Post – 2016-07-09

सुबूही
हम दूर, बहुत दूर, तुम्हें ढूढ़ते फिरे
तुम इतने पास थे कि अक्श तक नही दीखा।
हम तुम को प्यार करते हुए खुद पर मर मिटे
मिटने के साथ जिन्‍दगी का क्या नहीं दीखा !
०८ जुलाई २०१६

हम भी उन जुल्फों के देखो तो सताए निकले
फर्क यह है कि पेचो खम बहुत जियादा था।
किस तरन्नु से बात करता था सैयाद मेरा
जबान मीठी थी फन्दा भी कितना सादा था।।
हम उस पर मर नहीं मिटते तो और क्या करते
गो कि कुछ दिन अभी जीने का भी इरादा था।
न उसने आंख उठाई न मिलाई मैंने ।
नरम हो उसका कलेजा न मेरा वादा था।
०८ जुलाई २०१६