Post – 2016-07-24

मैंने पहले भी कहा है कि लेख मैं लिखता हूं उसके समानान्‍तर, शायद, तुकबन्दियां मेरे अवचेतन में कोई करता चलता है । विषय कभी वही कभी उससे अलग। लेख जितना ही उलझाने वाला तुकबन्‍दी उतनी ही लंबी या एक दो तक पहुंचने वाली। कभी कभी निहायत वाहियात भी। पहले उपेक्षा कर देता था इधर टांकने लगा। कल लेख पोस्‍ट किया और उसके कुछ ही बात अवचेतन साहब ने अपना कारनामा पेश कर दिया। तुकबन्‍दी पढते समय इसका ध्‍यान अवश्‍य रहे। वह जैसी भी मेरे वश में नही है:
कभी कुछ किया कभी कुछ कहा
जो किया कहा वो दुरुस्त था।
न विचार कर के किया, कहा
क्योंकि आदमी वो दुरुस्त था।

जो किसी ने उसको सिखा दिया
जो किसी ने उसको पढा दिया
वह सिखाता दूसरो को रहा
क्योकि आदमी वह दुरुस्त था।

मैने पूछा उसका पता जहां
कहा मेरे ठौर अनेक हैं
रहूं संघ में या कुसंग में
क्योंकि आदमी वह दुरुस्त था।

कभी कह के सोचा न बाद में
कभी करके देखा न बाद में
न तो पूछा कैसी रही बता
क्योंकि आदमी वो दुरुस्त था।

वह हजारों साल जिया मगर
था वह जैसा वैसा बना रहा
न डिगा न आगे बढ़ा कभी
क्योंकि आदमी वो दुरुस्त था।

मुझे डांटता वो रहा सदा
तू संभल जा मौका है आखिरी
मेरा खैरख्वाह था सोचिए
क्यो कि आदमी वो दुरुस्त था।

न तो मैंने उसको सही कहा
न गलत हूं ऐसा वो मानता
वह प्रमा, प्रमेय, प्रमाण था
क्योकि आदमी वो दुरुस्त था।

उसे देर हो या सवेर हो
जो पहुँच गया तो पहुचगया
सभी कहते वक्त दुरुस्त है
क्योकि आदमी वो दुरुस्त था।

कई देश उसको निहारते
कई देश उसको पुकारते
कई खा के उसको डकारते
क्योकि आदमी वो दुरुस्त था।

मैंने पूछा मुझको बता सही
ये दुरुस्त होते हैं किस तरह
भगवान खुद ही गलत लगा
क्योंकि आदमी वो दुरुस्त था ।।
23 जुलाई 16 22:25