Post – 2016-10-24

भारतीय राजनीति में मोदी फैक्‍टर -17ग

यह बताओ तुम जो कह रहे थे इन हास्‍यास्‍पद बातों का कुछ आधार तो है, उनके पास वह आधार भी नहीं, यह समझ में नहीं आया। सचाई तो इससे उल्‍टी है, उनके पास तो ग्रीक सम्‍यता और उसकी उपलब्धियां थीं, हमारे पास पुराण और बेद न वैसा सुथरी सोच न वैसा सुलझा विचार । पढ़ा तो होगा।

कल्‍पनाओं का एक भौतिक आधार होता है। वे अतिरंजित होती है, अव्‍यवस्थित होती हैं, पर निराधार तो स्‍वप्‍न के बेतुके टुकड़े भी नहीं होते। आवश्‍यकता उस सचाई तक पहुंचने की होती है।

आकांक्षाएं होती है, यह चाह हो सकती है कि मैं भी पक्षियों की तरह उड़ जाऊं, ऐसे पक्षी की कल्‍पना हो सकती है जो उड़ान भर कर सूर्य के पास पहुंच जाय और उसके पंख जल जायं, उनके आधार पर उड़न तश्‍तरियों की कल्‍पना कर ली जाय, पुष्‍पक विमान की कल्‍पना कर ली जाय तो कहोगे इसका कोई भौतिक आधार तो होगा। तुममें और इन हास्‍यास्‍पद लोगों में कोई अन्‍तर है ? इसको काव्‍य में प्रस्‍तुत किया जाय तो तुम इसके पीछे सचाई तलाशने लगोगे।

नहीं तलाशोगे तो मूर्खों की तरह बात करोगे जैसी वे करते हैं । हमारी इन आकांक्षाओं ने कि हम अमुक जैसे हो जायं तितली जैसे, सुए जैसे, कोयल जैसे, या जैसे फूल लताओं पर, वृक्षों पर लदे रहते हैं वैसे ही फूलों से हम शोभित होते, इन कामनाओं का सभ्‍यता के विकास में और विज्ञान के भी उदय में कम भूमिका नहीं है। इनसे अलंकरण, वस्‍त्र, अलंकरण, संगीत, नृत्‍य का ही विकास नहीं हुआ, हमारी संवेदनाएं समृद्ध हुई हैं। इनके इतिहास में जाने की फुर्सत नहीं। पर सचाई का पता चल सकता है। उस अतिरंजना से भी कि कोई ऐसी ऊंची उड़ान भरने वाला गिद्ध हो सकता है जो सूर्य तक पहुंच सके। इसकी सचाई यह है कि हमारा खगोलीय ज्ञान उस समय तक विकसित न था। हम नहीं जानते थे कि धरती से सूर्य की दूरी कितनी है। कहीं इनसे हमारी उपलब्धि का पता चलता है, कहीं सीमा का, कहीं आकांक्षा का पर इस ललक के साथ इस प्रयत्‍न का भी पता चलता है कि कुछ लोगों ने संभव हैं इसके उपाय तलाशे हो । उड़ कर ऊंचा पहुंचने या ऊंचाई पर किसी चीज को पहुंचा देने की कामना से पतंग का आविष्‍कार हुआ यह तो मानोगे।

मैं यह तो मान लूंगा जब कि तुम मान लोगे कि हवाई जहाज का आविष्‍कार पतंग के आविष्‍कार का परिणाम है।

धी और धीरज में एक संबंध है, जिसमें सोचने विचारने का धैर्य नहीं वह किसी बात को समझ भी नहीं सकता। तुम छलांग क्‍यों लगाते रहते हो। संबंध यह है कि यह प्रयोग यहीं तक पहुंचा। अगला प्रयोग तुम मानना चाहो तो भारत में हुआ लगता है जिसमें विशाल पंखों वाले एक यन्‍त्र की कल्‍पना की गई और पुष्‍पक विमान का अर्थ फूल का विमान न समझ लेना, इसका अर्थ है अत्‍यन्‍त हल्‍का, ऐसा यंत्र जो हवा में उड़ सके । चौथी शताब्‍दी या इससे कुछ पहले यह प्रयोग किया गया कि यदि मजबूत परन्‍तु हल्‍की लकड़ी का ऐसा यंत्र बनाया जाय जिसके बीच में एक पेटी हो और दोनो ओर पंख लगे हो, और उस पेटी में कोई ऐसा द्रव्‍य भरा जाय जिसे गर्म करें तो वह ऊपर की ओर उठे तो वह कुछ दूर तक पक्षी की तरह उड़ ही नहीं सकता अपितु उस पर बैठ कर कुछ दूर की दूरी आप हवा में उड़ते हुए पार कर सकते हैं पुष्‍पक विमान की कल्‍पना उसी का एक विकसित रूप है।

”यार तुम मेरे घर में बैठे हो, तुम्‍हारी इस वाहियात बात से बचने के लिए भाग कर कहीं जा भी नहीं सकता। तुम्‍हारे दिमाग पर इन दिनों सचमुच सब कुछ जहां में हमसे है का भूत सवार हो गया है।

मैं यह नहीं कह रहा कि राइट बंधुओं ने अपना विचार समरांगणसूत्र से लिया था, कहता यह हूं, जो पहले कह आया, कि प्रत्‍येक आविष्‍कार का एक आर्थिक आधार होता है, वह मिल गया और किसी की जरूरत उससे पूरी होती दिखी, उस पर उतना धन और श्रम व्‍यय करने को तैयार हो गया तो वह आविष्‍कार वाणिज्यिक स्‍तर तक पहुंच जाता है, यदि नहीं मिला तो खेल बन कर या अविकसित रूप में रुका रह जाता है जैसा भारतीय प्रयोग के साथ या दुनिया के दूसरे प्रयोगों के साथ हुआ। तुम क्‍या समझते हो, भाप की शक्ति का पता पहले उन लोगों को न था जो आसवन करते थे परन्‍तु तब पूजीवादी आकांक्षाएं नहीं पैदा हुई थीं कि इनका अपेक्षित दिशा में विकास किया जा सकता और फिर इसकी जटिलता को देखते हुए बहुत थोड़े समय में ही इतने सारे पुर्जे, रेल का रास्‍ता, सब संभव हो गया। मैं जिस आविष्‍कार की बात कर रहा हूं और जो खेल बन कर रह गया उसका जो विवरण है वह विश्‍वसनीय लगता है। मैं इसे यथातथ्‍य दे रहा हूं। किसी जानकार से समझ लेना:
लघुदारुमयं महाविहङ्गं दृढसुश्लिष्टतनुं विधाय तस्य
उदरे रसयन्त्रमादधीत ज्वलनाधारमधोऽस्य चातिपूर्णम्॥ ९५
तत्रारूढ: पूरुषस्तस्य पक्षद्वन्द्वोच्चालप्रोज्झितेनानिलेन
सुप्तस्वान्त: पारदस्यास्य शक्त्या चित्रं कुर्वन्नम्बरे याति दूरम्॥ ९६
इत्थमेव सुरमन्दिरतुल्यं सञ्चलत्यलघु दारुविमानम्
आदधीत विधिना चतुरोऽन्तस्तस्य पारदभृतान् दृढकुम्भान्॥ ९७
अय:कपालाहितमन्दवह्निप्रतप्ततत्कुम्भभुवा गुणेन
व्योम्नो झगित्याभरणत्वमेति सन्तप्तगर्जद्ररसरागशक्त्या॥ ९८
हंसना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपादेय है । रुक रुक कर हंसना फेफड़े की सेहत के लिए लाभकर है, और हंसी को रोक कर सोचने समझने की आदत डालना दिमाग के लिए अच्‍छा है।