निदान -21
और भी तीर हों तरकश में तो आने दो उन्हें
”तुम सच सच बताना, तुम भी जानते हो, जब से भाजपा का शासन आया है तब से हिन्दुत्ववादी शक्तियों का मनोबल बढ़ा है और कई अनपेक्षित घटनाऍं घटित हुई है। इसी अनुपात में दूसरों की आशंकाऍं भी प्रबल हुई हैं । ऐसे में तुम ईसाइयों और मुसलमानों की इतनी तीखी आलोचना करते हुए और हिन्दू मूल्यों और इतिहास का जयकारा लगाते हुए उन शक्तियों को प्रबल बनाने और समाज की अस्थिरता बढ़ाने का काम नहीं कर रहे हो ? यही तुम्हारा देश प्रेम है ?
”तुम भ्ाी मानोगे कि यह न समाज के लिए सही है न देश के लिए और यदि ऐसा है तो फिर अपनी ही नजर में एक गलत काम करके तुम इस उम्र में क्या हासिल करना चाहते हो। तुम अपनी इच्छा बता दो, मैं चन्दा करके तुम्हारी वह इच्छा पूरी करने का इन्तजाम करूँगा । अपनी मूर्ति बनवाने को कहोगे तो वह भी बनवा दूँगा यार, भले वह तुम्हारी औकात को देखते हुए अँगूठे बराबर ही बन पाए ।”
”तुम सचमुच मेरी इच्छा पूरी करना चाहते हो ? वचन दो तो बता देता हूँ और इसे पूरा करने के लिए तुम्हें किसी के सामने हाथ पसारने की भी जरूरत न होगी।”
”पहले बताओ तो सही। उसके बाद पूरी न कर पाऊँ तो कहना।”
”इस उम्र में भी मेरी एक ही इच्छा है और मुझे डर है कि मेरे मरने के दम तक वह अधूरी ही रह जाएगी। मेरी इच्छा यह है कि तुम अपनी ऑंखों से देखना और दिमाग से सोचना आरंभ करो । आदमी बन कर रहो, खिलौना बन कर नहीं। यदि अपनी ऑख और दिमाग का इस्तेमाल करने लगे तो तुम्हें स्वयं दिखाई देगा कि उत्तेजना पैदा करने वाली बाते, शान्ति भंग करने वाले काम कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है? तब तुम्हें दिखाई देगा आज तक जिस भाषा में कुछ कहना तक तुम्हें अभद्रता प्रतीत होता था, हवास खो कर वह भाषा तुम क्यों बोलने लगे? तुम्हारे प्रतिवाद में भी जिन तत्वों की चर्चा मैंने की थी उनकी बदजबानी को छोड़ कर न किसी ने किसी तरह की उत्तेजना पैदा करने वाली बात की न ही ऐसा कोई काम किया। तुमको पता है आज ही एक सज्जन ने एक ऑंख खोलने वाली बात की। कश्मीर से इतने लाख हिन्दू निकाले गए या पलायन करने को विवश हुए, उनमें से एक भी उपद्रवकारी नहीं हुआ, और … छोड़ो, मैं जो कहना चाहता था उसका संदेश तुम तक पहुँच गया होगा। अकारण और विकास के कामों को आरंभ करने के साथ यह सब कहॉं से , किसकी योजना से आरंभ हो गया। उत्तर तुम्हें देना है कि तुम उन योजनाकारों के साथ हो या देश के विकास और सबके हित के साथ। जवाब तुमको देना है कि तुमको सब कुछ उल्टा उल्टा दिखाई क्यों देता है ?
”तुम कहते हो मैं मुसलमानों की तीखी आलोचना करता हूँ । मामला बीमारी का होता या गैंगरीन का होता तो तुमको शिकायत होती तुमने इतनी तीखी चीरफाड क्यों कर दी। मैं केवल यही कहता कि इसके बिना बीमारी से मुक्ति नहीं पाई जा सकती थी। मैं अपने मरीज को संकट से उबारना चाहता था। हॉं मिशनरी ईसाइयत के बारे में, उन मानवाधिकार संगठनों के बारे में और ऐसे गैरसरकारी संगठनों के प्रति जो विदेशों से पैसा पाते हैं मैं बहुत शंकालु हूँ। उनका मुसलमान या ईसाई होना भी जरूरी नहीं है, हिन्दुओं में उनकी संख्या कहीं ज्यादा है। यदि ऐसे संगठन मुसलमानों में भी हैं तो उनके प्रति भी उतना ही शंकालु और उनके उच्छेदन तक का समर्थक हूॅ, क्योंकि पैसा देने वाला अपने किसी काम के लिए पैसा देता है और पैसा पाने वाले उस काम को अंजाम तक पहुँचाने में अपनी जान लड़ाकर अधिक से अधिक पाने की कोशिश करते हैं। अभी कल ही पन्द्रह अगस्त था, जानते हो पन्द्रह अगस्त का ऐसा कौन सा हीरो है जिसका नाम और शब्द चारों ओर गूँजते रहते हैं ?”
”एक नहीं तीन की बात करो, गांधी, नेहरू और भगत सिंह।”
”मैं जानता था, दिमाग जिनके पास नहीं होता वे भी तोतों की तरह रटे हुए जुमले बोल लेते हैं और दिमाग से काम न लेने वाले भी ऐसा ही करते हैं। जिस व्यक्ति का नाम और जिसके शब्द पूरे वातावरण में छाए रहते हैं उसका नाम है प्रदीप। स्वतन्त्रता दिवस का महानतम कवि और बाद में दिनों में भुला दिया जाने वाला। केवल मुझ जैसों को वह पूरे साल याद रहता है । अभी जिन लोगों का मैंने नाम लिया उनकी याद आते ही उसकी वह पंक्ति, ‘सँभल के रहना अपने घर में छिपे हुए गद्दारों से।’ याद आ जाती है। विदेशी पैसे पर पलने और शहीदाना तेवर अपनाने वाले ये लोग देश के साथ केवल अपघात कर सकते हैं और करते आए हैं, परन्तु मुद्दा ऐसा अपनाऍंगे कि ऑंख में ऑंसू छलछला आए, किसी गरीब और काम काज में फँसी माँ से उसका बच्चा किराए पर लेकर और उसे भूख से अर्धमूर्छित रख कर, कन्धे से चिपकाये चौराहों पर भीख माँगती औरतों की तरह । तुम जानते हो, शक भी करते हो और फिर भी तुम्हारा जी पिघल जाता है, और हाथ जेब की ओर चला ही जाता है। ताे उनके बारे में तो मैं आक्रामकता ही हद तक मैं अनुदार हूँ । एकता की किसी भी अवधारणा में अपराधियों और देशघातियों के साथ एकता की हिमायत नहीं की जा सकती।
”परन्तु सामान्य ईसाइयों और आम मुसलमानों में मेरे उतने ही मित्र और हितैषी हैं जितने हिन्दुओं में और सबसे अधिक तो उन सेक्युलरिस्टों में जिनकी खिंचाई न करूँ तो खाना हजम न हो, क्योंकि उनकी नेकनीयती पर मुझे पूरा भरोसा है और समझ पर बहुत कम। इसलिए बहस के लिए उन कमियों को उजागर करते हुए यह भी आशा करता हूँ कि वे जहॉं मुझसे चूक हो रही हो वहॉं उतनी ही निर्ममता से मेरी खिंचाई करेंगे, परन्तु कार्यकारण समझाते हुए । यह हमारे हित में है । यदि हमें प्रेम से साथ रहना है तो झूठे बहानों और शातिर इरादों से बचते हुए ही समझदारी और प्रेम पैदा किया जा सकता है। पर्दे उतार कर पर बेपर्दा हो कर नहीं।
”तुमको यह तो समझना था कि यह सब अकारण नहीं होने लगा है। तुम तो पहले दिन से जो मोदी की पूँछ पकड़ कर लटके तो उसके साथ घिसटते ही चले जा रहे हो। घिसटते हुए आदमी को कहाँ क्या हो रहा है दीख नहीं सकता, क्यों हो रहा है समझ में आ नहीं सकता और तुम मुझे ही ऑंखे खोलने और दिमाग से काम लेने की सलाह दे रहे हो।”
”और तुमने पहले ही दिन से हंगामा मचाना शुरू किया तो रुकने का नाम ही नहीं लिया आैर सारी दुनिया को यह भी बता रहे हो कि देखो हंगामा हो रहा है। हंगामा करने वाले भी तुम, उससे डरने वाले भी तुम और दुनिया को बताने वाले भी तुम कि लोग हंगामे से डर कर भागना चाहते हैं पर दहशत ऐसी है कि भाग भी नहीं पाते। मजेदार है यार!
”आओ जरा पहले दिन पर लौटें जिस दिन, तुम ठीक ही कह रहे थे, कि मैं मोदी के साथ खड़ा हो गया था और तब से अब तक मुस्तैदी से साथ खड़ा हूँ और तुम्हारे निमन्त्रण और धौंस के बावजूद कि अपना भला चाहता है तो तूू भी हमारे साथ हो कर हंगामा मचा, मैं तुम्हारे इरादों, मजबूरियों और बेवकूफियों को उजागर करता रहा । मेरा पहला प्रश्न, ”तुम क्या उन हालात से खुश थे जिनमें पूरे देश का कांग्रेस से मोहभंग हो गया था ?”
”जब कोई खुश नहीं था तो मैं क्यों खुश हो लेता।”
”फिर उपलब्ध विकल्पों में से देश ने एक के पक्ष में भारी समर्थन प्रकट किया था, उस समय कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध था ?”
वह कुछ सोच में पड़ गया, कुछ देर डूबते उतराते रहने के बाद बोला, ”विकल्प उपलब्ध नहीं था, इसलिए क्या सत्ता को फासिस्ट ताकतों के हाथ में सौंप कर निश्चिन्त हो जाता ?”
”तुम्हारी यह आशंका उस व्यक्ति के किसी कथन या कार्य से सच साबित हुई?”
”तुम नहीं समझोगे ये बातें, ये मासूम चेहरा बनाए भीतर अपने घिनौंने इरादों को छिपाये रखते हैं और फिर जब एक्शन में आते हैं तो हम सिर पीटते रह जाते हैं कि हम समय रहते सचेत नहीं हुए।”
”और तुम्हारी सचेतता का प्रमाण है कि तुम ऐसे समय में जब विकल्प बिल्कुल गायब है, अराजकता पैदा करने के लिए हंगामा कर रहे थे और आज तक कर रहे हो और उसके किसी काम से नहीं अपनी हंगामे से ही असुरक्षित अनुभव कर रहे हो कि तुमने अब तक जो अनाप शनाप बका है उसका बदला वह ले सकता है। अर्थात् अपने ही कुकर्म के कल्पित दुष्परिणाम से डरे हुए हो, न कि उसके किसी काम से। वह जुड़ने और साथ आगे बढ़ने की बात करता है तो तुम कहते हो हमें पीछे रहना पसन्द, पर तुम्हारे साथ जुड़ कर आगे नहीं बढ़ सकते। उल्टे तुम्हारे जोड़ने और मिलाने की योजनाओं को ध्वस्त करने की हर संभव कोशिश करेंगे। गलत कहा ?”
वह कुछ बोला नहीं।
”यह बताओ किसी मौलबी मुल्ला ने यह कहा कि वह असुरक्षित अनुभव कर रहा है, या यह कि यह फासिस्ट शासन है या इसका अन्त फासिज्म में होगा ?”
”कहेंगे कैसे अपनी जान जोखिम में डालनी है।”
”तुम्हारी जान को कोई खतरा नहीं है यह जान कर तुम उनसे आगे बढ़ कर फासिज्म फासिज्म चिल्लाते हो कि तुम्हारे समर्थन से वे भी ऐसा करने लगें ?”
वह फिर सोच में पड़ गया ।
”मुझे सलमान रश्दी का लेखन टुकड़ों में पसन्द है और सैटेनिक वर्सेज तो कतई नहीं, फिर भी यह बताओ, उस किताब को बैन करने का सुझाव किसी मुल्ला का था या तुम लोगों का ?”
”इससे क्या फर्क पड़ता है । मुल्ला मौलवी उपन्यास पढ़ते हैं क्या ?”
”गरज कि पहले मुल्ला मौलवी मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व करते थे, अब तुम लोग करने लगे हो। तुम इतना आगे बढ़ चुके हो कि खुमैनी को भी रास्ता दिखा सकते हो ।”
”बाबरी मस्जिद के सवाल पर कोई मुल्ला पहले आया था या तुमने बाबरी ऐक्शन कमेटी बनाई थी और उसमें कुछ मुल्लों को शामिल होना पड़ा ?”
”क्या तुम उसे गिराने का समर्थन करते हो, उचित ठहराते हो ?”
”यह सवाल है ही नहीं, इसका जवाब मैंने उसके गिराए जाने से पहले दे दिया था और यह भी बताया था कि तुम्हारी नादानी के कारण यह गिर कर रहेगी, क्योंकि तुम जो तथ्य है उसे नकार रहे हो, जब कि तुम्हें सरकार को पुरातत्व के स्थलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दे कर उसे संभावित परिणामों के लिए उत्तरदायी बनाना था। परन्तु इस समय मैं नेतृत्व की बात कर रहा हूँ । तुम्हारे ऊपर यह अभियोग लगा रहा हूँ कि मुस्लिम कठमुल्लावाद का बौद्धिक नेतृत्व आज मुल्ले नहीं कर रहे हैं, सेक्युलरिस्ट कर रहे है और विश्वास न हो तो अलीगढ़ विश्वविद्यालय में कुछ महीनों पहले इरफान हबीब का वह भाषण पढ़ लेना जिसमे उन्होंने आइएस की तुलना वैदिक आर्यों से की थी और जिसकी हरबंस मुखिया ने भी ताईद किया था ऐसा कुछ याद आ रहा है और जिस पर मैंने उन दिनों व्यंग्य करते हुए एक गजल भी लिखी थी। जिस बात को सुन कर कानों पर हाथ लगा कर भागने की बात कर रहा था वह यह सचाई है । संक्युलरिज्म का आइ एस से बनता हुआ चोली दामन का संबन्ध और तुम्हारी सारी हुड़दंग को मैं इसी शरारत का हिस्सा मानता हूँ।”
उसका चेहरा लाल हो गया और वह उठ कर बिना कुछ बोले चल दिया ।ह