Post – 2016-09-10

[मैंने कल की पोस्‍ट में जिस बचपन की वापसी का जिक्र किया उसका अर्थ यह कि इस तिथि से आगे मैं अपनी पोस्‍ट छोटी टिप्‍पणियों के साथ उन विषयों को अलग रखते हुए करूँगा, जो एक दूसरे से जुड़े होने के कारण जरूरी भी लगते हैं, फेसबुक की सीमाओं में कुछ थकान भी पैदा करते हैं। सभी टिप्‍पणियों के शीर्षक ऊपर होंगे, जिसे जिसमें अधिक रुचि हो उसे पढ़ सकता है और बाकी से बच सकता है। मेरे दो आत्‍मीय मित्र कमलेश और रामसेवक इस वर्ष चले गए। कमलेश के विषय में इतना भी नहीं लिख सका। शैली में यह परिवर्तन उनके प्रति मेरी श्रद्धांजलि बने । हॉं मैं अपना दैनिक कोटा पूरा करूँगा, इसलिए टिप्‍पणियॉं पहले अलग अलग आऍेगी, एकाधिक होंगी, पर जरूरी नहीं कि आप सभी को पढ़े । अगले दिन ये उस तिथि के खाते में एक साथ संकलित हाेंगी। कोशिश करूँगा भाषा सरल हो सके। सबसे पहले यही समस्‍या:]

विचार और भाषा

विचार की स्‍पष्‍टता, भाषा की सरलता में व्‍यक्‍त होती है। बोझिल और उलझे हुए प्रयोग नहीं आते। वाक्‍य सरल होते हैं। वाक्‍यरचना संयुक्‍त वाक्‍यों का रूप ले भी ले, जटिल या गु‍ंफित वाक्‍यों से बचा जाता है। परन्‍तु यह विचार और भाषा की सिद्धावस्‍था है और इस सरल को भी सभी ग्रहण नहीं कर सकते। यदि आप के मन में किसी व्‍यक्ति या विषय के प्रति पहले से अरुचि बनी हुई है तो आप के सामने बैठा वह बोल रहा हो तो भी आप उसे सुन तक नहीं पाते। उसके कथन और उपस्थिति के बीच ही एक शून्‍य पैदा हो जाता है जिसमें आप गुम हो जाते हैं । इसलिए विचार को ग्रहण करने में भाषा से अधिक बड़ी भूमिका उन्‍मुखता या विमुखता की, राग या विराग की होती है।

दूसरे सिद्ध से सिद्ध व्‍यक्ति भाषा को इतनी सरल नहीं बना सकता कि वह सभी श्रोताओं या पाठकों की समझ में आ जाए। ऐसा केवल नितांत प्राथमिक विचारों के साथ ही संभव है, पर वह भी उस भाषा के जानने वालों की सीमा में ही संभव हो सकता है। अत: किसी विचार को ग्रहण करने के लिए एक अल्‍पतम तैयारी या उस विषय या वस्‍तु की जानकारी जरूरी है। नये विचार के लिए वह खेत का काम करता है जिसमें ही नये विचार को बिखेरा और अंकुरित और विकसित किया जा सकता है।

और अन्‍तत: भाषा के ज्ञान का स्‍तर या शब्‍दभंडार और कथनभंगी की सरलता या दूरूरहता का प्रश्‍न आता है।

परन्‍तु ये सभी बातें स्थिर विचारों के मामले में ही सही हैं। विकासशील विचार जो चिन्‍तन प्रक्रिया से जुडा है जिसका अगला चरण वक्‍ता या लेखक तक को पता नहीं, उसमें यह स्थिरता नहीं हो सकती। बोलते या लिखते समय हमारा कहा वाक्‍य हमें निर्देशित करता हुआ, जो कुछ तय करके बोलने या लिखने चले थे उससे कहीं और, कई बार तों ठीक उल्‍टे निष्‍कर्ष पर पहुँचा देता है। हम स्‍वयं ही नहीं सोचते, हमारा सोचा हुआ अपनी तर्कशृंखला से हमसे अलग भी सोचता है। हम उसे जितना नियन्त्रित करते हैं उससे अधिक वह हमें नियन्त्रित करता है इसलिए सफल और धाराप्रवाह बोलने वाले जो अपने पूर्व‍निश्चित विचार को निर्द्वन्‍द्व भाव से व्‍यक्‍त कर लेते हैं वे अपने विचारों को इतना अधिक नियन्त्रित कर लेते हैं कि उनमें जान नहीं रह जाती और आप उन्‍हें सुनते हुए उनके वक्‍तव्‍य कौशल पर मुग्‍ध भले हो जायं, उसके बाद जब यह हिसाब लगाते हैं कि उससे आपको क्‍या मिला तो पाते हैं कि आपका जाना हुआ या माना हुआ ही लौट कर आपके पास आया। एक नये तेवर के साथ। आशुवक्‍ता आशुजीवी होता है।

पल्‍लवित विचार तेजी से बढ़ती और अपने लिए रास्‍ता बनाती, सहारा तलाशती लता जैसा होता है जिसमें ताड़वृक्ष जैसा सीधापन संभव ही नहीं इसलिए जो हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप या हमारी तैयारी की सीमा में नहीं आता, उसे ग्रहण करने के लिए पाठक या श्रोता को स्‍वयं भी संघर्ष करना होता है।

यदि लेखक अौर वक्‍ता लेखन की आदर्श अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं कर पाता तो पाठक या श्रोता ग्रहणशीलता की अपेक्षाओं की भी पूर्ति शायद ही कभी कर पाता हो। इस लिए कोई कथन, विचार, कृति या प्रस्‍तुति हमारे दत्‍तचित्‍त रहने के बाद भी पूरी तरह समझ में नहीं आती। सरल से सरल प्रतीत होने वाली अभिव्‍यक्ति की अपनी जटिलताऍं होती है और उसे आत्‍मसात् करने के लिए हमें यदि संभव हो तो कई बार सुनना, पढ़ना, देखना और गुनना होता है। तुम अपूर्ण हो, अपूर्ण से निकले हो, अपूर्ण ही रहने को अभिशप्‍त हो, यह पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमदुच्‍यते के पाठ से अधिक सही और हमारी प्राचीन परंपरा के भी अनुरूप है जिसमें कहा गया है कि वह परम सत्‍ता जो हो है वही नहीं है, जो होना है वह भी वही है- यद् भूतं यच्‍च भव्‍यं – इसलिए वह भी अपने विनाश से पहले तक अपूर्ण रहेगी, तुमको भी अपूर्ण ही रहना है। इसलिए अपनी अपूर्णता को जानते हुए पूर्णता का प्रयत्‍न ही पूर्णता का एकमात्र पर्याय है।

आदत ही ऐसी है क्‍या करूँ। इसमें तो स्‍वयं कई उपशीर्षकों की जरूरत पड़ गई। यह काम आप पूरा करेंगे। मुझे अपनी अपूर्णताओं के साथ जीने की आदत डालनी होगी।