Post – 2016-08-17

निदान – 22

तुम अंधेरे में देख लेते हाे
हम अंधेरों को देख लेते हैं

”तुम जिस तरह की निर्ममता से अपने तर्क रखते हो, एक पूरी की पूरी कौम को सन्‍देह के दायरे में खड़ा कर देते हो, तुम्‍हें कभी यह याद आता है कि इसे ही यहूदियों के सन्‍दर्भ में ऐंटी सेमिटिज्‍म कहते हैं, और कौम बदलने के साथ नाम न भी बदलो तो भी कभी सोचते हो कि उसी प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हो तुम। ”

”तुम भी इस तरह सोच सकते हो यह तो मैंने सोचा भी नहीं था, क्‍योंकि यही तो तुम लगातार करते रहे हो, ऐंटी हिन्‍दुइज्‍म और उसमें भी ऐंटी ब्राह्मनिज्‍म के अपने उस अभियान को भूल गये जिससे बेचैनी अनुभव करते हुए मैंने इस प्रवृत्ति की जड़ों को कई कोणों से तलाशना अारंभ किया तो पाया यह तुम्‍हारी चेतना में मुस्लिम लीगी कार्ययोजना के घर कर जाने के कारण है । सेक्‍युल‍रिज्‍म भारतीय सन्‍दर्भ में मुस्लिम लीग का दूसरा नाम है, जिसका अर्थ मुझसे पहले कोई जानता ही न था।”

”आधुनिक इतिहास में यह तुम्‍हारा इतना बड़ा योगदान लगता है कि तुम नोबेल प्राइज के निर्णायकों को भी अर्जी भेज चुके होगे।”

”पुरस्‍कार अर्जी देकर पाए जाते हैं, यह भी विश्‍व सभ्‍यता को तुम्‍हारा ही योगदान है। पुरस्‍कार पाने के लिए अपने समस्‍त साधनों के साथ लोग बिछ जाते हैं, इस तर्क के दबाव में, कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। और वे अपना आपा तक खो बैठते हैं।

”मुझे कुछ नहीं पाना है इसलिए खोना भी कुछ नहीं है। मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्‍कार यह होगा कि यह बात तुम्‍हारी समझ में आ जाए कि इतिहास लेखन निठल्‍ले छोकरों की मसखरी नहीं है जी बहलाने के लिए कुछ भी ऊटपटांग कह दिया, कुछ भी कर दिया करते हैं, इस खयाल से कि अगले को दुख होगा और वे उसका मजा लेंगे। बेकारीजन्‍य बोरडम से जूझने वाले उन छोकरों के मामले तो यह फिर भी क्षम्‍य है, पर तुम इतने साधन संपन्‍न हो कर भी यही काम करो और यह भी न ध्‍यान रखो कि बुरे काम का बुरा नतीजा होता है, नतीजा ऑंखों के सामने आने पर भी, यह सोच कर हैरानी होती है।

”ऐसे इतिहासकारों को इतिहास का निर्माता, विश्‍वविख्‍यात इतिहासकार, पेशेवर इतिहासकार कह कर इतना फुला देते हो कि वे भीतर के दबाव से फट जाते हैं और तुम बाहर के दबाव से सिकुड़ जाते हो। न फटने का बोध न सिकड़ने का अहसास, तुम स्‍वप्‍नजाग में चले गए हो यार । सोमनैम्‍बुलिज्‍म के शिकार हो। इतने सारे लोग, जिन्हें हमने अपने समाज की बौद्धिक जिम्‍मेदारियॉं सौंप रखी हैं, या जिन्‍होंने अपनी संगठित शक्ति से सोचने का अधिकार हमसे छीन रखा है, यदि इस अवस्‍था को पहुँच जाऍं तो उस समाज का वर्तमान और भविष्‍य क्‍या होगा। वर्तमान तो सामने है जो उनका ही रचा है और जिसकी जिम्‍मेदारी भी वे नहीं लेते, भविष्‍य तो हम भी नहीं जानते, क्‍योंकि इस बीच कुछ बदला भी है।

”स्‍वप्‍नजाग व्‍याधि के बारे में तुम्‍हें कुछ पता है या नहीं। तुम तो पावलोवियन रालप्रवाही रिफ्लेक्‍स ऐक्‍सन से आगे मनोविज्ञान में कोई रुचि रखते ही नहीं। मैं एक वास्‍तविक घटना के हवाले से तुम्‍हें बताता हूँ:
” एक आदमी था, वह सोता तो अगली सुबह पाता उसके सारे कपड़े गीले हैं। कुछ पता नहीं कि यह कैसे हा जाता है। बिस्‍तर का तो हाल न पूछो। यह किसी की समझ में नहीं आता था। उसका एक दोस्‍त या भाई जो भी समझो, एक रात जाग कर यह देखने लगा कि मामला क्‍या है। गहरी नींद में वह उठा, दरवाजा खोला, नदी की ओर चल पड़ा, पानी में उतर गया और तैरने लगा। मजे की बात यह कि तैरना उसे आता नहीं था। जी भर कर तैर कर बाहर निकला घर पहुँच गया, सो गया। दोस्‍त ने रहस्‍य तो जान लिया पर बताया नहीं। अगली रात फिर वहीं क्रिया, वह तैर रहा था तभी उसने उसका नाम ले कर पुकारा। उसकी नींद टूट गई और उसके बाद वह अपने को बचाने की कोशिशों के बाद भी बचा न सका। डूब गया। तुम लोगों से मैं इतना प्‍यार करता हूँ, कि चेतावनी देते और दिमाग सही करने की सलाह देते हुए भी डरता हूँ कि कहीं तुम्‍हारा वही हाल न हो। तुम्‍हारा नुकसान अकेले तुम्‍हारा नहीं है। तुम खुद भी डूबाेगे और समाज और देश को भी ले डूबोगे। नहीं, गलत कह दिया। वह नासमझी तो मोदी ने सबका साथ सबका विकास का नारा दे कर कर दी और उसके बाद ही तुम्‍हारे डूबने के आसार, तुम्‍हारी मृत्‍यु की चीत्‍कार आरंभ हो गई और तुम मंच पर हाजिर हो कर यह बयान भी दर्ज कर आए कि हॉं, यह मेरी ही आवाज है, यह मेरी ही चीत्‍कार है। यह… मैं .. ही …अपनी … तार्किक … परिणति … को …पहुँच … रा..रह… अ
आ …हूँऊँऊँऊँऊँऊँ।

”यार मैं भ्‍ाी हॉंकूँ जितना भी इतिहास के इस दबाव को समझ नहीं पाया। मैंने अपनी सीमा में काम करते हुए मुस्लिम लीगी मानसिकता को समझते हुए पाया कि यह अपने विदेशी मूल पर गर्व करने वाले और अपने ही धर्म समुदाय को तिरस्‍कार से देखने वाले उन रईसो की टोली की मानसिकता है जो अपने को श्रेष्‍ठ दिखाने के लिए हिन्‍दुओं और हिन्‍दुस्‍तानी मुसलमानों के इतिहास, मूल्‍यव्‍यवस्‍था, आचरण सबसे नफरत करता रहा है। और इनको अपना वफादार सिद्ध होने के लिए परीक्षाओं से गुजारता रहा है। धर्मान्‍तरित मेवाती राजपूतों का अनुभव याद करो तो समझ में आ जाएगा। जितना समझ में आया मैंने यह समझाने का प्रयत्‍न किया कि अपने क्षेत्र में कुछ कर न पाने के कारण तुमने भी पाश्‍चात्‍य शिक्षाप्राप्‍त बौद्धिक वर्ग में और उसके संचार माध्‍यमों से भारतीय समाज से ही घृणा के प्रसार में सहयाेग करना आरंभ कर दिया। देखो, मैं यहां समुदाय की नहीं, समाज की बात कर रहा हूँ। इसे धर्म रेखा में बॉंट कर मत देखाे, विेदेशी मूल पर गर्व करने वालों और देसी मूल के लोगों में बॉंट कर समझने में अधिक आसानी होगी। जिनकी जड़े तथाकथित दक्षिण एशियाई भूभाग में नहीं हैं और इसलिए जो हमारी जड़ों को नहीं जानते, अपनी जड़ों को मिटा कर आए थे, फिर भी उससे एक काल्‍पनिक मोह बना हुआ है, इसलिए वे उससे जुड़ने के लिए पान इस्‍लामिज्‍म की बात करते हैं और अपने ही देश के लोगों को, जो हिन्‍दू हों या मुसलमान, अपनी जमीन से उच्‍छेदित करने के लिए प्रयत्‍नशील होते हैं, वे उन विदेशियों के एजेंटों जैसे हैं, जिनको बाहर से कुछ मिलता है, कुछ नहीं तो भावनात्‍मक सन्‍तोष। वे इस जमीन के न थे, न इससे जुड़ पाए, यह उनकी समस्‍या थी, परन्‍तु यह किन्‍हीं भी परिस्थितियों में इस्‍लाम कबूल करने को बाध्‍य हुए लोगों पर अपना विदेश तो नहीं थोप सकते, जिनका जन्‍म यहीं हुआ, जिनको जुड़ने के लिए केवल अपना देश है, अन्‍यत्र वे हिन्‍दी ही कहे जाते हैं।”

”तुम हिन्‍दूवाद की जगह हिन्‍दीवाद चलाना चाहते हो ।”

”यदि चल जाय तो । जब मैं तुम लोगों को मुस्लिम समुदाय के उस रईस तबके के करीब पाता हूँ जो अपने ही समाज के बाकी हिस्‍सों को ओछी नजर से देखते थे और अपने प्रति स्‍वामिभक्ति की कष्‍टसाध्‍य शर्ते रखते हुए उनमें उत्‍तीर्ण होने की चुनौती देते थे, तो यह मेरा आविष्‍कार नहीं था। मात्र अवलोकन था। आम जनों की भाषा, उनके विश्‍वास, उनके जीवनमूल्‍य, उनके उल्‍लास और विषाद सभी से दूर और ऊपर, रईसों वाले उसी दायरे का निर्माण तुमने अपने बौद्धिक अाभिजात्‍य के नशे में किया जिससे वह आन्‍तरिक उपनिवेशवाद स्‍थापित हुआ जो भारत और भारतीयता से परहेज करता है और विचार से लेकर कलामूल्‍य और जीवनमूल्‍य और मूल्‍यवान वस्‍तुएं तक विदेशों से मंगा कर गौरव अनुभव करता है।

”अब मैं तुहारे उस आरोप को लूँ जिसमें अात्‍मप्रक्षेपण के दबाव में तुम मुझ पर ऐंटी सेमिटिज्‍म या ऐंटी इस्‍लामिज्‍म का आरोप लगा रहे थे तो यह समझ लो कि एंटी- विसर्ग वाले शब्‍द अारोप, अभियाेग या गालियॉं हुअा करते हैं। उनमें विश्‍लेषण विवेचन नहीं होता। घृणा का प्रसार होता है, जिसकी उत्‍कटता विवेचन से कम हो जाती है। इन शब्‍दों का प्रयोग करने वाले के पास तर्क नहीं होते, इसलिए वह केवल आरोप लगाता और गालियों की भाषा में बात करता है और गालियों तक को संस्‍कृति और स‍ाहित्‍य में रूपान्‍तरित कर देता है। नहीं, साहित्‍य और संस्‍कृति को भी गालियों के स्‍तर पर उतार देता है। तुमने यही किया और यह जान तक न सके कि क्‍या कर रहे हो। मुझे किसी पर कोई आरोप लगाते या किसी के लिए अयुक्‍त लांछन लगाते समय तो पीड़ा होती ही है, जहाँ इसके पर्याप्‍त कारण होते हैं, वहॉं भी लांछन लगाने की जगह कारण की तलाश करता हूँ, जिससे अपनी व्‍याधि को समझने और उससे उबरने में उसे भी मदद मिले और जब तक वह व्‍याधि बनी रहती है तब तक परहेज या बचाव की चिन्‍ता हम भी करें, अन्‍यथा उसी व्‍याधि से हम भी ग्रस्‍त हो जाएँगे।’