दिल है इस पर तो इख्तियार नहीं
जां है इस पर तो जान देना है
हम हैं होकर भी कुछ नहीं शायद
अक्ल का इम्तहान लेना है।
वह भी देखो तो हमारी न हुई
मशीन भी है और मसीहा भी।
दिल के इतने करीक है शायद
अक्ल को ही जवाब देना है।
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एक दर्द है हम सह कर दिखाएं तो सही
एक जख्म है उसको भुला पाएं तो सही।
एक ख्वाब है बेहोशी से निकला है अभी
उसको बचा कर सच बना पाएं तो सही।
एक आग जो जलती न धुंआ देती है,
हम उसको बुझा करके जलाएं तो सही।
बरबाद करेंगे जिन्होंने खाई कसम
विश्वास करोगे यह जताएं तो सही।
हम जिसको खुदा कहते हैं वह है ही नही
जो है ही नहीं उसको बनाएं तो सही ।
भगवान को इंसानों से है वास्ता क्या
इन्सान को इंसान बनाएं तो सही।