भारतीय राजनीति में मोदी फैक्टर -17ख
”यार तुम तो ऋण को भी धन बना देते हो। कहां से यह उल्टी विद्या पाई है ।”
”उल्टी को सीधी करने को तुम उल्टी विद्या कहते हो । तुम्हारी सोच ही ऋणात्मक रही है तो इसमें मेरा दोष । तुम कहते हो यह ऋण (-) है मैं कहता हूंं ऋण को काट दो तो धन (+) बन जाएगा। गणित का नियम भी मेरी ही बात करता है ऋण का ऋण धन होता है। लेकिन यह अकेली मेरी सोच नहीं है, यही सोच उस आदमी की भी है जिसे तुम गालियां देते नहीं थकते। तुम्हें याद है उसने चुनाव अभियान में ही एक पुरानी बात दुहराई थी । यदि आपकी सोच नकारात्मक है तो आप कहेंगे गिलास आधा खाली है, यदि सकारात्मक है तो कहेंगे, गिलास आधा भरा हुआ है। यह कोई नया दृष्टान्त न था, बहुत कुछ हमारे पास पहले से है, सवाल है कि जो कुछ है उसमें से तुम चुनते क्या हो, निराशा या आशा। तुम कहते थे आबादी का विस्फोट हो रहा है। इसको ले कर कई तरह की सांप्रदायिक राजनीति की जाती थी, उसने उसे उलट दिया, हम सवा सौ करोड़ की ताकत रखते हैं और एक समय में जब दूसरे अनेक देश आबादी में गिरावट के शिकार है, हम दुनिया को कुशल मजदूरों की आपूर्ति कर सकते हैं। यह नहीं कि यह आदमी चाहता है कि हमारी आबादी और उसके साथ हमारी समस्यायें बढ़ती जायं। उसकी सोच है कि जिसे हम रोक नहीं पा रहे हैं, जिसके विस्तार से घबराहट पैदा हो रही है, पहले उस घबराहट पर काबू पायें फिर दूसरे उपाय करें और यह है निराशावादी सोच को आशावाद में ढालना।”
वह हंसने लगा । ताली बजा कर बोला, ‘बहुत खूब, बहुत खूब ।’
‘तुम दिन भर बहुत खूब कहते रहो तो भी यह समझ न पाओगे कि यह सचमुच बहुुत खूब है। तुम कहते थे विकलांग, यह कहता है दिव्यांग। दिव्यांग का मतलब जानते हो।”
उसे हंसने का एक नया अवसर मिल गया।
”दिव्यांग का मतलब होता है, अपने भौतिक अभाव को पूरा करने की जो आंतरिक सोच और आत्मबल पैदा होता है वह सर्वांग सुडौल लोगों में नहीं हो सकता। यह मात्र शब्दों का खेल नहीं है, एक मनस्वी की गहरी दृष्टि है और यह दृष्टि उसने अपने अभावों से जूझते हुए विकसित की है । तुम जानते हो हमारे अधिकांश सर्जक और कलाकार किन्ही न किन्ही बाध्यताओं, व्याधियों और कर्इ बार तो मानसिक रुग्णताओं के शिकार रहे हैं। महानतम रचनाकार इन्हीं में से निकले हैं। कालिदास, वाल्मीकि, व्यास, तुलसीदास, सूरदास, घनानंद, निराला, मुक्तिबोध नाम गिनते जाओ देश में भी विदेशों में भी। पर इसकी समझ तुम्हें नहीं है, उस आदमी को है जिसकी डिग्रियां तलाशते फिरते हो। मैंने क्या कहा था, कहा था यह हमारे देश का सबसे तेजस्वी और योग्य प्रधानमंत्री है क्योंकि इसने अभाव देखें है, कई तरह के अनुभवों से गुजरा है जिससे गुजरने का हमें अवसर मिला है और इसने पिछड़ी जाति का होते हुए जाति की राजनीति किए बिना अगड़ी जातियों के बीच सेवा, कर्तव्य निष्ठा और दूरदृष्टि से उस चक्रव्यूह को भेदते हुए यहां तक का रास्ता तय किया है परन्तु इतने से ही सन्तुष्ट नहीं है। अभी तक सभी जोड़ने, बांटने, लड़ाने और धोखाधड़ी की राजनीति की है, यह पहला व्यक्ति है जो जोड़ने, मिलाने, और आगे बढ़ने की राजनीति करता है। परन्तु तुम उसके प्रताप को देख नहीं पाते। आंखें चुराते हो और आलोचना की जगह चुगलियां करते फिरते हो। इसके बारे में भी उसकी दृष्टि बहुत साफ है, ‘जिसे जो काम आता है वह करे ।’ तुम्हें यही काम आता है इसलिए तुमको उसकी धनात्मक उपलब्ध्यिों को देख तक नहीं पाते। देखा हो तो बताओ ।’
उसका मुंह उतर गया था और मोदी तो सामने थे नहीं, वह मुझसे भी नजरें चुरा रहा था ।