एक पेशेवर इतिहासकार का बयान
हम बताते हैं कि क्या गुजरी है क्या सहते रहे ।
झूठ को भी सच बना कर किस तरह कहते रहे ।
हम बताते हैं कि क्या होती है सच की रोशनी
जिस को अंधियारा बता कर कालिमा भरते रहे ।
हम बताते हैं कि कितने नीच थे पर नींव थे
उस इमारत के जिसे भाड़े पर हम गढ़ते रहे ।
डूबने को थे हमारे सामने सैलाब भी
पर न चिल्लू में था पानी सोच कर चलते रहे।
क्या किया हमने बताएं क्यो किया कितना किया
सिर्फ पैसे के लिए करना पड़ा करते रहे ।