निर्विषीकरण की चुनौती
शास्त्री जी, मेरे मुहल्ले में एक सज्जन रहते थे। खासे आलसी थे। कुछ भी करना हो तो उनका एक ही जवाब होता था, बहुत हो गया। बहुत कर लिया। अब अपने बस का नहीं। हम बच्चे थे उनके इस जवाब को सुन कर हंसते थे। हंसने का एक कारण यह था कि उनका लड़का मेरा सहपाठी था। वह अपनी मां से फीस वगैरह ले कर भरता था। वह भी उनकी इस आदत के कारण उनका मजाक उड़ाने के लिए कई बार उनसे ही फीस मांगता और उनका वही जवाब ‘बहुत हो गया, बहुत पढ़ लिए, अब मेरे बस का नहीं।’ वह नाटक में मुंह लटका कर सामने से चल देता और पीठ पीछे होते ही हंसते हुए कहता, ‘बहुत हो गया। अब मेरे बस का नहीं।’ और हम सभी हंस पड़ते। लेकिन अब उसकी याद आती है तो हंसी नहीं आती, उदास हो जाता हूें कि निकम्मापन हमारा राष्ट्रीय चरित्र बन गया है और हम पहल करना तक नहीं जानते और मान लेते हैं कि अब तक जो कुछ भी हो गया वही बहुत हो गया। आगे कुछ करने को नहीं।”
शास्त्री जी भांप गए कि मैं क्या कह रहा हूं। बोले, ”अाप ही सुझाएं क्या किया जा सकता है।”
”पहली बात तो यह कि हमें नकल करने की आदत छोड़ कर अपने से अनुभवी लोगों से कुछ सीखना होगा। इनमें वे भी हैं जो हम पर कल तक शासन करते रहे और वे भी हैं जो हमें तोड़ने, बांधने और अपने ऊपर अधिकाधिक निर्भर रहने के लिए जाल फैला रहे हैं, और विचार के मामले में मतसंख्या के दबाव से मुक्त रहना होगा।”
”मैं समझ नहीं पाया कि आप क्या कह रहे हैं, या मुझसे क्या करने को कह रहे हैं। उस सज्जन ने जो तर्क दिए थे वे सभी इस बात की पुष्टि करते हैं कि मुसलमानों में जो अपने सेकुलर तेवर दिखाते हैं उनके मन में भी कम से कम एक हिन्दू को मुसलमान बनाओ और इस तरह अपनी संख्या बढ़ाओ की योजना प्रेम विवाह के रूप में फलीभूत होती है! ऐसे लोग अधिक खतरनाक होते हैं क्योंकि ये दोस्त बन कर भितरघात करते हैं। सेक्युलर शब्द और सेक्युलर सिद्ध होने की व्यग्रता केवल हिन्दुओं में मिलती है और यह व्यग्रता उस रिक्तता की उपज है जो क्रान्ित का दावा करने वालों में स्वयं अपने झूठे दावों से मोहभंग होने से पैदा हुई। कहावत है चोर चोरी से जाएगा, हेराफेरी से नहीं जाएगा। इसका मतलब यह है कि मुसलमानों में सच्चे मन से कोई कम्युनिस्टं भी नहीं था। वे इस तेवर के साथ उसमें इसलिए घुसे थे कि कम्युनिज्म की आड़ में अपना सांप्रदायिक लक्ष्य पूरा कर सकें। यह प्रवृत्ति देशव्यापी या कहें विश्वव्यापी स्तर पर न होती तो मैं ऐसा नहीं सोचता। इतने सालों तक कम्युनिज्म का अभिनय करते हुए भी सोवियत संघ के मुस्लिम चुप साधे रहे परन्तुु तनिक सी ढील मिलते ही, अपनी पूरी कट्टरता के साथ सामने आ गए। चीन कम्युुनिस्ट देश है या ऐसा होने का दावा करता है पर उसके मुस्लिम बहुल क्षेत्र चीन के कब्जे में है, पर कम्युनिस्ट नहीं है। ये जहां भी है, जिस भी प्रदेश में या विश्व के जिस भी देश में इनका एकमात्र लक्ष्य संख्या-वृद्धि करते हुए बहुमत में आ कर पूरे संसार का इस्ला्मीकरण करना है।”
मैं हंसने लगा तो शास्त्री जी सहमे नहीं। उनके स्वर में पहले से अधिक दृढ़ता आ गई, ”नहीं, यह हंसने की बात नहीं है डाक्साब। मेरी उन सज्जन से लंबी बहस हुई और मुझे पहले जो सोचा था उस पर दुबारा सोचना पड़ गया। देखिए तीन शक्तियां एक साथ विश्व को अस्थिर करके, पूरी धरती को विनाश के कगार तक ले जा कर भी अपनी विश्वविजय की अभिलाषा पूरी करने के लिए प्रयत्नशील है। तीन दशक पहले तक एेसी केवल दो ही शक्तियां थीं – पूंजीवाद और साम्यजवाद । साम्यवाद ने हथियार डाल दिए तो एक नया समीकरण या उलट कर कहें एक नया असंतुलन पैदा हो गया जिसमें पूंजीवाद विनाशकारी आयुधवाद के रूप में अमेरिका की सुदूर विश्वविजय की योजना का अंग है जिसमें दूसरे देशों को लड़ाते हुए एक साथ तीन काम किए जा रहे हैं, उनमें युद्धोन्माद पैदा करके उनके विकास को रोकना, उनको अपने हथियारों का गाहक बनाना, उनको कमजोर करना और लड़ते हुए मिटने के कगार पर लाना और समर्थन के लिए अपने ऊपर अधिकाधिक निर्भर बनाते जाना और इस क्रम में उनके साथ चूहे बिल्ली का खेल खेलना। दूसरी ओर पूंजीवादी विकास है जो आपसी होड़ में जल्द से जल्द बहुत थोड़े समय में विश्वव की समस्त खनिज संपदा काे फालतू उत्पादन द्वारा नष्ट करके पर्यावरण को विनाश के कगार पर पहुंचा रहा है और तीसरी ओर इस्लाम का यह नया अभियान है जो जनसंख्याा विस्फोट के द्वारा मानवता का संतुलन नष्ट करता हुआ विश्व के सभी देशों को मुस्लिम बहुल बनाते उस स्थिति में पहुंचाने की योजना पर काम कर रहा है जिसमें या तो दूसरे मुसलमान हो जायं तभी बचे रह सकते है या हीन और अमानवीय कार्यो के लिए बाध्य किए जा सकते हैं जैसा कि मध्यकाल में हारे हुए राजपूतो को भंगी का काम करने पर विवश करके किया गया।”
मैं इस बार हंस नहीं सकता था । पूछा, ”आपकी बात पूरी हो गई ।”
पूरी होने को कहां है, ”पूरी मान लीजिए तो पूरी है, पर यह एक एेसी भयावह स्थिति है कि …”
”आपका सुझाव है कि दूसरों को भी अब बहुत तेजी से अपना संख्या विस्तार करना चाहिए अन्यथा इस संकट से बचने का उपाय नहीं।”
”यही तो नहीं होगा। उसका परिणाम होगा अन्न, पानी, हवा, रहने के ठौर, जीवनस्तर सभी का विनाश और पूरी दुनिया का अमोघ स्लम में बदल जाना। उन्हें पता है, दूसरे सभ्य और जिम्मेदार लोग हैं, इसलिए वे तो ऐसा करेंगे नहीं और इसका लाभ उन्हें मिलेगा।”
”इतनी बड़ी योजना, इतनी दूरगामी। इसका योजनाकार तो कोई होगा ही।”
”आग लगाने के लिए योजना की जरूरत नहीं होती, सिर्फ खब्त की जरूरत होती है। वह तो आप जानते ही हैं अपने को खलीफा बनाना ही चाहता है।”
”पर उसने तो अभी तक सबसे अधिक मुसलमानों को ही नुकसान पहुंचाया है। उनको नष्ट भी किया है, उनको बदनाम भी किया है और अपनी योजनाओं के द्वारा जिन देशों में उनको खुली पनाह मिलती थी उनमें उनकी छवि खराब करके उनके हितों को, रोजगार को, आर्थिक अवसरों को और इस्लाम से जुड़ी हर चीज को यहां तक कि उनकी सुरक्षा को भी क्षति पहुंचाई है। यह योजना किसी मुसलिम चिंतक की तो नहीं लगती। यह उसकी योजना अवश्य हो सकती है जिसको कल तक आप पहचानते थे और आज भूल गए हैं या आज उसके पैशाचित इरादों को मानवीय बना रहे हैं। देखिए कल तक स्थिति यह थी कि पहली बार अमेरिका का राष्ट्रपति एक मुसलमान है और आज एक ऐसे उम्मीदवार को लगातार शह मिलती जा रही है जो मुसलमानों काे मिटा देना चाहता है। इस योजना का तो लाभ मुसलमानाें को नहीं मिलता दिखाई देता। आप दुबारा सोचिए।”
”रही बात उन तथ्योंं की जिनके आंकड़े आप दे रहे थे या जिनको सांख्यिकीय तर्क से सही बता रहे थे। इसको मैं हंस कर उड़ाना नहीं चाहता, पर यह बताना चाहता हूं कि यह भी किसी उतने ही घुटे, मजे कूटनीतिकार का पाठ है जिसे समझने में मुसलिम समुदाय से चूक हुई और हमसे भी अौर जिसके कई कुपरिणाम सामने आए।
”इसीलिए कह रहा था कि उन मजे हुए कौटिल्यशिष्यों से शिक्षा लेने का समय है, घबराने वाला आदमी अपना होश गवां देता है। आप जो कह रहे हैं, उससे केवल घबराहट बढाई जा सकती है और जिनको रक्तचाप की शिकायत है उनकी उम्र छोटी की जा सकती है। पहले यह देखिए कि ऐसी संभावनाएं पैदा होने पर उन्होंने किस कूटनीतिक चतुराई से अपनी ओर तने हुए खंजर को अपने शत्रुआ की ओर मोड़ ही नहीं दिया, उसे अधिकाधिक विषाक्त करते चले गए और दोनो के हितैषी होने और न्यायपरायण होने का नाटक भी जारी रखा। पर आज आप का रक्तचाप अपने ही विचारों से इतना बढ़ गया होगा कि मैं समझाना चाहूं भी तो आपको समझा नहीं पाऊंगा। हमें इस विषाक्त वातावरण में निर्विषीकरण की जटिल और गंभीर समस्या से जूझना है। कल बात करेंगे उस पाठ की जो भारतीय मुसलमानों को ही नहीं पढ़ाया गया अपितु जिसे यूरोपीय सोच का हिस्सा भी बना दिया गया और हिन्दू बुद्धिजीवी भी इसे ही सच मानते रहे ।‘’
शास्त्री जी मेरी बात से शायद पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं हुए । वह थके हुए स्वर में बोले, ”चलिए, कल ही सही।”