इस हवा में सड़न या घुटन ना रहे।
ना रहे एकदम, एकदम ना रहे।
ऐसी दुनिया बनाओ मेरे दोस्तो
हम रहें, ना रहें, पेचो-खम ना रहे।
जब गले से मिलें दिल में घड़कन भी हो
कोई अफसोस कोई जलन ना रहे।
नाबराबर हैं जो वे बराबर चलें
कोई ओछा गिरा एकदम ना रहे ।
सबको इज्जत मिले सबको औसर मिले
जन्म से कोई भारी या कम ना रहे।
हम हंसें तो उषा का परस बास हो
झेंप शामिल न हो आंख नम ना रहे।
हम बढ़े फिर तो आगे ही आगे चले
रुकता डिगता ठिठकता कदम ना रहे।
यह तो खाहिश है भगवान की आज पर
यह सपन कल भी केवल सपन ना रहे।।
21 जुलाई 16
यह दिल जैसा था वैसा अब नहीं है
कहा जिसने भी हो, जुमला सही है
जो देते जान थे, वे दर गुजर हैं
बचों में अब बची चाहत नहीं है।
पढ़ो इन झुर्रियों को, गौर से तुम
शिकन की हर इबारत कुछ नई है
बताओगे समझ में आ गई तो
कि किसने कितनी गहरी चोट दी है।
मरेंगे अब तुम्हीं पर नाजनीना
मगर कुछ और कहने को पड़ी है।
जरा बन ठन के आना तुम अदा से
अभी से बढ़ रही क्यों बेकली है।
अरे भगवान इतना मनचला है
कि मैयत से भी करता दिल्लगी है।
२१ जुलाई २०१६