Post – 2016-07-15

हिफाजत अपने घर की हम करेंगे या नहीं साहब
हम उनसे पूछते हैं, उनसे समझाया नहीं जाता।

”डाक्‍साब, आप बहुत आशावादी हैं। मुझे नहीं लगता कि केर बेर का संग कभी निभ सकता है।”

”खास करके तब जब केर को बेर बेर समझे अपने को केर। विवाद में दोनों पक्ष अपने को सही और दूसरे को गलत मानते हैं। संवाद में वे अपनी गलतियों पर भी ध्‍यान देते हैं और दूसरे की सही बातों को भी स्‍वीकार करते हैं इसलिए सहमति या दोनों के हित की कार्ययोजना पर आगे बढ़ना संभव हो पाता है। ”

”यही तो हम बार बार करते आए हैं और उन सभी के परिणाम उल्‍टे रहे हैं।”

”ऐसा प्रयत्‍न कभी आपने किया है। सच कहिएगा! कभी आपने अपने कार्य या वचन से इसकी पहल की है? जिन्‍हाेंने की उन्‍होंने उल्‍टे परिणाम के बाद भी कभी हिम्‍मत हारी ? आप पहल भी नहीं करते और पहले ही हिम्‍मत हार जाते हैं और उसके बाद हार के सिवा बचता क्‍या ?”

शास्‍त्री जी चुप लगा गए । मैं जारी रहा, ”संघ का जन्‍म घृणा के बीज से हुआ है और इसका मुख्‍य स्‍वर रहा है अलगाव। इसमें बौद्धिक चर्चा के बहाने मुस्लिम समुदाय से घृणा पैदा करने और उसे कई रूपों में, कई बहानों से दुहरा गर पक्‍का किया जाता है इसलिए संघ के साथ सभी हिन्‍दू तक आश्‍वस्‍त नहीं रह पाते, क्‍योंकि आपका हिन्‍दुत्‍व भी सवर्णवादी है।”

शास्‍त्री जी विचलित न हुए, ”आप ने कैसे जाना कि हमें संघ में क्‍या सिखाया जाता है? आप तो कभी शाखा में गए नहीं, उल्‍टे हमारे लोगों ने इस पार्क में शाखा लगाने की योजना बनाई तो सुना, आपने ही उसका विरोध करके रुकवा दिया था। सुना, आपने कहा था यह सेक्‍युलर स्‍पेस है, यहां धार्मिक या सांप्रदायिक आयोजनों के लिए जगह नहीं है। आपने कहा था, यहां पड़ोस की अबुल फजल सोसायटी के लोग यहां नमाज पढ्ने आ जाएंगे तो हमारे शाखा प्रमुख ने कहा था, आने दीजिए, हमें उनसे कोई समस्‍या नहीं है (उल्‍लेखनीय है कि यह कथन कल्‍पना प्रसूत नही है, तथ्‍य है)। मैं आपको बता दूं कि हमारे यहां शाखा में कोई मुस्लिम आना चाहे तो उस पर रोक नहीं है। हमारे यहां जाति का भेदभाव नहीं किया जाता और संघ के स्‍वयंसेवक, वे जाति-वर्ण-भेद भुला कर, साथ बैठ कर भोजन करते हैं। आप देखिए तो कम्‍युनिस्‍ट संगठनों में संघ से कुछ अधिक ही सवर्ण मिलेंगे।

”देखिए जिन दिनों कांग्रेस के झंडा गान में ‘विजयी विश्‍व तिरंगा प्‍यारा’ गाया जाता था और ‘विश्‍वविजय करके दिखलाएं तब होवे प्रण पूर्ण हमारा’ का सपना देखा जाता था, तब भी हमारी ध्‍वज वंदना में केवल यह कामना थी कि हम विश्‍व की किसी भी शक्ति से पराजित न हों, अजेय शक्ति हो हमारे पास (अजय्यां च विश्‍वस्‍य देहि स शक्ति:) और सबके प्रति हम सुशील बने रहे और नम्रता से व्‍यवहार करें (सुशीलं जगद्वे न नम्रं भवेम)। चाणक्‍य का एक वाक्‍य है, संघा हि संहतत्‍वात् अनाधृष्‍या परेषाम्, हमारा संगठन उसी से प्रेरित है। दूसरों का धर्षण करना हमारी योजना का अंग नहीं है,उनके लघर्षण से अपने को सुरक्षित रखना हमारा ध्‍येय है। यह भी असह्य लगता है आपको? अपने जन्‍म से ही हमारी तैयारी केवल आत्‍म रक्षात्‍मक रही है। आपको इससे भी डर लगता है? आप हमें दरिंदों के हाथ सुपुर्द करना चाहते हैं?

“हम घृणा के बीज से नहीं पैदा हुए, आत्‍मगौरव के बीज से पैदा हुए हैं, जिसका अज्ञात कारणों से निरन्‍तर ह्रास होता गया है। उन कारणों का पता लगाना आप जैसे मनीषियों का काम है, जो आप कर नहीं रहे हैं। आप संघ के छोटे से छोटे स्‍वयंसेवक से बात कीजिए तो पता चलेगा, हम कोरी लफ्फाजी नहीं करतें, इन सिद्धान्‍तों पर आचरण भी करते हैं। और इसे समझे जाने विना आप जैसे व्‍यक्ति ने, इतना गंभीर आरोप उस दुप्‍प्रचार के विष का लगातार सेवन करते रहने के कारण कर दिया, यह सोच कर दु:ख भी होता है और निराशा भी पैदा होती है। जब आप तक उससे नहीं बच पाए हैं तो सोचिए हमारे आर्तनाद को भी हुंकार बना कर हमें मुस्लिम लीग की कार्ययोजनाओं को सेक्‍युलरिज्‍म का नाम देने वालों ने कहां ला छोड़ा है। हमारे बुद्धिजीवियों के पास इतनी भी बुद्धि नहीं है कि वे इस साजिश को पहचान सकें। सोचिए ऐंटी सेमिटिज्‍म के इस नए संस्‍करण एंटी हिन्‍दुइज्‍म को यदि सेक्‍युलरिज्‍म नाम दे दिया गया है तो इसकी परिणति में अन्‍तर आएगा?”

”आपका मतलब मेरी समझ में नहीं आया, आप क्‍या कहना चाहते हैं।”

”आप जैसे विद्वान यदि समझना ही न चाहें तो मैं क्‍या समझा सकता हूँ डाक्‍साब। फिर भी यह निवेदन करूं कि कोई काम बुराइयों से शून्‍य नहीं होता – दोषवर्जितानि कार्याणि दुर्लभानि। हमारे भीतर और हमारे कामों में भी कुछ दोष रहे हैं और आज भी कुछ होंगे, हमने उनको समझा है, उनमें सुधार किया है। इससे घबरा कर हमारे इतिहास में जाकर आपके सेकुलरिस्‍ट सामग्री जुटाते हैं कि हिन्‍दू समाज को गर्हित सिद्ध किया जाय। कोई वाटर बनाना चाहता है कोई फायर और आपत्ति होने पर हंगामा करते हैं, यह देखते तक नहीं कि हमारा समाज उससे बाहर आ चुका है और निरंतर आत्‍मनिरीक्षण करते हुए अपने को सुधार रहा है। उन्‍हें उन देशों से पैसा मिलता है, जिनके लिए वे काम कर रहे हैं और फिर भी यह मानने को तैयार न होंगे कि वे विके हुए देशद्रोही हैं। उनको और उनके विचारबन्‍धुओं काे प्रमाणों से नहीं समझाया जा सकता क्‍यों‍कि बिके या बिकने को तैयार आदमी की समझ में प्रमाण नहीं आते। कौटिल्‍य के शब्‍दों मे कहूं तो ‘कोनाम अथार्थी प्रमाणेन तुष्‍यति’।

”भारतीय इतिहास में पहली बार बुद्धिजीवियों को वह छूट मिली है जो राजनयिकों को मिला करती है और वे उसी तरह इस देश के अहित मेंं उस छूट का उपयोग भी कर रहे हैं, क्‍योंकि जानते हैं कि यह पहला शासन है जिसमें उनका कुछ बिगड़ेगा नही – अवध्‍य भावात दूत: सर्वमेव जल्‍पति ।

”पर डाक्‍साब, आपको पता है इस लड़ाई में सत्‍य के पक्ष में होते हुए लहू लुहान हमें क्‍यों होना पड़ता है, इस मुहिम पर जितना पैसा खर्च हो रहा है और जो जो मुखमुद्रासिद्ध वाग्विद उसे हजम करके बलिदानियों के तेवर में बात करते हैं, उनको उस प्रलोभन से विरत करने के साधन भी हमारे पास नहीं हैं और अन्‍तत: वही न्‍याय जिसे चाणक्‍य ने आज से सवा दो हजार साल पहले कहा था – यस्‍य हस्‍ते द्रव्‍यं स जयति और जिसे सीआईए के उस योजनाकार ने इतने लंबे समय बाद समझा और कहा, मुझे इतने डालर दे दो और मैं सोवियत संघ के भीतर ही विद्रोह करा दूंगा और उसने उसे करके दिखा भी दियाप”

मैंने बीच में हस्‍तक्षेप किया, ”मेरी भी तो सुनिए।”

”आपकी ही तो सुनते आए हैं, आज पहली बार है कि मैं आपकाे सुना रहा हूं। इसे सुनिए और गौर कीजिए कि अर्थ का जादू सर चढ़ कर भी बोलता है और पांवों पड़ कर भी बोलता है और चुप रह कर भी बोलता है और इस तरह कि सन्‍यासी भी उसकी चपेट में आ जाएं।

आपके तो मित्र हैं वर्मा जी। आप उनका बहुत आदर भी करते हैं। कुछ दिन पहले पता है उन्‍होंने क्‍या किया। उन्‍होंने पेशवाओं के काल के अस्‍प़ृवश्‍यों का एक चित्र प्रकाशित किया और हाय हाय मच गई। उन्‍हें यह ध्‍यान न रहा कि आज हम उस अवस्‍था से कितने आगे आ चुके हैं। यह ध्‍यान नहीं आया कि इतिहास में जा कर हिन्‍दू समाज की विकृतियों को फोकस करके उन समुदायों को ईसाई बनाने की एक योजना धन, साधन और सुविधा के साथ प्रचारतन्‍त्र के बल पर उस ईसाइयत के द्वारा चल रही है जो अपने इतिहास का सामना नहीं कर सकती
। आप हमें समझाते हैं, इतिहास से विष का संग्रह न करो, उस विष को शोधित पारे की तरह जनकल्‍याणी बनाओ। बताइये क्‍या यही पाठ आप उन्‍हें पढ़ाएंगे, जो इस विष संचय को ही इतिहास बोध कह कर उसका वितरण करते हैं और तालियां बटोरते हैं। क्षमा करें, आप दो तरह के पैमानों का प्रयोग करते हैं।

मैने जब काम नहीं मिला था तो दो साल एक दफ्तर में क्‍लर्की की थी। उसमें सर्विस रूल्‍स जानने वाला एक असिस्‍टेंट था। उससे कोई पूछता कि इस मामले में रूल क्‍या कहता है तो वह कहता, टेल मी दि मैंन ऐंड आइ शैल टेल यू दि रूल।’ अाप भी कुछ इसी तरह की मुंह देखी करते लगे मुझे। अभद्रता के लिए क्षमा पर अब आप जो कहना चाहें उस पर ध्‍यान दूंगा। हम बदल सकते हैं, परन्‍तु टुकड़खोर बुद्धिजीवी हमें राैंद कर बदलना चाहें तो हम आहत भी होंगे और लाचारी में कुछ ऐसा कह सकते हैं जो कूटनीति के व्‍याकरण से गलत प्रतीत हो।

”शास्‍त्री जी, आप ने तो ऐसा तूमार बांधा कि मुझे खुद भूल गया कि उस समय मैं कहना क्या चाहता था। याद करने में समय लगेगा।”