Post – 2016-08-14

निदान ‘ 19

सेक्युलरिज्म का भारतीय पर्याय

”तुम कल जब सलाह दे रहे थे विश्व द्रोही और मानवद्रोही भावधारा से परहेज करने की तो क्या अपने ही विश्ववाद को थोथा नहीं साबित कर रहे थे ? यार तुम उदारता की बात करते हो तो उसके भीतर से भी तुम्हारी संकीर्णता उजागर हो ही जाती है। उदारता है तो सबको समान समझो, सम्माान दो, न कि अलग करो।”

“मैं जानता था यह बात तुम्हें चुभेगी, क्यों’कि यह तुम्हा री मूढ़ता से जुड़ी हुई समस्यान है। पर दुबारा समझाने का प्रयत्नत करूँगा। याद करो, हम कह जाए हैं कि निदान के समय रियायत नहीं बरती जाती, न उपचार के समय रियायत बरती जाती है। उदारता इस बात में बरती जा सकती है कि सभी मरीजों का बिना भेदभाव के निदान और उपचार हो। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक या लैंगिक भेदभाव न बरता जाय। लाभ देते हुए भेदभाव न करना अलग बात है, सबको एक जैसा मान लेना मूर्खता भी नहीं जड़ता का प्रमाण है, जो तुम देते आए हो।

”हम यहॉं दो विकल्पों के बीच सर्वोत्तम विकल्प की बात करना चाहेंगे। एक है जिसमें सुधार, पुनर्विचार, समायोजन और क्रान्तिकारी परिवर्तनों का स्वागत है। उसे दोषमुक्त नहीं मानता, पर दोष को दूर करने की प्रतिबद्धता है। इसमें भी एक छोटा सा, प्रभावहीन, तबका है जो कटमुल्लों जैसा अडि़यल है, परन्तु उसकी न कभी चली है, न चलने पाती है, क्योंंकि इसका नेतृत्व बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ में रहा है, जिसने तर्क को सबसे प्रभावशाली औजार के रूप में काम में लिया है और ब्रह्मसमाज, आर्यसमाज, प्रार्थनासमाज आदि के बड़े सामाजिक आन्दो लन खड़े किए हैं, इसलिए जिससे जुड़कर समाज के रुग्ण और सताए हुए तबकों तक पहुंच कर नैतिक आग्रह के बल पर व्यापक जनाधार तैयार हो सकता था और जमीनी सचाई को समझने का अवसर मिल सकता था। वह न तुम समझ पाए न कर पाए।

”दूसरा है जिसमें बार बार इस बात की दुहाई दी जाती है कि ऐसा कुरान में भी है, या कुरान का यह उल्लंघन नहीं है, इसलिए इस सीमा तक किसी प्रगतिशील प्रस्ताव का विरोध करना ठीक नहीं है । यह दूसरी बात है कि उसी कुरान के अनुसार उसकी भिन्न व्या्ख्या करने वाले और इसलिए उसे वर्जित मानने वाले भी हो सकते हैं और अधिक संभावना इस बात की है कि वे बहुमत में निकलें या इतने प्रभावशाली निकलें कि सुधार का प्रस्ता व रखने वालों के खिलाफ फतवा जारी कर दें या उन्हें अपनी जबान बन्द करने काे बाध्य कर सकें। ऐसा लगातार हुआ है।

”अत: वहॉं मार्क्सवाद को उस सीमा तक डाइल्यूट करना होगा कि वह खींचतान कर ही सही, कुरान से, कट्टरपन्थियों द्वारा उसकी व्याोख्या से, कम से कम आभासिक मेल पैदा करे। परन्तु इससे काम चलने वाला नहीं। क्योंकि यह इस्लाखमीकरण की प्रक्रिया का आरंभ मात्र है जिसमें कसौटी पर खरा उतरने के लिए लगातार झुकते जाना और समझौते करते जाना पड़ता है और यह प्रक्रिया पूरी तब होती है जिसके बाद तुम्हारा पूरा इस्लामीकरण हो जाता है, यद्यपि इसके बाद भी तुम उपहास के पात्र ही बने रहते हो क्योंकि जब तक तुम्हारे भीतर तार्किकता का आग्रह पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता, कट्टर मुसलमानों के सामने तुम खट्टर मुसलमान ही माने जाते हो।”

”आ गए न अपने हिन्दूवादी कार्यक्रम पर ।”

”मैंने तुमसे कहा, मैं निदान कर रहा हूँ । यदि मैं अपनी ओर से कोई चीज जोड़ कर कुछ सिद्ध करना चाहता हूँ तो उसका उल्लेख अवश्य करो, क्योंकि इससे परिणाम प्रदूषित होता है। परन्तु तुम तो कहते हो अमुक अमुक तथ्यों से ऑंखें मूँद कर निदान करो। फिर तो मूँदहु ऑंखि कतहुँ कोउ नाहीं।” न समस्या, न समाधान, न हाय तौबा, न तुम्हारी जरूरत । और तब यह जो तुम सैफ्रनाइजेशन और भगवाकरण अभुआते रहते हो, तुम्हें उस सन्निपात से भी मुक्ति मिलनी चाहिए ।”

”तुम कलारूपों पर और विशेषत: दृश्य माध्यमों पर जिन्हें अधिक योजनाबद्ध रूप में बनाया जाता रहा, उनके माध्यम से मेरे मन्तव्य को समझने का प्रयास करो। जानते हो तुम्हा्री अपने और अपनों के प्रति नफरत पहले सुधार से आरंभ हुई । चोटी तुम्हारे सौन्दार्यबोध को आहत करती थी, तो नौकरो चाकरों की मोटी चुटिया को अधिक नयनाभिराम बना कर तुम पेश करते रहे। इसे मूर्खो अनपढ़ों की पहचान बना कर पेश करते रहे। निहायत भोड़े रूप में चोटी चन्दन चर्चित किसी पंडित को, जिसको उसके हिन्दी उच्चारण के कारण अधिक हास्यास्पद बनाने के लिए उसे दक्षिण भारतीय पृष्ठभूमि का दिखाया जाता रहा और इस तरह विनोद और बढ़ जाता था। तुम इन्हें मूढ़ता और पोंगापन्थी का लक्षण बताते रहे।

”इसके माध्यम से तुमने भारी सफलता पाई जनेऊ की झंझट से भी मुक्ति मिल गई। हिन्दू महिलाएँ चोटी रखती है तो उसे भी मोम लगा कर इन्द्रधनुषी बना कर मनोरंजन कराया। लोगों ने इसे भी गुड स्पिरिट में लिया और तुम्हारी भोड़ी विनोदप्रियता पर भी हँसते रहे।

”बहादुरी, त्याग, उत्सर्गभावना का जहाँ भी अवसर आता तुम एक खान भाई को उतार देते और प्राण और नाना पाटेकर जैसे प्रभावशाली कलाकारों के माध्यम से वह गुंडई के बावजूद त्याग और सद्भभाव की मूरत बन जाता। बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता, खास कर इसलिए कि अब वह व्यक्ति भी नहीं रह जाता, केवल खान रह जाता और उसकी सदाशयता की कद्र न करने वाले अपने पुराने विश्वासों में जकड़े कितने जघन्य लगते, कितने अन्यायी और मूर्ख ।

”इस तरह सद्भावना पैदा करने के लिए तुम सबसे सशक्त‍ माध्यम से ले कर कहानी और नाटक तक में लगातार समाज को सुधारने और जिसे तुम सबसे डरावना मान रहे थे उसको रास्ते‍ से हटाने में जुटे रहे। तुम जिस दवा से बीमारी का इलाज कर रहे थे उस पर कभी किसी ने कोई आपत्ति तक नहीं की । क्‍योंकि इस देश में विचारो और बौद्धिकों की चलती आई है। दवा चलती रही फिर जो दवा का उल्टा परिणाम हुआ, उसकी कोई जिम्मेदारी कभी तुमने ली।”

वह घिरा हुआ अनुभव कर रहा था और बच निकलने का कोई रास्ता तलाश रहा था, वह रास्ता उसे मिल भी गया, ”यह सब हमारी इतनी कोशिशों के बाद बढ़ा है। यदि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते तो पता नहीं कब का क्या हो जाता।”

”यह इतना सहनशील समाज जिसे तुम लगातार छेड़ते रहे और सुधार के नाम पर अपमानित करते रहे, जिसने तुम्हारे इतने उकसावों के बावजूद कभी तुम्हा रे खिलाफ कोई आवाज तक नहीं उठाई, उसे तुम खुराफाती और हुड़दंगी मानते हो, परन्तु उसके धीरज को अधिक से अधिक अपमानजनक परीक्षाओं से गुजार कर तुमने विस्फोटक बना दिया फिर भी कहते हो कि हमने उसका अपमान न किया होता तो वह जाने क्या तूफान खड़ा कर देता। मैं समझ नहीं पाया तुम्हारे विचारों को उनकी ऊँचाई के कारण, क्या तुम समझा सकोगे मुझे अपनी समझ कहॉं से दुरुस्त करनी चाहिए ।”

वह चुप रहा । शायद उत्तर बन नहीं पा रहा था।

”एक सहिष्णु समाज को, इतने सहिष्णु समाज को, जिसे अपने इसी गुण के कारण कई बार ‘कायर’ ‘भीरु’ जैसे विशेषणों तक से अपमानित किया जाता रहा, परन्तु इसे भी सह कर जिसने अपने युगों के अर्जित संस्कार को नहीं त्यांगा, असहिष्णु, बनाने में तुम्हारी कोई भूमिका नहीं, जिसने अपने इलाज का भार चुपचाप तुम्हारे ऊपर छोड़ रखा था। यदि तुम्हारी समझ में इसका कारण अब भी न आ रहा हो तो मैं तुम्हारी मदद करूँ।”

उसने मदद तो नहीं माँगी, क्यों कि समझ उसकी इतनी अच्छी है कि कोई दूसरा उसे समझा नहीं सकता, दबे स्वर में कहा, ”इसे तुम किस रूप में देखते हो?”

”मैं इसे उसी प्रक्रिया के रूप में देखता हुँ जिसको न तो तुम समझ पाए, न स्वी’कार कर पाओगे और जिसे छिपाने के लिए तुम्हें लगातार झूठ पर झूठ गढ़ने पड़े हैं।
तुमने केवल एक बार को प्ले्बीसाइट का समर्थन करने की भूल नहीं की थी, उसके परिणामों को मुस्लिम लीग की इच्छा के अनुसार मोड़ने के अभियान में हिस्सा लिया था। उसके इरादों को लगातार अपने कार्यक्रम का हिस्सा बनाए रखा और लगातार उस पर खरा उतरने के लिए अधिक उग्रता अपनाते चले गए और आज जब लगा कि अब तो बाजी ही पलटने वाली है तो अभी चुनाव आरंभ भी नहीं हुए थे तुम खंडप्रलय की भविष्यवाणियॉं करते हुए, उसकी उपलब्धियों पर परदा डालते हुए, घिनौने से घिनौने हथियार का प्रयोग, उसे लांछित और अपमानित करने के लिए करते रहे और वह अपनी राष्ट्रनिष्ठाा और सर्वसमावेशी अभि‍यान के विश्वास पर अडिग तुम्हारी स्थिति यक्ष पर वाणों की बौछार करने वाले अर्जुन की सी किए मूस्काराता और प्रचार माध्यमों को किनारे डाल कर जनता से सीधे संवाद करते हुए अपनी बात समझाता और अपने इरादों को स्पमष्ट करता रहा और इसके अनुपात में ही तुम्हारी बौखलाहट विक्षिप्तता के हाशिये तक पहुँती गई है। अब कल यदि तुमको कहना पड़े कि हमारा यह प्रस्ताव कुरान के अनुरूप है तो मुझे तो आश्चर्य न होगा, बल्कि खुशी होगी कि लोगों की समझ में तो आ गया भारतीय सेक्युैलरिज्म किसका पर्याय है!
14-Aug-16