Post – 2016-08-27

निदान – 32

माइंड बिहाइंड मैडनेस

”पूरी बात सुनते तो सही, मैं यह याद दिला रहा था कि उन्‍होंने हमारा भी जो उपयोगी था उसे अपना ही नहीं लिया उसके आधार पर वे इतना आगे बढ़ चुके हैं कि यदि हमारी अपनी खोई हुई समस्‍त उपलब्धियॉं आज हासिल भी हो जायँ तो उनके बल पर उनके सामने ठहर नहीं सकते। याद यह दिला रहा था कि हमने उनसे यह नहीं सीखा कि दुनिया भर में कहीं भी कोई उपयोगी विचार हो, उपयोगी कच्‍चा माल हो, खनिज संपदा हो, स्‍वयं उन्‍हें न मालूम हो तो तुम खोज कर निकालो और उस पर कब्‍जा कर लो। तुम जानते हो, उन्‍हें यदि किसी पिछड़े से पिछड़े समाज में लोग किसी चीज को खाते हैं, यहॉं तक कि कोई कीड़ा मकोड़ा भी और वे पाते हैं कि उससे उन्‍हें कोई समस्‍या पैदा नहीं हुई तो उसे भी आजमाने से बाज नहीं आते। यह लोच उन्‍होंने पैदा कर ली है। हमने उनसे बना हुआ माल और हमें बौद्धिक परजीवी बनाए रखने के लिए तैयार किए गए विचार लिए हैं जिसे हमारे लिए पैदा करते रहने में वे आज भी पूरी तरह सक्रिय हैं और उनके अनुसंधाता सभी क्षेत्रों में तुम्‍हारे देश में भी मिल जाऍंगे।

”हमने अपना रक्षणीय खो दिया और अरक्षणीय को अपनी संस्‍कृति मान कर चिपके हुए हैं, और उनकी समकक्षता के आने के लिए उनके भी अरक्षणीय को अपना लिया। हम पहले आपदा में भी काफी सुरक्षित थे, आज संपदा में भी सर्वथा अरक्षित है। सुरक्षा को सैन्‍यबल और आयुधबल तक सीमित करके मत देखो। इसके लिए उस रीढ़ की भी जरूरत होती है जो इन्‍हें सँभाल सके। उन्‍होंने अपना अरक्षणीय इस तरह ओझल कर दिया मानो यह कभी उनके पास था ही नहीं और लभ्‍य और रक्षणीय को बचाया, परिष्‍कृत किया, बढ़ाया। दूसरों से लिए हुए में भी थोड़ा फेरबदल करके अपना बना लिया वह चाहे तुम्‍हारा योग हो, नृत्‍यशैलियॉं हों, या संगीत और अभिनय की बारीकियॉं । वे सीखते हैं तो तुम सोचते हो पश्चिम पर यह तुम्‍हारी सांस्‍कृतिक विजय है, यह नहीं जानते कि इस पर अधिकार करक वापस जाने वाले सुरुचि और संस्‍कृति का अवदोहन करके अपने को अधिक समृद्ध कर रहे हैं। तुम्‍हें लगता है पिकासो ने आदिम कलारूपों से सीखा और उनकी पूजा करने लगते हो, यह नहीं देखते कि उसको रूपान्‍तरित करके उसने आधुनिक कला के शीर्ष पर पहुँचा दिया। न तुमने अपनी परंपरा का पुनराविष्‍कार किया न उनका ग्रहण करके उसको रूपान्‍तरित करके नयी सर्जना की। अधिक से अधिक थोड़ा घालमेल जिसमें उसकी पहचान अलग बनी रहती है, याने फ्यूजन, रिमिक्‍स आदि।

”अभी कुछ दिन पहले सर्वसुलभ और हमारे आलस्‍य के कारण लगता है ज्ञान का एकमात्र स्रोत रह जाने वाले इंटरनेट से ईसाइयत के मध्‍यकालीन उपद्रवों, हत्‍याओं, विध्‍वंसों का इतिहास जानना चाहा वह गायब था। यदि पुरानी पोथियाँ न रह जायॅगी तो वह उनके इतिहास के गर्हित चरणों को, उनके पैशाचिक कुकृत्‍यों को मिटा दिया जायेगा। उन्‍होंने कितनी धूर्तता और कमीनेपन से अमेरिका सभ्‍यताओं को नष्‍ट किया, उनकी उदारता के बदले उनके साथ क्रूरता से पेश आए, उनसे मैत्री करते उनके बीच शराब आदि की लत डाल कर उन्‍हें अपने ही लोगों के विरुद्ध काम करने वाला एजेंट बनाया, कैसे उस मैत्री के चलते प्‍लेग के विषाणुओं से युक्‍त कंबल बॉंट कर जाड़े में आराम पहुँचाने की जगह प्‍लेग फैला कर उनका सफाया किया यह जानने के लिए अमेरिकी उपनिवेशीकरण का इतिहास तलाशने लगा तो सभी उपलब्‍ध स्रोतों से यही पता चल पाया कि सब कुछ कितने सलीके से हुआ। आरंभ में इन आव्रजकों को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा बस दुख के नाम पर वह था। केवल अपनों का दुख था। अभी इंग्‍लैंड की उस रानी के कारनामें तलाश रहा था जिसे ब्‍लडी मेरी के नाम से जाना जाता था और जिसने प्रोटेस्‍टेंटों का नरसंहार कराया था और जिसके डर से जान बचा कर वे अपने प्राण की बाजी लगा कर अटलांटिक पार करके अमेरिका की ओर भागे थे और बहुतों का जहाज का बोझ बढ़ जाने के कारण जहाजो के डूबने से ही अन्‍त हो गया, तो गूगल, विकीपीडिया, सभी जगहों से ब्‍लडी मेरी नाम की कल्पित कथाऍं, होटलों आदि के नाम तो मिले वह रानी और उसके कारनामे गायब थे जिसके अत्‍याचार से तडप कर मिल्‍टन ने पैराडाइज लास्‍ट लिखा था, जिसकी वेधक पंक्ति है ‘अवेंज ओ लार्ड दाइ स्‍लाटर्ड सन्‍स अवेंज।”

”कितने घंटे तक यह कार्यक्रम चलेगा ?”

”तब तक जब तक तुमको यह विश्‍वास नहीं हो जाता कि वे अपने इतिहास से अपने पैशाचिक कृत्‍यों को हटा रहे हैं कि अपने को और पूरी दुनिया को यह विश्‍वास दिला सकें कि उनका समाज सदा से बहुत सदाचारी और न्‍यायपरायण रहा है और उनके ऐजेंट मानवाधिकार की ओट में उनको वह सामग्री पहुँचा रहे हैं कि दूसरे समाज कितने कुत्सित है, कितने हैवान है।

”‍जब तक तुम यह नहीं समझ जाते की धर्म और धर्मान्‍धता की सीमाओं को समझ लेने के कारण उनके अपने देशों में गिरजाघरों में हाजिरी कम हो रही है, परन्‍तु अन्‍य या जिसे वे वेस्‍ट से अलग रेस्‍ट की कोटि में रखते हैं उनमें उनके प्रत्‍यक्ष और परोक्ष शह से धार्मिकता और अन्‍धविश्‍वासों को प्रबल किया जा रहा है। पता लगाओ पिछले पचास सालों में कितने नये गिरजे या कैथेड्रल पश्चिमी देशों में बने हैं और मुझे भी बताओ । मुझे स्‍वयं भी बोध है ज्ञान नहीं है। पर उनके सीधे या पराेक्ष उकसावे से शेष जगत में कितने मन्दिर, गिरजे, मस्जिदें, गुरुद्वारे बन रहे हैं और उनमें लोगों का उत्‍साह किस तरह बढ़ाया जा रहा। जब तक यह समझ में नहीं आता, तुम्‍हें उनके उकसावे पर तुम्‍हें भोंकने के लिए खंजर लिए एक दुश्‍मन दिखाई देगा, यदि समझ में आ गया तो तुम्‍हें अपने दुश्‍मन के पीछे, परदे में बैठा, उसे सुपारी देने वाला दिखाई देगा। मेरा मतलब है, देखना चाहोगे तब। अभी तक तो तुमको हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियों पर शर्म आती है, परन्‍तु यदि उसी इतिहास को अधिक विकृत करने के लिए वर्तमान प्रक्षिप्‍त करने के उनके पुरासंग्रहालय के लिए और उनके समाज के उपभोग के लिए वाटर और फायर या ऐसी दूसरी अपराध और हिंसा की ऐसी फिल्‍में बनाई जा‍ती है जिनसे अपराधियों को प्रेरणा और सूझ मिलती है तो ये फिल्‍में तुमको प्रगतिशील लगती है और इन पर सेंसर अभिव्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता का हनन लगता है। जब तुमकों मेरी बात समझ में आजाएगी तो इन कृतियों की चमक कम हो जाएगी । तब उसका अर्थशास्‍त्र ही नहीं उनका घिनौना चेहरा भी दिखाई देने लगेगा जो इन प्रवृत्तियों के पीछे हैं। तुम तो यह तक मान कर न दोगे कि अभिव्‍यक्ति के सबसे सशक्‍त माध्‍यम में अपराधजगत का पैसा लग रहा है, अपराध को कलात्‍मकता की ऊँचाई दे रहा है और काले धन को सफेद करने का साधन बना हुआ है।”

जिन्‍हें शास्‍त्री जी कल पागल कह रहे थे वे सचमुच पागल हैं। और यह भी मानता हूँ कि उनका इतिहास भी बहुत उजला नहीं रहा है, परन्‍तु भावुकता को चरम पर पहुंचा कर, उसी इतिहास का उपयोग उनके अपने अहित के लिए, उन्‍हें दुर्दान्‍त दरिन्‍दों के रूप में पेश करने के लिए किया जा रहा है और वे समझते हैं पूरी दुनिया उनसे थर्रा रही है। आज नहीं तो कल पूरे विश्‍व पर इस्‍लाम का विस्‍तार हो जाएगा। यह तक नहीं दिखाई दे रहा मुसलमान मुसलमान को मार रहा है, और मुसलमान मुसलमानों को जलील कर रहा है। शास्‍त्री जी हिन्‍दुओं को संकटग्रस्‍त देखते हैं तो मैं उनसे असहमत नहीं होता, परन्‍तु यद‍ि वह यह देखते कि कैसी चालें चलते हुए मुसलमान को पहली बार संकटग्रस्‍त बनाया जा चुका है, और उसे उसी के द्वारा बर्बाद करते हुए मुस्लिम देशों की खनिज संपदा को पर कब्‍जा करने की योजना सफल होती जा रही है, उसी समुदाय के दूसरे देशों के नौजवानों को खूखार दहशतगर्दो में बदलने की योजनाएँ कारगर होती जा रही हैं तो उन पर क्रोध आने की जगह यह समझ पैदा होती कि आज की घड़ी में मुझे अपने पुराने दुश्‍मन को भी बचाने की फिक्र करनी होगी और अपने को बचाने का भी जतन करना होगा। ये दोनों अलग नहीं है। वेस्‍ट ऐंड दि रेस्‍ट की इस जंग में केवल हिन्‍दू-मुसलमान ही नहीं शेष दुनिया के सभी विचारों और देशों के लोगों काे एक दूसरे को समझने की और एक दूसरे के साथ खड़ा होने की जरूरत है। पश्चिम के लिए आप हिन्‍दू या मुसलमान नहीं हैं, एशियाटिक हैं। इस ऐशियाटिक चेतना को मजबूत करने की जरूरत है।”

”क्षमा करें डाक्‍साब, इसका अनुभव है हमें। एक बार खिलाफत आन्‍दोलन का फल भुगत चुके हैं, दुबारा वह प्रयोग नहीं कर सकते। हमारे मित्र ठीक कहते हैं बबूल को शहद से सींचने से उसके कॉंटे मुलायम नहीं हो जाते ।”

”उनको समझाइये, शहद को सिंचाई पर खर्च क्‍यों करते हैं। अधिक हो तो हमारे पास पहुँचा दीजिए सुना बड़ा गुणकारी होता है, पर यदि किसी पेड़ को उससे सींचिएगा तो चींटियां उसकी जड़ों तक को खा जाऍंगी और वह सूख जाएगा, भले वह बबूल ही क्‍यों न हो। मैं कोई आन्‍दोलन करने को नहीं कर रहा हूँ। मैं कहता हूँ, आन्‍दोलन मत करें। अब देश आपका है, राज्‍य आपका है। राज्‍य को अपना काम करने दीजिए। शिकायत राज्‍य की नजर में ले आइए। राज्‍य अपने कर्तव्‍य के निर्वाह में शिथिल मिले तो संचार माध्‍यमों से जनता को सचेत कीजिए। अगले चुनाव में उसको सत्‍ता से बाहर करने का संकल्‍प लीजिए पर कानून अपने हाथ में न लीजिए। यह सभ्‍य लोगों का काम नहीं है। यह उस चरण को शोभा देता था जब राज्‍य संस्‍था न था या अराजकता थी और इससे अराजकता ही पैदा होती है। जो अपने देश को प्‍यार करते हैं वे अराजकता न तो पैदा कर सकते हैं, न उसमें सहभागी हो सकते है। आपको अपनी ओर से कुछ नहीं देना है, सिवाय अपने दूसरे कामों पर ध्‍यान देने के जो आपके सरकार के काम में हाथ डालने के कारण ठीक से नहीं हो पा रहे हैं । स्‍वधर्म का पालन कीजिए। अपने क्षेत्र का काम पूरी निष्‍ठा से कीजिए। इतने से ही बहुत कुछ बदलेगा। यह पहला कदम है, अन्तिम समाधान नहीं । अभी कई गुत्थिया सुलझानी होंगी।”

शास्‍त्री जी ‘हँअँअ’ इस तरह कहते हुए उठे जिसका अर्थ था वह सन्‍तुष्‍ट नहीं हुए ।