हम वहां से अजान देते हैं
जहां से लोग जान देते हैं
जानते ही न जान की कीमत
फिर भी देने की ठान लेते है।
थी तो मेरी मगर न मेरी है
”उनकी है जो कि जान लेते हैं।”
गुलामी इतनी पर गरूर में साथ
”आप क्यों उनकी मान लेते हैं
”क्या मिला आपको कहां से मिला
”यह भी कुछ लोग जान लेते हैं।”
राज भगवान से पूछा तो कहा
‘हम फकत’ लंबी तान लेते है।।’
१९/०७/१६ २३:१७