सुबूही
कुछ न कहता हूँ लोग कहते कुछ न जानता है
कह रहा हूँ तो समझते हैं जानकार भी हूॅ ।
उनकी मर्जी की कह दिया ताे जान देते है
कुछ अलग कह दिया कहते हैं गुनहगार भी हूॅा।
सही लोगों के बीच कितना गलत हूँ सोचो
उनको समझाऊँ तो ‘दुश्मन का तरफदार भी हूँ।’
फिर भी इन खतरों से गुजरे तो जिन्दगी जी है
वर्ना तो मौत के पिजड़ में गिरफ्तार भी हूँ।
चलो भगवान से पूछें कि सच गलत है क्या।
‘जवाब का मै मुन्तजिर हूँ, तलबगार भी हूंँ।’
13 अगस्त 16
यूँ ही आँखों में आ गए ऑंसू
बात तो आपके मिजाज की थी ।
हुआ जाहिर जिसे छिपाना था
बात माजी की न थी, आज की थी।
कुछ तो सोचें कि क्या कहेंगे लोग
तब लड़ाई तो तख्तो ताज की थी।
आज भी ख्वाब वही हों बाकी
तब तो यह सख्त ऐतराज की थी।
14 अगस्त 16