Post – 2016-10-22

कोई चुनाव उपलब्‍ध विकल्‍पों के भीतर होता है। मोदी उस समय उतने बड़े नेता नहीं दिखाई देते थे जितना बड़ा अवसर आने पर उन्‍होंने अपने को साबित किया। उन्‍हें उस शून्‍य का लाभ मिला था जिसे भरने के लिए जनमन को उनसे उपयुक्‍त कोई व्‍यक्ति नहीं जंचा। मोदी का सबसे बड़ा अपराध यह है कि उन्‍होंने यह नहींं समझा कि उन्‍हें इतिहास ने चुना है जनता ने नहीं। उनको अपने प्रचार अभियान में इतना पैसा और इतने बहादुरी के शब्‍द खर्च करने की जरूरत न थी। कहते आप यदि मुझे इस कार्यभार के योग्‍य समझें तो मैं इसे स्‍वीकार करने को तैयार हूूूं पर मेरा हाथ मजबूत करने के लिए मुझे पूर्ण बहुमत दें तो भी नतीजा वही होता। प्रचार पर बहुत सारा पैसा खर्च हुआ था यह तो सही है। जल्‍दबाजी में कुछ बातें बढ़ चढ़ कर भी कर दी गई थीं। इससे बचा जा सकता था। पर मेरा दुर्भाग्‍य यह है कि सही समय पर लोग मुझसे सलाह लिए बिना ही जो सही समझते हैं कर गुजरते हैं और अगला दुर्भाग्‍य यह कि सही समय पर मैं स्‍वयं भी उतना सही नहीं सोच पाता जितना बाद में समझ पाता हूं। मोदी को अपने प्रचार के लिए अंबानी और अडानी का आभार नहीं लेना था, वह उस निराशा के दौर में घूरे पर खड़े हो जाते तो वह भी टीले मे बदल जाता और ऊपरी सिरे पर समतल हो कर मंच भी तैयार कर देता। प्रचार का काम तो हमारे अधिक समझदार मित्र विरोध करते हुए कर ही रहे थे । अकेला एक स्‍वर था विरोध का और इसमें जो दुर्गुण बताए जा रहे थे वह जनता की नजर में सद्गुण प्रतीत होते थे। आप चीखते थे यह जल्‍लाद है, जनता के पास अखबार तो है नहीं कि वह अपनी बात आप तक पहुंचा सके। पर वह अपनी पस्‍तहिम्‍मती के दौर में आपस में गुफ्तगू करती थी कि इस समय कोई ऐसा नेता आना चाहिए जो…. आगे का अंश सुनना मुझे इतना बुरा लगता था कि पार्क की उस बैठक की श्रव्‍य सीमा से आगे बढ़ जाता था जिसमें यह चर्चा होती थी पर अनसुने वाक्‍यांश को जानता था। आप कहते यह तानाशाह है, और वे कहते, इसी की तो हमे तलाश थी।
आप आज भी अपनी भाषा में बोल रहे हैं, जनता अपनी भाषा में समझ रही है और समझ का फेर यह कि आप ‘समझ के फेर से भयो है हेरफेर ऐसो कोऊ कहै कछू पै सनत कछु और हैं’ की गुत्‍थी तक को नहीं समझ पाए।

काहे के बुद्धिजीवी हो यार । न अपनी भाषा को समझते हो, न अपने साहित्‍य को, न समाज को, न उसकी भावनाओं को और यह तक नहीं समझ पाते कि अपने इन्‍हीं कारनामों के कारण तुम समाज बहिष्क्रित हो चुके हो। समाज मोदी के साथ है तुम रोटी के साथ हो। रोटी भी ऐसी जो फेंकी हुई हो। मोदी समाज का प्रतिनिधित्‍व करता है तुम उस दल या संगठनों का जिनसे तुम्‍हारी दांत कटी रोटी का संबंध रहा है। केन्‍द्रीय मंच पर उस विशेष क्षण में मोदी का कोई प्रतिद्वन्‍द्वी नहीं था या था तो वह लोकरंजन का काम कर रहा था, जैसे आप।

हमारे बुद्धिजीवियों ने जो अपनी असाधारण समझदारी में किन वि