Post – 2016-07-28

अल्‍पसंख्‍यक अल्‍पसंख्‍यता का सिंड्रोम

तीन

”डाक्‍साब कई बात लगता है आप अपनी रौ में कुछ अति कर देते हैं। यह ठीक है कि सैयद अहमद ने रईसों का विशेष रूप से उल्‍लेख किया परन्‍तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि वह दूसरे मुसलमानों को, कहें आम मुसलमानों को आगे बढ़ने नहीं देना चाहते थे।”
”मैं कल्‍पना से कुछ नहीं गढ़ता। कांग्रेस की मांगों में एक थी कि सिविल सर्विस में भारतीयों को भी अवसर मिले, और यह परीक्षा इंग्‍लैंड में न हो कर भारत में ली जाए। यह उन मुद्दों में एक था जिसकाे उन्‍होंने बहुत अनुचित बताया था: उनका कहना था कि क्‍या आप चाहेंगे कि एक दर्जी का परीक्षा पास करके आप पर हुक्‍त चलाये। ठीक ऐसी ही आपत्ति किसी सुयोग्‍य मुसलमान के वाइसराय की कौंसिल का सदस्‍य बनने पर थी:
It is very necessary that for the Viceroy’s Council the members should be of high social position. I ask you — Would our aristocracy like that a man of low caste or insignificant origin, though he be a B.A. or M.A., and have the requisite ability, should be in a position of authority above them and have power in making laws that affect their lives and property? Never! Nobody would like it.
और वह भी तब जब वह खुद मानते थे कि रईसों में अधिकांश तो पढ़े लिखे भी नहीं हैं और किसी विषय पर बहस में हिस्‍सा तक नहीं ले सकते। यह एक कारण था कि उनको अंग्रेजी शिक्षा पर ध्‍यान देना चाहिए।. It is our great misfortune that our Raïses are such that they are unable to devise laws useful for the country.

”इसका कारण क्‍या हो सकता है?”
”कारण समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि वह स्‍वेच्‍छा से, जैसा कि पुराने दरबारों में सेवा का अवसर पाने के लिए होता था, अपने को तन और मन से ब्रिटिश सरकार को समर्पित कर चुके थे और न केवल सरकार के हर एक काम का आंख मूंद कर समर्थन करते थे अपितु यह भी कहते थे कि यदि यही काम उन्‍हें करना हो तो इससे अधिक कठोरता से काम लेंगे।”

”कौन चाहेगा ऐस, क्‍यों चाहेगा ?”
”इसका एक कारण तो यह था कि मुसलमानों के प्रति अंग्रेजों का 57 के विद्रोह के कारण जो अविश्‍वास पैदा हुआ था उसको उनके मन से निकाल देना चाहते थे:
. O brothers! Government, too, is under some difficulties as regards this last charge I have brought against her. Until she can trust us as she can her white soldiers, she cannot do it. But we ought to give proof that whatever we were in former days, that time has gone.

”दूसरा कारण था कि वह अपनी स्‍वामिभक्ति के बल पर हिन्‍दुओं से बाजी मार ले जाना चाहते थे। हिन्‍दू से उनका मतलब मुख्‍यत: बंगालियों से था और इसलिए वह दूसरे समुदायों की भागीदारी के बाद भी कांग्रेस को बंगाली हिन्‍दुओं की संस्‍था मान रहे थे इस बात से आशंकित थे कि अपनी योग्‍यता के बल पर वे उच्‍च पदों पर पहुंच कर रईसों और अमीरों पर भी हुक्‍त चलाने लगेगे, पर इसका जवाब यह कि बहादुर पठान और राजपूत जो जान देकर भी आन बचाते रहे है उनकाे सबक सिखा देंगे:
I am delighted to see the Bengalis making progress, but the question is — What would be the result on the administration of the country? Do you think that the Rajput and the fiery Pathan, who are not afraid of being hanged or of encountering the swords of the police or the bayonets of the army, could remain in peace under the Bengalis?
जाहिर है वह बंगालियों की प्रगति से प्रसन्‍न तो नहीं ही थे। इसी तरह पठानों के साथ राजपूतों को लेना भी एक रणनीतिक चाल थी, परन्‍तु यह युद्धनाद जैसा स्‍वर सच कहें तो उनकी भीतरी बेचैनी और गहरी असुरक्षा को प्रकट करता है। अभी देश के स्‍वतन्‍त्र होने का तो किसी ने सपना तक नहीं देखा था या देखा था तो भारतेन्‍दु ने जो अमेरिकी क्रान्ति की तरह एक मुक्ति क्रान्ति की बात केवल एक स्‍थल पर करते हैं, जो तक एक दिवास्‍वप्‍न से अधिक कुछ न था, समस्‍या प्रशासनिक अग्रता और वायसराय की कौंसिल में प्रतिनिधित्‍व का था और हर सूरत में वह हिन्‍दुओं का प्रतिनिधित्‍व मुसलमानों से चार गुना पाते थे और शिक्षा में भी हिन्‍दुओं के आगे रहने के कारण उनके प्रतिनिधित्‍व को अधिक प्रभावशाली पाते थे और इसके चलते उन्‍हें मुसलिम हितों काे क्षति पहुंचती दिखाई दे रही थी। इसलिए वह चाहते थे कि कांग्रेस का अभियान सफल न होने पाए और मुसलमान उससे दूर रहें:
Therefore if any of you — men of good position, Raïses, men of the middle classes, men of noble family to whom God has given sentiments of honour — if you accept that the country should groan under the yoke of Bengali rule and its people lick the Bengali shoes, then, in the name of God! jump into the train, sit down, and be off to Madras, be off to Madras!

”पर इसमें एक चार के अनुपात वाली बात तो नहीं है।”

”उसे उन्‍होंने काफी विस्‍तार से कई संभव विकल्‍पों को सुझाते हुए समझाया था जिसका केवल एक संकेत करना ही उचित होगा:
And let us suppose first of all that we have universal sufferage, as in America, and that everybody, chamars and all, have votes. And first suppose that all the Mahomedan electors vote for a Mahomedan member, and all Hindu electors for a Hindu member; and now count how many votes the Mahomedan members have and how many the Hindu. It is certain the Hindu members will have four times as many, because their population is four times as numerous.

”यह ध्‍यान रखिए कि हिन्‍दू मुसलिम कभी घुल मिल कर नहीं रहे, उसके कारण थे, संबंध जब अच्‍छे रहे या जिन लोगों के बीच जिस पैमाने पर अच्‍छे रहे वह आपसी समझदारी के कारण था। इस सचाई को को दरार गहरी करने के लिए इतिहास के तथ्‍यों की तोड़ मरोड़ से गहरा किया गया था और इसलिए जब तब सैयद अहमद का वह भय बहुत खुल कर प्रकट हो जाता था। यह चेतना उनके भीतर इतनी कुशलता से उनके श्रेष्‍ठता बोध को उभारते और उसकी तुष्टि करते हुए की गई थी कि प्रथम दृष्टि में लगे योजना उनकी अपनी है और उनकी चातुरी और कूटनीतिक चतुराई के कारण अंग्रेज उसका समर्थन कर रहे थे।”

”बात समझ में नहीं आई।”

”सबसे पहले यह खूराक दी गई कि मुसलमान शिक्षा में पिछड़ गए हैं और हिन्‍दुओं ने इस अवसर का बढ़ कर लाभ उठाया है, इसलिए वे आगे बढ़ गए हैं और मुसलमानों का हक मार रहे हैं। यह सचाई भी थी। परन्‍तु इसमें एक शरारतपूर्ण नुक्‍ला काल्‍पनिक जोड़ा गया था कि मुसलमान यहां शासक रहे हैं, वे हिन्‍दुओं से नफरत करते हैं इसलिए वे उन्‍हीं स्‍कूलों में हिन्‍दुओं के साथ बैठ कर पढ़ने को तैयार नहीं हो सकते।”

”कोई आधार है इस कल्‍पना का ?”

”यह बात हंटर की उस पुस्‍तक में बहुत खुले रूप में आई थी जिसका शीर्षक था मुसलमान क्‍या महारानी के प्रति वफादार रह सकते हैं और जिसमें उनके पिछडने, हिन्‍दुओं द्वारा उनका हक मारने, नौकरियों में उनको अधिक प्रतिनिधित्‍व देने की बात की गई थी और उनकी इस शरारत को भांपते हुए दादा भाई ने एक लेख लिखा था हंटर के हंटर। पर दादा भाई तो आगे चलकर कांग्रेस के जन्‍मदाताओं में से एक बने। जो कांग्रेस से ही खौफ खाते थे, उनकी भी नजर में तथ्‍यत: यह गलत होते हुए भी व्‍याजत: अनुकूल था। आगे चल कर शिक्षा नीति को ले कर भी जो विचार विमर्श आरंभ हुआ हंटर उसका कमिश्‍नर था। खैर, सर सैयद अवध में शिक्षा के विकास के लिए बहुत चिन्तित थे । मध्‍यकालीन सोच को आधुनिक बनाने लिए, वैज्ञानिक खोज को बढ़ावा देने के लिए, गाजीपुर में उन्‍होंने एक संस्‍था स्‍थापित की:
On January 9, 1864, he convened the first meeting of the Scientific Society at Ghazipur. The meeting was attended, among others, by Ahmad Khan’s future biographer, Colonel Graham, who was convinced that India could benefit from England’s technological wealth.

परन्‍तु इसके पीछे एक पेंच था कि हल बैल की जगह आधुनिक मशीनों का उपयोग हो, ट्रैक्‍टर आदि से काम लिया जाय और इस तरह ब्रिटेन में उन मशीनों का बड़े पैमाने पर उत्‍पादन हो और भारत उसका बाजार बने। इसलिए इस पहल का विरोध भी हुआ, यह मैं माखनलाल जी की जीवनी के आधार पर कह रहा हूं। इस संस्‍था में कर्नल ग्राहम का शामिल होना, कहने को सहयोग हुआ और होने केा एक व्‍यूह हुआ जिसे शिक्षा के प्रति अपने आन्‍तरिक लगाव के कारण सैयद अहमद भांप नहीं सकते थे। बाद में उन्‍होंने इसे गाजीपुर से अलीगढ़ स्‍थानान्‍तरित किया। ठीक ऐसा ही व्‍यूह था हंटर का वह सुझाव कि मुसलमानों में शिक्षा के प्रसार के लिए हिन्‍दुओं से अलग स्‍कूल कालेज खोले जायं। सच कहें तो कलकत्‍ता में संस्‍कृत कालेज के साथ ही फारसी का भी एक कालेज स्‍थापित किया गया था, परन्‍तु उसके बारे में हंटर को शिकायत थी कि वह मुसलिम आबादी से दूर है और वहां पहुंचने के लिए उन्‍हें हिन्‍दुओं के मुहल्‍ले से हो कर गुजरना पड़ता है। इस चिन्‍ता या चाल ने ही एक मुस्लिम कालेज की नीव रखी गई। हिन्‍दू भी इस चाल से बेअसर नहीं रह सकते थे अन्‍यथा बनारस विश्‍वविद्यालय के साथ हिन्‍दू शब्‍द नहीं जुड़ता। आगे जामिया इस्‍लामिया आदि में भी यह फलीभूत हुआ और बाटो और राज करो की कांग्रेसी नीति के चलते एक बार अर्जुन सिंह ने घोषणा की ही थी कि मुसलमानों के लिए अलग आई आई टी खोला जाएगा गाे वह फलीभूत नहीं हुआ।

अहमद खा की हैसियत भी थी और ब्रिटिश कूटनीति के लिए यह अवसर भी था इसलिए उनके अहं तुष्टि के लिए यह कम नही था कि अपने लंदन प्रवासकाल में :
He was “in the society of lords and dukes at dinners and evening parties”, he saw “artisans and the common working-man in great numbers”, he was awarded the title of the Companion of the Star of India by none other than the Queen herself; this “elevated” him so that henceforth he would call himself Sir Sayyid Ahmad Khan Bahadur, C.S.I.; he dined with the Secretary of State for India and though he was beset with economic problems, he fulfilled the protocol by hiring private horse carriages for his visits which drained his purse.
इसी का प्रतिदान था उनका वह कथन जिसमें उन्‍होंने अंग्रेजों के सामने भारतीयों की तुलना गन्‍दे जानवरों से की थी:

“Without flattering the English,” he wrote, “I can truly say that the natives of India, high and low, merchants and petty shopkeepers, educated and illiterate, when contrasted with the English in education, manners, and uprightness, are like a dirty animal is to an able and handsome man.” Ahmad counted himself among the “animals” and felt the pain and anguish of being part of a degenerated culture.

”क्‍या हुआ, आप चलने को तैयार हो गए? उपमा पसन्‍द नहीं आई?”

”एक आवश्‍यक काम याद आ गया।