Post – 2016-09-29

समझदारों के बीच एक सही विचार की तलाश- 5

मेरा दोस्‍त ऐसे ही मौकों की ताक में रहता है, आज लंबे अरसे के बाद धमक गया। ”जवाब देना हो तो मुझे जवाब दो। दूसरों को चकमा पढ़ा सकते हो, मुझे नहीं। तुम जानते हो मोदी की जन्‍मपत्री। मुझसे पूछो। वह संघ से निकला बन्‍दा है। तुमको संघ के बारे में कुछ पता है।”

”मैं बचपन में तीन साल, 1946 से 1948 तक शाखा में जाता था। तुमने उसके बारे में सुन कर जाना होगा, मैंने उसे उसमें घुस कर जाना था। वह न उतना डरावना है जितना दूर से देखने वालों को लगता है, न उतना लुभावना जो उसके स्‍वयंसेवकों को लगता है। वे अपने से बड़े और मानवता से छोटे सरोकारों से जुड़े और आत्‍मरक्षा से चिन्तित लोगों का संगठन है। इसका जन्‍म ही असुरक्षा और अनिश्चितता के वातावरण में हुआ था जो आज तक बना रह गया। अपने ढंग का अकेला संगठन नहीं है, न केवल अपने देश तक सीमित। आत्‍मरक्षा की चिन्‍ता नैसर्गिक है । मुझे संघ खंडित मानवता के पोषक सभी संगठनों की तरह नापसंद है क्‍योंकि इसमें हिन्‍दू के हित की चिन्‍ता से अधिक मुसलमानों के अहित की चिन्‍ता थी। नपुंसक प्रतिशोध भाव जो पिछली सदी के दूसरे दशक और फिर जिन दिनों मैं स्‍वयं शाखा में जाता था उन दिनों की सान्निपातिक घटनाओं को देखते हुए सर्वथा स्‍वाभाविक थी। सच कहो तो हिन्‍दुओं के इस भय ने गांधी जी की हत्‍या की थी, गोडसे तो मात्र निमित्‍त था।”

”मैं तो पहले से जानता था कि दाल में कुछ काला है, रस्‍सी जल गई, ऐंठ बनी हुई है। किसी दबाव में, बड़ा बनने या दिखने के लिए संघ को तो छोड़ दिया, रागभाव आज भी बना है। तुम्‍हारे खाने के दांत और हैं दिखाने के दांत और । मोदी की जड़ें समझ में आएं या न आएं, तुम्‍हारी जड़ें उजागर हो गईं।”

”एक और बात जान जो, इससे तुम्‍हें अपने औजार तैयार करने में मदद मिलेगी। मैंने संघियों में वामपंथियों से अधिक भले लोग देखे, कम कमीने पाए, इसलिए मैं कभी किसी को यह जान कर कि उसका संबंध संघ से है, उसे अछूत नहीं मान लेता । सदा ऐसे लोगों से मेरा संपर्क रहा है और वे मुझे कम्‍युनिस्‍ट मान कर मुझसे कतराते रहे हैं, जो मैं हूं नही, पर वे मानते हैं तो नकारता नहीं, जैसे तुम मुझे संघी मान लो तो मैं नकारूंगा नहीं, पूछूंगा, उसके बाद ?

”तुम्‍हें दूसरा जो कहता है, वह परिभाषित नहीं करता, तुम जो हो वही तुम्‍हें परिभाषित करता है और मैं वह हूं जिसके साथ न तुम हो सकते हो न वे। कारण बताने की जरूरत नहीं। जो सोचता है, डर या लिहाज से झुकता नही, वह अकेला होता है, परन्‍तु उसके विचारों के साथ उससे बड़ा संसार उससे जुड़ जाता है जिस तक किसी दल या संगठन से जुड़ कर नहीं पहुंचा जा सकता। इसके बाद भी वह अरक्षित रहता है, या बचा रहता है तो इसलिए कि उस पर अभियोग लगाने वाले भी जानते हैं कि वह उसका पात्र नहीं। इसलिए उसके सामने पड़ने पर उनके हथियार कांपते हाथों से सरक कर नीचे गिर जाते हैं, परन्‍तु पीठ पीछे कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।”

”मैं उनमें से नहीं हूं ।”

”मैं तुम्‍हारी नहीं, समझदारों की बात कर रहा था।”

वह हंसने लगा, ”कभी तुमने उनके बयान पढ़े हैं, उनकी बदजबानी सुनी है, उनकी कारगुजारियों पर ध्‍यान दिया है। वे हिन्‍दु भारत, मुस्लिम मुक्‍त भारत की बात करते हैं और मौका मिला तो ऐसा कर भी देंगे। खैर आज की दुनिया में ऐसा कर तो कोई नहीं सकता, परन्‍तु तूफान तो खड़ा करेंगे ही जिससे नुकसान इस देश का ही होगा।”

”तुम्‍हें एक घटना बताऊं। बचपन में तेरह चौदह साल की उम्र में मै आम पकने के दिनों में चुपके से कि किसी को पता चले, अंधेरे में आम बीनने चल देता था। मेरा आमों का बगीचा घर से दो किलोमीटर की दूरी पर था। मुझे डर नहीं लगता था। अंधेरी रात थी और हवा के झोंके से कुछ जल्‍द ही चल पड़ा था। निचाट रास्‍ते पर एक ताड़ के पेड़ के निकट पहुंच रहा था कि ताड का सूख कर लटका हुआ पत्‍ता तने से टकरा कर डरावनी आवाज पैदा कर रहा था। ताड़ के पेड़ पर नटों का निवास होता है, क्‍योंकि कई बार ताड़ी निकालने वालों की मौत गिरने से हो जाती और वे नट बन कर उसी पेड़ पर निवास करते हैं। मैं हनुमान चालीसा पढ़ने लगा फिर भी डर से कांप रहा था, तभी साहस जुटाया और जोर से चीखने लगा, ”आजा, नट । तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कांपते और यह चीखते हुए मैं उस पेड़ के नीचे से गुजर गया और न तो उस नट की हिम्‍मत मेरे सामने आने की हुई न वह मेरा कुछ बिगाड़ सका।”

”तुम कह क्‍या रहे हो।”

”यह कि जो तुम्‍हें युद्ध का रणनाद सुनाई देता है, ललकार सुनाई देता है, वह डरे हुओं की चीत्‍कार भी हो सकती है। जिसे तुम डरावना कह रहे हो, वह स्‍वयं डरा हुआ हो सकता है। देखना यह होगा कि डरने का कोई कारण है या नहीं और उसे दूर कैसे किया जाय। लेकिन यह भी सच है कि डरे हुए की मनोदशा न समझ पाने वाले उससे डरे रह सकते हैं।

”एक किस्‍सा जो मैंने अक्षरज्ञान के बाद पहली में पढ़ा था, तुम्‍हें सुनाऊं तो समझ जाओगे।”

वह चुप रहा ।

”एक धुनिया था जो रुई धुनने के लिए कहीं जा रहा था। रास्‍ते में जंगल जैसा कुछ पड़ा। धुनिया को एक गीदड़ दिखाई दिया। धुनिया ने सुन रखा था कि जंगल में शेर होते हैं, परन्‍तु शेर उसने देखा नहीं था। उधर गीदड़ ने भी शिकारियों के बारे में सुन तो रखा था पर कभी पाला नहीं पड़ा था। आमना सामना हुआ तो दोनों को अपनी जान की पड़ी थी। गीदड़ अपनी चालाकी के लिए जाना जाता है और यह गीदड़ भी अपनी ख्‍याति के अनुसार चालाक निकला, इसलिए उसने ही पहल की:
कांधे धनुष हाथ में बाना । कहां चले दिल्‍ली सुल्‍ताना ।
धुनिये की जान में जान आई कि यह मुझे शिकारी समझता है, उसने जवाब दिया,
‘बन के राव बड़े हो ज्ञानी । बड़ों की बात बड़ाें ने जानी ।
”यहां भी, दो डरे हुए एक दूसरे को डरावना समझते दिखाई देते हैं। एक की चिन्‍ता यह कि वह अल्‍पमत में है इसलिए असुरक्षित है और दूसरे की चिन्‍ता यह कि तुम्‍हारी कृपा से देश बंट गया, तुम कहते हो, पाकिस्‍तान मुसलमानों का देश और हिन्‍दुस्‍तान मुसलमानों को खुश रखने का देश। यदि उसे किसी बात की शिकायत हुई तो हिन्‍दुओं की खैर नहीं।”

”यह तुम्‍हारी गढ़ी हुई शिकायत है। किसने कब कहा कि भारत मुसलमानों को खुश रखने वाला देश है, यदि …”

”तुम क्‍या समझते हो, कांग्रेस केवल आर्थिक घोटालों के कारण हारी ? नहीं! घोटाले तो बस उसका एक घटक थे, हारी इस नीति के कारण ही। अब सोचो, मनमोहन सिंह का सोनिया प्रेरित वह कथन कि इस देश पर पहला हक मुसलमानों का है। यह नीति कि मुसलमानों को, और केवला मुसलमानों को पन्‍द्रह लाख का कर्ज बैंक से दिया जाएगा। यह दूसरी बात है कि इसे लेनेवाले यह सोच कर डर गए होंगे कि लेते समय एक तिहाई तो कमीशन में चला जाएगा और भरते समय कुल रकम व्‍याज सहित चुकानी होगी। और जो कमी रह गई थी वह पूरी हो गई उस सांप्रदायिकता विरोधी प्रस्‍ताव से कि यदि कहीं पर कोई दंगा होगा और उसमें एक पक्ष हिन्‍दू होगा तो बिना जांच पड़ताल हिन्‍दुओं को जिम्‍मेदार माना जाएगा क्‍योंकि वे बहुमत में हैं और उनके विरुद्ध ही कार्रवाई होगी। कांग्रेस की सरकार तो गिर गई और वह कानून न बन पाया, परन्‍तु उत्‍तर प्रदेश की सरकार उसे लगातार अमल में लाती रही और बिहार सरकार चेहरा देख कर। क्‍या अब भी कहोगे कि हिन्‍दुओं को असुरक्षित अनुभव करने का कोई कारण नहीं है और भाजपा की विजय में और इन प्रस्‍तावों और योजनाओं का मौन समर्थन करने वालों की दुर्गति में इसका हाथ नहीं है ?

”इस भयावह वातावरण को तैयार करने में न भाजपा की भूमिका थी, न संघ की। यह तुमने तैयार किया है, तुम सभी ने मिल कर। भय और आतंक और अविश्‍वास की खेती तुम करते रहे हो और आज तुमको इस बात से घबराहट हो रही है कि यदि समाज इस राज को समझ गया तो आज तो तुम सत्‍ता से बाहर हो ही फिर कभी वापसी का अवसर नहीं मिलेगा। बहुत धीरे धीरे ही सही, यह समझ फैल रही है कि यदि हमारा इस देश से बाहर कोई ठिकाना नहीं है, साथ ही रहना है, साथ ही सफर करना है, तो भले हमारे बीच प्‍यार हो या नहीं, इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि दोनों इस तरह रहें, इस तरह बोलें, क्रिया और प्रतिक्रिया करें कि निर्वैरता का वातावरण तैयार हो सके । इसमें तुम्‍हारी भूमिका नकारात्‍मक रही है और मोदी इसी निर्वैरता के लिए पहले दिन से प्रयास कर रहा है। इसी से घबरा कर अब तुम चीत्‍कार कर रहे हो। जैसा मैंने कहा था, तुम्‍हारी ललकार एक सामूहिक चीत्‍कार है, मृत्‍युनाद । तुम्‍हारे साथ उस सेक्‍युलरिज्‍म की मौत जो सांप्रदायिकता भड़काने का जाल बन गया था।

वह सिर खुजलाने लगा।

मैंने आखिरी जुमला जड़ा, ”आज अदालतें बहस कर रही हैं, कल मैं बताऊंगा कि तुम सभी देशघाती हो। अपने ही संविधान और विधान को नहीं मानते और इस बात पर गर्व करते रहे हो कि कौन इनका किस सीमा तक उल्‍लंघन कर सकता है।”