मेरा सबसे प्रिय शायर, खुशमिजाज, खुशरू और सादादिल। हम दोनों एक ही सन् में पैदा हुए थे। वह मुझसे पांच महीने अठारह दिन बड़ा था और पांच मंजिल बड़ा लगता था। मैं तो उस तक पहुंचने के लिए अपनी बाॅह भॉज कर बाॅंहें गॅवा चुका था फिर वह मुझसे डर कर आज से आठ साल पहले ही क्यों भाग लिया।
अहमद फराज की आज नवीं पुण्यतिथि है और यह तुकबन्दी उसके विदा होने के चार साल बाद की थी। मेरे लिए वह आज भी एक सेतु है। राजनीतिज्ञ बॉटने की बात करते हैं, हमारा काम ही है फटे को सीना, चिथडे को रफू करना है और दूसरा काम आता ही नहीं ! वही हमें लेखक, विचारक और क्रान्तदर्शी बनाता है।
इसलिए इस बिगडे माहौल में भी अहमद फराज की याद में: आज अहमद फ़राज़ की नवीं पुण्यतिथि है:
दिल उसके पास था, मेरे भी पास हो शायद।
ज़बान वैसी मशक्क़त से खास हो शायद।
वह शख्स इतना था अपना कि दीखता ही न था
जो दीखता था वह उसका लिबास हो शायद।
फराज़ को न बताना कि उससे जलता हूं
मज़ार में भी यह सुनकर उदास हो शायद।
पता लगाओ कभी वैसा कोई था कि नही
हुआ नहीं है, यह मेरा क़यास हो शायद।
शेर कहता था बहा जाता हो दरया जैसे
जिसके पानी में आज भी उजास हो शायद।
कब्र से उठ कर भी आ जाता है अफवाह सी है
दिया जलाओ कहीं आसपास हो शायद।
टूटे जुड़ जाते हैं इल्मो कमाल से भगवान
यह संगो-खिश्त का मौजूं जवाब हो शायद ।
27. 07. 12.