भारतीय राजनीति में मोदी फैक्टर – 16
मैं गया तो था अपनी डाक लेने । दोस्त से मुलाकात तो होनी ही थी। बैठा । चाय भी पीनी ही थी। पर चाय से पहले ही भाई ने बड़े भोलेपन से पूछा, ”तुम्हें रात नींद तो आई थी न ?” एक पल रुक कर वह भोलेपन की मुद्रा से बाहर आते हुए मुस्कराने लगा।
कोई बात मेरी समझ में कुछ देर से आती है इसलिए चुस्की लेते हुए सोच ही रहा था कि उसका इशारा किस बात की ओर हो सकता है कि उसने ऊपर से जड़ा, ”देख कर सदमा तो लगा होगा ।”
बात अब भी मेरी समझ में नहीं आई, ”तुम क्या देखने की बात कर रहे हो ?”
”दुख तो तुम्हारी दशा सोच कर मुझे भी हुआ था। ओबामा ने एक अलबम जारी किया है उसमें दुनिया के पचास खास लोगों के बीच पहली जगह मनमोहन सिंह की है और मोदी को जगह ही नहीं मिली है।”
मैंने चिन्ता की मुद्रा अपना ली, ”यार तुमने तो मेरे किए कराए पर पानी फेर दिया। रोज मैं इतनी मेहनत से फेसबुक पर समझा कर लिखता हूं कि तुम जैसों की अक्ल में कुछ सुधार होगा, तुम तो ऐसे चिकने घड़े हो कि कोई असर ही नहीं होता।”
उसने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं, अपने ही रौ में बोला ”सदमा अधिक गहरा लगता है।”
मैंने भी उसकी बात अनसुनी करते हुए कहा, ”अभी दो दिन पहले ही लिखा था, ‘पढ़ा लिखा मूर्ख अनपढ़ मूर्खों से अधिक बड़ा मूर्ख होता है क्योंकि वह अपनी अक्ल से काम नहीं लेता, दूसरों की अक्ल से काम लेता है जिनके विचारों को वह जानता है, उनके पीछे छिपे इरादों को भले न जानता हो। अनपढ़ आदमी उसका जितना भी दिमाग है, थोड़ा ही सही, उसी से सोचने को बाध्य होता है, इसलिए दूसरे मामलों में शिक्षित लोगों से पीछे रह जाने के बावजूद वह उन प्रलोभनों से कम प्रभावित होता है जिसका शिक्षित व्यक्ति शिकार हो जाता है, इसलिए वह सही फैसले करता है।’ कुछ सुधार आया तुममें ? फिर वही अमुक ने अमुक का यह मूल्यांकन किया है, जब कि वह व्यक्ति तुम्हारे सामने है! दूसरों के कहे किए पर इतना भरोसा कि तुम स्वयं अपनी अक्ल से काम लेते हुए उसका मूल्यांकन भी नहीं कर सकते ?”
उस पर कोई असर नहीं पड़ा, ”झेंप मिटा रहे हो । उस अलबम से जो सचाई उभरती है, उसे सीधे क्यों नहीं देखते । कहां मनमोहन सिंह और कहां मोदी । बेचारे का सूट भी बेकार गया। जाकर मापो छाती भी छब्बीस इंच की हो चुकी होगी, अब पुराना सूट फिट नहीं आएगा।”
यह बताओ, यदि सोनिया गांधी ने कोई अलबम बनाया होता तो क्या वह इससे भिन्न होता?”
उसने कहा, ”मैं ओबामा की बात कर रहा हूं । ह्वाइट हाउस की। दस नंबर की नही।”
”मैं भी ओबामा की ही बात कर रहा हूं । सोनिया का तो नाम इसलिए ले लिया कि तुम्हारी आंख के सामने से पर्दा हट जाएगा। तुम स्वयं सोचो, सोनिया इसलिए उन्हें पहले नम्बर पर रखती क्योंकि उन्होंने अपमान झेला पर मुंह नहीं खोला। फैसले वह लेती रहीे, हस्ताक्षर मनमोहन जी को करने पड़ते थे। शरीफ आदमी जो ठहरे, उनका आदेश फाड़ कर फेंक दिया जाय तो भी मुस्करा कर रह जाते थे।
उनका जो हाल सोनिया के सामने था वही हाल अमेरिका के प्रसिडेंट के सामने था। वित्त प्रबन्धन का उनको इतना अच्छा ज्ञान कि विश्वबैंक तक को उनकी सेवाओं की जरूरत पड़ी, इसके बाद भी उनके शासन काल में भारत का बजट अमेरिका के संकेत पर बनता था ।”
वह हंसने लगा, ”खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।”
मैंने उसका फिकरा सुना ही नहीं, ”तुम्हें याद है उनका वह आदेश जिसमें सेना को अपने पेट्रोल का खर्चा 20 प्रतिशत कम करने को कहा गया था। इसका मतलब था अपनी प्रतिरक्षा क्षमता में जो पहले से ही कम है, बीस प्रतिशत की कमी। याद है उन्होंने एक बार खाद्य सबसिडी कम करने का आदेश अर्थव्यवस्था पर बोझ कम करने के लिए दिया था? यह भी अमेरिकी इशारे पर ही था। घरेलू विरोध के चलते दोनों अवसरों पर अपने आदेशों को वापस लेना पड़ा था। इसलिए अमेरिका अपने सामने मुंह न खोलने वाले सरल स्वभाव के मनमोहन सिंह को पहले नंबर पर न रख कर मोदी को रखेगा जिसने अमेरिका में पहुंच कर कहा था जब मैं पहले भारत में आतंकवाद की बात करता था तब अमेरिकी कहते थे, कि यह आपके यहां के कानून और व्यवस्था की विफलता है। जब अपने पर हमला हुआ तो उसको समझ में आया कि आतंकवाद एक समस्या है ।”
उसने बीच में कुछ कहना चाहा, मैंने मौका ही न दिया, ”क्या उस मोदी को अपने अलबम में स्थान देगा जिसने यूएन के मंच से कहा कि अच्छा आतंक वाद और बुरा आतंकवाद की बात करते हो, परिभाषित करो कि इनसे तुम्हारा क्या मतलब है। तुम्हें केवल एक ही दृश्य याद आता है मोदी का कोट और ओबामा का बार बार गले मिलना पर यह भूल जाता है कि मोदी ने उनके घर मे जा कर कहा, अमेरिका आतंकवाद के प्रति दोहरी नीति अपनाता है, वह इसके बारे में सीरियस नहीं है और अपनी कूटनीतिक दक्षता के बल कर अमेरिका को भी दबाव में ले लिया।”
”क्या तुमको याद है, यह तो नई नई बात है यार, मोदी ने रूस के साथ भारत के संबंधों को एक नया तेवर देते हुए कहा, ‘एक पुराना दोस्त दो नए दोस्तों के बराबर होता है।’ ऐसा उस समय जब अमेरिका विश्व की महानतम शक्ति बन चुका हो, कहने का साहस किसी दूसरे का हो सकता है और यह केवल कथन नहीं था, रूस के साथ उसने सबसे बड़ा और सबसे भरोसे का रक्षा सौदा किया और इससे परोक्ष सन्देश दिया कि हमें आज भी अमेरिका से अधिक रूस पर भरोसा है। जो नहीं कहा, वह यह कि यदि हम अमेरिकी रक्षा उपकरण खरीदें भी तो जरूरी नहीं वह हमें अद्यतन माडल दे, या यह कि बाद में उसके साज सामान के नाम पर हमें अपने हाथ की कठपुतली न बना ले। इसलिए फ्रांस अमेरिका से अधिक भरोसे का है ।
”मैं लिखता हूं तो तुम्हारे ही फायदे के लिए पर मेरी बात समझने की योग्यता तुममें नहीं आ पाई है, सोचते हो, तुम्हारा मित्र होने के नाते मैं समझदार कैसे हो सकता हूं। अभ्यास करने से, धीरे धीरे मेरी बात भी समझ में आएगी, पर मोदी तो सीना तान के और दहाड़ कर ये बातें कह चुका है, वह भी तुम्हें सुनाई नहीं दी। उसे भी समझने की योग्यता तुम लोगों में नहीं है। यह अकेले मोदी की कूटनीतिक क्षमता है जिसमें उसने आतंकवाद के सवाल पर व्यापक, लगभग सार्विक, समर्थन जुटाते हुए अमेरिका को भी घेर कर सही रास्ते पर आने को मजबूर किया और यह भी चिन्हित किया कि यदि इसके बाद बहाने बना कर, वह पाकिस्तान को सैनिक सहायता देता है तो समस्त प्रचार साधनों के बावजूद वह विश्व समाज के सामने नंगा हो जाएगा। तुम क्या समझते हो, जिस व्यक्ति ने अपनी दक्षता से अमेरिका को भी नाक रगड़ने पर मजबूर किया, उसको अलग किया, रूस से अभी चार दिन पहले ही सामरिक समझौता किया, अमेरिका के अलबम में उसे स्थान मिलेगा? उसे स्थान न मिलना ही इस बात का प्रमाण है कि अमेरिका को उसने कहां से कहां ला कर खड़ा कर दिया और वह भी केवल कूटनीतिक दक्षता के बल पर।”
उसकी बोलती बन्द । बोलने से बचने के लिए कुछ देर तक बिस्किट चबाता रहा और फिर एक लंबी सांस ले कर बोला, ”तुमने तो आज ही किसी की फेसबुक पर जिसमें कहा गया है कि संघ ने स्वतन्त्रता संग्राम में भाग नहीं लिया, ब्रितानी हुकूमत का साथ्ा देता रहा, हामी भरते हुए अपनी ओर से यह भी जड़ा है कि संघ के लोग खादी से और गांधी टोपी से भी परहेज करते थे।”
मैंने अपनी बात को वजनी बनाने के लिए कहा, ” तुम परले सिरे के मूर्ख हो। जुमले उठा कर चल देते हो । किसी बात को पूरी तरह समझते नहीं। मैंने तो आज से पचीस साल पहले तीसरी दुनिया में एक लंबे लेख में बताया था कि यह लीग की नकल पर बना संगठन है और उसी के कदमों पर चलता रहा है। और कुछ दिन पहले यह भी लिखा था कि गांधी के विरुद्ध उन दिनाें संघ में जिस तरह का दुष्प्रचार किया जा रहा था उसमें मैं इतना उत्तेजित अनुभव करता था कि यदि गोडसे ने गांधी जी की हत्या न की होती, उसकी जगह मैं होता और मेरे हाथ में पिस्तौल होती तो मैं उन्हें गोली मार सकता था। इसलिए यदि दूसरा कोई यह सिद्ध भी कर दे कि गांधी जी की हत्या में संघ का हाथ नहीं था तो भी मैं इसे मानने को तैयार नहीं हो सकता। सच तो यह है कि बहुत सारे संघियों में आज भी गांधी के प्रति, अहिंसा के प्रति गहरी घृणा है और इस माहौल में इस व्यक्ति ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया है जिसका लक्ष्य पुरानी व्याधियों से मुक्त हो कर पूरे देश को, उसका वश चले तो पास पड़ोस के सभी देशों को साथ ले कर आर्थिक विकास और सामाजिक सौमनस्य के उस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके जिसका इससे पहले किसी भारतीय नेता ने सपना तक नहीं देखा।
”बडे भोले हो यार । इतना सब जानते हुए भी धोखे में आ जाते हो। तुम्ही तो कहते हो इतिहास हमें दृष्टि देता है, हम किसी नैदानिक की तरह उसकी जड़ों को देख पाते हैं। और जड़ों में जाने पर जो कुछ दिखाई दे रहा है उसे देखने तक से इन्कार करते हो। तुम मुझे जो समझा रहे हो वही अपने उस मित्र को समझा पाओगे जिसकी पोस्ट पर तुमने हामी भरी है।”
देखो, मैं तुम्हारी और उस मित्र की सदाशयता में विश्वास करता हूं, समझ पर नहीं। तुमको तो फिर भी आधी तिहाई बातें समझ में आ जाएंगी। मेरा वह मित्र तो वर्दी पहन कर सोचता है और हुक्म देने के अन्दाज में फैसले लेता है। और फैसले भी जानते हो कैसे, असरानी वाले अंदाज में, ‘आधे दायें जाओ, आधे बायें और बाकी मेरे पीछे।’ यही हाल है उसका। सोचता है पीछे कुछ रंगरूट तो होंगे ही, मुड़ कर देखने को भी तैयार नहीं होता।”
”जहां तक इतिहास को देखने का सवाल है, पूर्ववृत्त को जानने का सवाल है, कुछ लोग इतिहास को वस्तु की तरह देखते हैं, वे किसी घटना या क्रिया को लेकर बैठ जाते हैं और अपना मत बदलने को तैयार नहीं होते। मनोविज्ञान में इसे फिक्सेशन कहते हैं।
”जो इतिहास को जानते वे जानते हैं कि यह एक प्रक्रिया है । प्रत्येक परिघटना को उसके पूरे आसंग में देखते हैं। उस बदलाव को भी देखते हैं जो एक ऐसी संस्था के जो अपने को सांस्कृतिक कहती थी और राजनीति से परहेज करती थी उसके राजनीति में आने से होता है और फिर राजनीतिक अपरिहार्यताएं जो बदलाव लाती रहती हैं उनके कारण वह रूपान्तरित होती हैं। मैं उसके आज को देखता हूं, तुम उसके कल को देखते हो इसलिए आज को उसका फरेब मानते हो जब कि आज की समझ हो तो कल को बीती गुजरी चीज मान सकते हो। मुझे मोदी की योग्यता से अधिक उसकी महत्वाकांक्षा और उसके अनुरूप साहस पर विश्वास है। वह जिस तरह विश्व समुदाय को घेर कर अपनी बात मनवाने में सफल हुआ है उसी तरह भारत के मेढ़क तौल वाली राजनीति में सबको जोड़ते हुए एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकता है जिसकी उपेक्षा दुनिया का कोई देश न कर सके और जो अपने दम पर खड़ा रह सके।