भारतीय राजनीति में मोदी फैक्टर -17
‘तुमको पता है, मोदी की टीम का वश वश चले तो ये देश को कहां ले जाएंगे। एक ऐसे अतीत की ओर जिसमें पुष्पक विमान उड़ते थे, अंग प्रत्यारोपण होता था, एक जेनेटिक इंप्लांट हाेता था।’
‘इससे तुम्हारा मनोरंजन होता है या नहीं, यह तो बताओ।’
‘मनोरंजन तो होता है, यार । हंसते हुए पेट में बल पड़ जाता है।’
‘एक समय था तुम कहते थे, यहां तो कुछ था ही नहीं, सब कुछ बाहर से आया है। यहां तक कि सभ्य मनुष्य भी, सभ्यता भी, भाषा भी। तब तुम्हें अपने हाल पर रोना आता था या नहीं, यह भी ताे बताओ।
‘मुझे अपने विद्वानों की बौद्धिक दरिद्रता पर रोना आता था, क्योंकि इससे जो पस्ती पैदा होती थी उसी का परिणाम थी यह सोच कि हमसे न तो पहले कभी कुछ हुआ है, न आगे कुछ हो सकता है। हमने न पहले कुछ बनाया है न बना सकते हैं। हम मंगाएंगे और गर्व से बताएंगे, यह इंपोर्टेड माल है। ये कहते हैं हमने बनाया था, बना सकते हैं और बना कर दिखा देंगे ।
‘यदि दो तरह के मूर्खों में मुझे चुनाव करना हो तो मैं उन मूर्खों के साथ खड़ा होना पसन्द करूंगा जिनकी बेवकूफियां से मनोरंजन भी होता है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है। हमने दुनिया में किसी से पहले यह किया है और कर सकते हैं। तुम दूसरे वाले मूर्खों के साथ खड़े होगे जिनके दिमाग में पश्चिम का मलबा भरा हुआ है ।
‘तुम्हें पता है उनकी बेवकूफी उसी स्तर की है जिस स्तर की पश्चिम की बेवकूफी है। तुम्हें याद है, जेम्स मिल का वह वाक्य, ‘आल थियरीज फ्राम दि वेस्ट।’ दुनिया में जितना भी ज्ञान और कौशल है सब यूरोप से बाहर गया है। इसे तुम मान लेते हो।
‘वे कहते हैं दुनिया का सारा ज्ञान पूर्व से गया हुआ है, यह सुनकर तुम्हें घबराहट होती है । तुम पश्चिमी मूर्खो के कहने पर चलते हो, मै अपने मूर्खों पर हंसता भी हूं और खुश भी होता हूं क्योंकि जिन्हें काम करना है वे उनके नारो से नहीं अर्थव्यवस्था के दबावों से काम करते हैं, दूसरे सरोकारों से काम करते हैं जिनमें अतीत का दखल नहीं इसलिए इस तरह की डींग से कोई नुकसान नहीं होने वाला।’
लगा वह मेरी बात से सहमत है।
मैंने मजा लेते हुए कहा, ‘और एक बात समझ लो उनकी बेवकूफियों में भी कुछ सचाई है और पश्चिम की इस समझदारी में इससे अधिक बेवकूफियां हैं।’