एक अतुकान्त भी
सभी अक्षरों से परे मेरी जिंदगी
सभी श्ब्दों से परे मेरी पीड़ा
अर्थहीनता के मूर्धन्य कोण पर मेरी जिज्ञासा
अतीत और भविष्य के दो पाटों के बीच की अपरिभाषित दरारमें
पिसती मेरी योजनाएँ
‘मैं हूँ
‘मै ही रहूंगा बचा’ के हाहाकार में
अपने को तलाशता मैं
आपके सामने उपस्थित
शायद
जीवित
शायद
जीवितों की तलाश में भटकता
इस सांस्कृतिक मुर्दाघर में ।
04.05.2006