Post – 2016-08-29

अभी कुलदीप सलिल की एक कविता के जवाब में साल एक पहले लिखी अपनी पंक्तियां याद आई । पोस्‍ट करना चाहा तो गायब हो गई इसलिए यहॉं ही सही:

हम कहा करते थे ‘दिल खुश नहीं है दुनिया में’
तंज तुम करते ‘नई दुनिया बनाओ तो सही’।
हम कहा करते थे दुनिया तो एक ही है जनाब
सही नहीं है यह इसको ही मिटाओ तो सही।’
‘यही इक काम किया हमने आज तक देखो
‘और क्या करना है आगे की बताओ तो सही।
‘कट कर क्यों दूर चले जाते हो खुद से प्यारे
‘दिल जिगर एक करो सामने आओ तो सही।’
मौत के रास्ते दिल तक कभी पहुँचा कोई?
ज़िन्दगी के लिए आवाज़ उठाओ तो सही।
कितने अरसे से बदल कर इबारतें फिकरे
कहता हूँ अपनी कहो, पास भी आओ तो सही।
मर गए कितने मगर चैन न आया तुमको
ग्लानि होती है तो गल कर भी दिखाओ तो सही।
5/15/2015 9:53:42 PM