हँसते हो तो लगता है कि तुम खुश हो, मगर।
क्यों हँस कर दिखाते हो आज खुश हो अगर।
उल्लास की भाषा तो लहू बोलता है
अपनी शिरा से उप शिरा से, खुश हो अगर।
हम भी तो सुनें इश्क की बर्वादियों को
जिनकी दहक से लगता है तुम खुश हो मगर।
है अन्त, न है आदि, न है बीच में कुछ
भगवान बन दिखाओ कभी, खुश हो अगर ।।