गंगा-जमुनी तहजीब की शर्त
“उस नौजवान स्कालर ने तो अपनी बात को वजनी बनाने के लिए, पाकिस्तान जाने की बात कर दी और तुमने उसे समाज को बांटने वाला और जाने क्या क्या कह दिया, पर तुम तो इतने अनुभवी हो कर समाज को बांटने का काम कर रहे हो और इसकी तुम्हें खबर तक नहीं।”
”मुझमें तुममे एक अन्तर है । तुम राेग निदान के समय ही पसीज जाते हो। यदि किसी भयानक बीमारी के लक्षण दिखाई पड़ भी गए तो अपने को समझाते हो, नहीं नहीं, इतना प्यारा और अपना सगा आदमी है, इसे यह कैसे हो सकता है। टीबी के लक्षण देख कर भी मान लेते हो, खांसी है। मुंह से खून आ गया तो समझा लिया पान चबा रहा होगा और फिर इसका नतीजा जो होता है वह तुम्हारे लिए भी अहितकर होता है और मरीज को तो जान से ही जाना होता है। यदि किसी और के पास जाने से जान बच गई, तो वह तुम से घृणा करता है और बीमारी बढ़ाने के लिए कोसता है।”
”मैं निदान के समय निर्मम रहता हूं। निर्मम का मतलब जानते हो, अपने-पराए के लगाव दुराव से मुक्त। किसी लक्षण की गहराई में उतर कर और जिन भी कोणों से जांच पड़ताल होनी है सही बीमारी तक पहुंचता हूं और उसके कारणों को समझने के लिए केस हिस्ट्री भी पता लगाता हूं कि रोग कितना पुराना है। परन्तु उपचार के समय उसके साथ उससे अधिक सदाशयता से पेश आता हूं इसलिए मेरा रोगी चंगा हो कर ही लौटता है। कम से कम उसकी वही दशा नहीं रह जाती जो पहले थी और वह सुधार के लिए मेरा जीवन भर ऋणी रहता है। बात समझ में आई।
”और एक बात और तुम्हें बता दूं जैसे मैंने कहा था कि आज के मिशनरी ईसा के उपदेश के ठीक उलट काम करते है, उसी तरह मुझे लगता है, आज के कट्टर और भावुक मुसलमान स्वयं मुहम्मद साहब के इरादों के उलट काम करते हैं। यदि उनके कहे पर चलें तो इनकी मुश्किलें आसान हो जायं।”
”क्या लंबी कुलांच मारी है। अरबी का ऐन नहीं जानते और कुरान का मर्म समझाने लगे।
”कुरान नहीं कुरआन शरीफ कहो । मैंने उसे हिन्दी में पढ़ा है। उसमें बहुत सी कमियां निकाली जा सकती हैं, परन्तु दुनिया का कोई धर्मग्रन्थ नहीं है जिसमें कमियां न निकाली जा सकें। बाहरी आदमी की नजर कमियों पर ही होती है इसलिए गीता में भी ऐसे अंश निकाले जा सकते हैं, जैसे शूद्रों और स्त्रियों के लिए पापयोनि का प्रयोग । हम गीता को शूद्रों और स्त्रियों के लिए आए इस प्रयोग को देख तक नहीं पाते, क्योंकि हमारे लिए इसके मोहक अंश कुछ दूसरे हैं। यदि हम अपनी दृष्टि में इतना सा परिवर्तन ला दें कि हम कहीं भी जायं, वहां से उसका उत्तम अंश ही लाएंगे सड़ी गली चीजों को नहीं तो वह कोई जगह हो, या ग्रन्थ, या व्यक्ति वह हमें पहले से अधिक समृद्ध, अधिक पवित्र, अधिक मानवीय और अधिक संवेदनशील बनाएगा। और बाइबिल और कुरआन शरीफ और गीता में एक बहुत गहरी समानता है यह तो तुम जानते ही नहीं।”
“वह चौंक गया, ‘क्या कहा, फिर से कहना।”
“गीता का रचना काल जानते हो ।”
“चौथी शताब्दी या इसके आस पास । यही कोसंबी ने कहीं लिखा है।”
“हां लिखा है और कोसंबी को पढ़ने वालें को ज्ञान का भूत ऐसे सवार हो जाता है कि वह उनके जुमलों को मुग्दर की तरह भांजने लगता है। सोचने जांचने की जरूरत ही अनुभव नहीं करता। यह भूत कभी मुझपर भी सवार रहा करतर था, सो मैंने भी आज मे चालीस साल पहले एक सज्जन से डीग हांकते हुए इसे दूहरा दिया। वह बड़े अल्पभाषी और सौम्य से व्यक्ति थे। उन्होंने बताया कि गीता के कुछ श्लोक अमुक शिलालेख पर टंके हैं और उसका काल है दूसरी शताब्दी इस्वीपूर्व। इसके आगे कोई तर्क, हास, उपहास नहीं। मैं कोसंबी से गिरा तो तारे दिखाई देने लगे। इसलिए यह विचार जो बाइबिल और कुरआन दोनों में आया है वह गीता से या कहो उस भक्तिचेतना से वहां पहुंचा हो जिसकी प्रेरणा से गीता लिखी गई तो बात जंचेगी।”
वह झुझलाहट अनुभव कर रहा था, ”यार, पहले यह तो बता कि समानता किस बात में है।”
”गीता का कहना है कि ज्ञान, योग, कर्म सभी मोक्ष के साधन हैं, परन्तु सभी के साथ कुछ चक्कर है। इसलिए सबसे सुरक्षित है भक्ति मार्ग। तुम मुझे समर्पित करते हुए जो जी में आए करो, तम्हें कोई पाप नहीं लगेगा। तुम्हें किसी सोच फिकिर में पड़ने की जरूरत ही नहीं। मेरा नाम लो, अपना काम करो और सब मुझ पर छोड़ दो। फिकिर न गम, सारे पाप माफ करेंगे हम।
मन्मना भव मद् भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
अहं त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।
”गीता का यह अधूरा सन्देश ही पश्चिमी सामी क्षेत्र में पहुंचा ।”
”किसके माध्यम से, यह भी बतादो तो ताली बजाउूं, काफी देर से हाथ खुजला रहा है।”
”ईसाई परंपरा और मैथ्यूे के गास्पेल के अनुसार पूर्व से तीन (पूर्वी, विशेषत: सीरियन चर्चो में इनकी संख्याl 12 बताई गई है) दार्शनिक जिनके नाम तो नहीं दिए गए हैं पर जिन्हें मागी कहा गया है ईसा के जन्म के समय उपहार के साथ पहुंचे थे। इनका परिचय देते हुए बाइबिल इनफोकाम में लिखा है:
The three wise men, also known as magi, were men belonging to various educated classes. Our English word magician comes from this same root. But these wise men were not magicians in the modern sense of sleight-of-hand performers. They were of noble birth, educated, wealthy, and influential. They were philosophers, the counselors of rulers, learned in all the wisdom of the ancient East. The wise men who came seeking the Christ child were not idolaters; they were upright men of integrity. Bible Info.com
”वे ईसा के जन्म के समय पहुंचे थे यह तो बाइबिल का पौराणिक पक्ष हुआ । परन्तु पूर्व से, कहें मगध से अपने विचारों का प्रचार करने वाले लोग पश्चिम एशिया तक पहुंचते रहे और उन्हें असाधारण ज्ञान और प्रतिभासम्पन्न माना जाता रहा यह इसका ऐतिहासिक सत्य है।
”तो हम कह सकते हैं कि ईसाइयत की सैल्वेशन या सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाले ईसा की भूमिका का प्रेरणा स्रोत संभवत: बौद्धमत की प्रतिक्रिया में उपजी मगध क्षेत्र की वह विचारधारा थी जो भक्ति को बौद्ध मत से अधिक सुगम और सर्वसाधक बताई जा रही थी जिसमें मोक्ष का भी प्रबन्ध था, स्वर्गसुख का भी और भौतिक सुख का भी – हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
र्इसाइयत और इस्लाम दोनों भक्तिप्रधान मजहब है। दोनों में गर्हित से गर्हित पाप से मुक्ति दान का विधान है। वह अगर दुनिया भर के लोगों का संहार कर दे तो भी उसे कोई पाप न लगेगा:
यस्य नाहंकुतोभाव बुद्धिर्यस्य न लिप्येते ।
हत्वाSपि स इमान्लोकान् न हन्ति न निबध्नते ।।
और फिर :
सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।
”बड़ा खुराफाती दिमाग है तुम्हारा, कहां कहां की कौड़ी जुटा कर तमाशा खड़ा कर देते हो। पर एक बात बताओ, यदि यही सन्देश था तो फिर भारतीयों ने अपने धर्म प्रचार के लिए उस तरह के रक्तपात का सहारा क्यों नहीं लिया जब कि इसकी पूरी छूट थी, और ईसाइयत और इस्लाम ने तलवार का जोर आजमाते हुए धर्म प्रचार किया।”
”इसका उत्तर तो तुमको तलाशना होगा। मैं क्या सर्वज्ञ हूं कि सारे प्रश्नों का जवाब मेरे पास मिल जाए । हां अनुमान लगा सकता हूं कि यही बौद्धमत और जैन मत की और उपनिषदीय चिन्तन की ओर वैदिक काल से चली आ रही शान्ति और स्वस्ति कामना की विजय है कि इसमें अहिंसक विचार बहुत तेजी से फैलते और अपनाए जाते हैं, पर रक्तपात विकर्षक लगता है। उससे उन लोगों का भी चित्त विचलित होता है जो मांसाहार करते हैं। परन्तु गीता स्वयं भी उन अहिंसा आदि के परंपरागत मूल्यों का आदर करती है और उसमें कुछ और जटिलताएं भी हैं। एक ऐसे परिवेश में जिसमें समाज चरवाही प्रधान रहा हो, हिंसा, लूट पाट आम रहा है इसलिए वहां इसे अपनाने में किसी तरह की मनोबाधा न रही होगी।”
”लेकिन, लेकिन … छोड़ो। रहने दो नहीं तो …”
”अपनी बात तो कहो।”
”तुमने स्वयं कहा था कि ईसाइयत के संगठन पर बौद्ध मठों का प्रभाव है और आज कह रहे हो, बौद्ध मत के विरोध में खड़ी विचारधारा का प्रभाव पड़ा है।”
”प्रभाव दोनों का पड़ा लगता है। एक का संगठन और पदक्रम व्यवस्था, घंटी घंटे तक सीमित रहा तो दूसरे की हिंसक उपायों से धर्मप्रचार का । वह सेना तो तुम जानते ही हो कुरक्षेत्र के धर्मक्षेत्र में ही जुटी थी। रचना यह बाद की है, यह ध्यान रखो। इसमें एक दबा संकेत है कि यदि अधर्म अर्थात् बौद्ध और जैन मत अपनाए हुए स्वजनों का भी वध करना पड़ता है तो घबराने की बात नहीं और सोचो तो पुष्यमित्र शुंग ने इसे कर भी दिखाया था।”
”दिमाग चकरा जाता है तुमसे बात करते हुए । जो बातें सही लगती हैं उन पर भी विश्वास नहीं होता। जैसे यही कि इतने दूर से अपने धर्म और दर्शन का प्रचार करने वाले लोग भारत से पश्चिमी एशिया में पहुंचे होगे और उनकी धर्मद़ष्टि इनके विचारों से प्रभावित हुई होगी।”
डेविड डिरिंजर नाम के एक लिपि विज्ञान के बहुत अधिकारी व्यक्ति हैं। उन्होंने प्रचुर पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित किया है कि अरब में ईसा के आरंभिक वर्षों में जो कारवां चलते थे उनमें भारतीय आर्यभाषा बोलने वाले लोग भी थे। भारत उतना कटा और अपने में सिकुड़ा देश कभी नहीं रहा और जैसे आज हम ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में पश्चिम से आतंकित हैं, भारत की यह घौंस कई हजार साल तक बनी रही।
”खैर, तो मैं कह रहा था कि हमें इस्लाम के उस भावुक पक्ष को गालियां देने की जगह उसकी जड़ों काे समझा जाना चाहिए और इसे समझने में उनकी भी मदद करनी चाहिए कि भावुकता में बुद्धि काम नहीं कर पाती। आदमी की सोचने की शक्ति घट कर औचित्यस्थापन तक सिमट आती है और ऐसा समाज अपने आप में मगन भले रहे आगे बढ़ नहीं सकता। इस्लाम ने ईसाइयत के माध्यम से यहूदी और ईसाई नामों, त्यौहारो, विचारों, विश्वासों, पुराणकथाओं सभी को लिया है। यदि मुहम्मद साहब होते जो मानते थे कि ज्ञान चीन जैसे सुदूर देश से भी लिया जा सकता है, जिन्होंने पश्चिम से इतनी सामग्री ली भी, तो आज कहते हमे पश्चिमी देशों की तरह भावुकता से मुक्ति पा कर विज्ञान और विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। जिस हिन्दुस्तान से उन्हें ठंडी हवाएं आती दिखाई देती थीं, या कहें जहां के विचारों से उन्हें सुकून मिलता था, उसमें रहते हुए मुसलमानों को ठंडे दिमाग से सोचना और कुछ ग्रहण करना चाहिए। गंगा जमुनी तहजीब की यह जरूरी शर्त है। इसके बिना हम टकराते घड़ों की तरह टूटते तो रह सकते हैं, कुछ बन नहीं सकते, सिवाय मूर्ख बनने के ।