‍लावाद से जितना आहत भारतीय समरसता है, जितने पीडित हिन्‍दू हैं उससे कई गुना उत्‍पीडित और अपमानित
मुसलिम महिलाएं हैं जिनमें तलाक की दहशत में रख कर अधिकांश को तो मानापमान के प्रति संवेदनशून्‍य तक बनाया जा चुका है। परन्‍तु शिक्षा ने यह चेतना उनके भीतर भी जगाई है कि उन्‍हें इस जलालत से मुक्‍त किया जाना चाहिए। मुस्लिम बुद्धिजीवी वर्ग को उनके साथ आना चाहिए वह नहीं आ पाता। अपनी औरतों की तरहा वह भी अपने मुल्‍लों मौलवियों से डरा हुआ है। इसलिए खुला विद्रोह भले न हो मुस्लिम महिलाओं का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा केवल भाजपा से यह आशा लगा सकती है कि वह उन्‍हें इस अपमान से मुक्ति दिलाए और बिना किसी को अलग थलग किए, न्‍याय और समानता के आश्‍वासन से ही उनका समर्थन उससे अधिक पाया जा सकता है जितना वोट बैंक बनाने की कसरत में अनर्थ करने को उतारू दल पाने की आशा कर सकते हैं।

देश और समाज को तोड़ने वालों के समक्ष सबको जोड़ने और सम्‍मानित जीवन प्रदान करने की यह राजनीति अपने विरोधियों पर इतनी भारी पड़ रही है कि देश को तोड़ कर सत्‍ता में आने का समना देखने वाले स्‍वत: टूटते और दृष्टि फलक से ओझल होते जा रहे हैं, हमारे वाचाल बुद्धिव्‍यवसायियों की तरह । कितना विचित्र संयोग कि एक दिन पहले मेरे मन में जो खयाल आया वह पहले से ही इस आदमी की योजना में था ।