Post – 2016-07-06

गंगा जमुनी संस्‍कृति

”तुमने कभी इस बात पर ध्‍यान दिया है कि इस देश में साम्‍प्रदायिक मेलजोल की एक संस्‍कृति युगों से रही है, उसे कुछ तत्‍वों द्वारा नष्‍ट किया जा रहा है।”

”अफसोस है कि वह नष्‍ट हो रही है, परन्‍तु न तो कभी यह समझने की कोशिश की गई कि यह संस्‍कृति थी क्‍या, न यह चिन्‍ता की गई कि इसे कैसे बचाया जाय। हालत यह है कि यदि कोई कहे ‘सबका साथ सबका विकास’ और इसकी कोशिश करता भी दिखाई दे, तो भी वह डरावना लगता है। उसे समझने की जगह इस बात की कोशिश की जाती है कि कहीं लोग उसकी बात मान कर साथ जुड़ने और आगे बढ़ने की कोशिश न करने लगें।”

”तुम कहां की बात कहां पहुंचा देते हो । मैं राजनीति की बात नहीं कर रहा था। यहां तो दिलफरेब नारे दिए ही जाते हैं वोट बटोरने के लिए, और फिर सत्‍ता पाते ही उन्‍हें भुला दिया जाता ह। मैं सामाजिक मेल जोल की बात कर रहा था।”

”मैं भी उसी की बात कर रहा था। उसी समाज की सोच का। उसी के डर का। उसी के बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियापन का जो चमकदार नारों के पीछे लगातार इस बात की कोशिश करते रहे हैं, कालिमा बनी रहे, नफरत बढ़ती रहे, लोग टकराते रहें और उनका कारोबार चलता रहे। यदि ऐसा न करते तो वे उन दिलफरेब नारों को अमल में लाये जाने का प्रयत्‍न करतेाा सांप्रदायिक, जातिवादी, वर्णवादी और अापराधिक प्रव़ृत्तियों को रोकने के इस मौखिक आश्‍वासन को क्रियान्वित करने की मांग करते, न कि उनके पक्ष में खडें हो कर इस भगीरथ संकल्‍प को विफल करने का प्रयत्‍न करते।”

”तुम क्या इतने नासमझ को कि यह न समझ पाओ कि मेरे रोकने पर भी तुम फिर घूम फिर कर राजनीति पर आ गए और इसका तुम्हे पता तक न चलाा।”

”समाज की बहुत सी विकृतियां सत्‍ता प्रेरित होती है। सत्‍ता के पास साधन, धन, और लोकतन्‍त्र में तो अपने दल से जुड़े जनों की भी उपलब्‍धता होती है जिसके बल पर वह करामात से लेकर खुराफात तक जो चाहे कर सकती है और करती आई है। जिस विलगाव या पारस्‍परिक विमुखता की तुम शिकायत कर रहे हो उसको भी उभारने में बांटो और राज करो की नीति ही परिणाम है। अाज यदि जोड़ो आैर राज करो की नीति पर काम करना चाहता है तो बांटने और अपनी अपनी चौहद्दी में राज करने की आदी हो चुकी ताकतें उसे सफल होने ही नहीं देना चाहतीं। वह उन्‍हें राक्षस नजर आता है जब कि स्‍वत: उसने वोट पाने के लिए जो कहा था उसी पर सही उतरने के लिए लगातार काम कर रहा है।”

”राजनीति में बहुत भोले हो तुम। यहां जो कहा जाता है उसका वही अर्थ नहीं होता जो किया जाता है।”

”देखो, यह नारा किसी दल का नहीं है, एक व्‍यक्ति का है जिसने उस दल को भी यह समझाने में सफलता पाई कि अल्‍प में सुख नहीं विराट बनना होगा। राष्‍ट्रीयता बन कर नहीं देश बन कर दुनिया के अग्रणी देशों की समकक्षता में आना होगा। नाल्‍पे सुखमस्ति भूमैव सुखम्’ और यह मंत्र उसने राजनीति से नहीं सीखा है, अपितु सन्‍यासियों और वैरागियों की संगत में आने के बाद अपनी खोजयात्रा में प्राप्‍त किया था और उनकी ही सलाह पर राजनीति में लौटा । उसने कुछ भी ऐसा नहीं किया है जिसे उसके चुनावी वादों और बाद के कारनामों में खाई के रूप में देखा जा सके। खाईयाँ खोदने का काम तुम लोग कर रहे हो और खाइयाँ चिकनी रेत में खोदी जा रही खाई की तरह खोदने के साथ ही अपने आप भरने लगती हैं। तुम्‍हें अपनी कल्‍पना में दिखाई देती हैं पर जनता को दिखाई ही नहीं देतीं। जो दिखाई देता है वह यह कि चिकनी रेत में तुम स्‍वत: धंसते जा रहे हो धीरे धीर। शारीरिक रूप से भी और दिमागी रूप से भी नहीं तो समझ पाते कि जिसे तुमने गंगा जमुनी संस्‍कृति कहा उसी का एक पर्याय ‘सबका साथ और सबका विकास’ है । मुल्‍लों ने भारतीय मुसलमानों को उतना मुसलमान नहीं बनाया होगा, जितना तुमने उन्‍हें बनाया है, अन्‍यथा वे इसका लाभ उठा कर अपने सहयोग से राष्‍ट्रीय सोच की दिशा बदल देते। भारतीय सेक्‍युलरिस्‍ट कम्‍युनलिस्‍टों के जनक, पालक और अभिभावक हैं।”

”बेवकूफी तो सबसे कभी न कभी होती ही है, पर तुम तो हद पार कर जाते हो।”

”तुम ठीक कहते हो। बेवकूफी की हद से आगे समझदारी का इलाका है। मेरा मन वहीं लगता है। जिस इलाके में तुम विचरते हो वहाँ से तुम मुझे समझ नहीं सकते, अपने इलाके की समझ से मेरे बारे में कुछ उल्‍टी सीधी सोच अवश्‍य सकते हो। मैं कह यह रहा था कि जनता अपने स्वभाव से ही मिल जुल कर रहना चाहती है, ये बाँटने की राजनीति करने वाले हैं जो उनका मन खट्टा करते रहते हैं। सत्‍ता में पहुंचने के लिए आतुर और सत्‍ता में बने रहने के लिए कटिबद्ध लोग उसकी एकता को तोड़ कर अपने उपयोग में लाना चाहते हैं।

”मैं दूसरी बात यह कह रहा था कि मोदी एक सामाजिक, राजनयिक और आर्थिक दर्शन ले कर आगे बढ़ना चाहता है, तुम्‍हारे पास, ये जितने लोग उसके खिलाफ शोर मचा रहे हैं, उनके पास बांटने, छांटने, लूटने और अपना हिस्‍सा पाने की छटपटाहट के सिवा कुछ नहीं है। अपने को प्रासंगकि बनाए रखने के लिए वे विनाशकारी काम कर सकते हैं, विघटनकारियों का साथ दे सकते है, और क्विक सैंड में मोदी के लिए गड्ढा खोदते हुए खुद उसमें समा सकते हैं।”

”रेत में धसने की कल्‍पना तुम्‍हीं कर सकते हो। हमने तो रेत की दीवार का ही मुहावरा सुना था, जो तुम्‍हारा मोदी बनाने का प्रयत्‍न कर रहा है पर बन कुछ नहीं पा रहा है। सपने बेचने वाले इस बात का प्रबन्‍ध रखते हैं कि लोगों की नींद टूट न जाय और वे सचाई का सामना करके चौंक न पड़ें। और तुम, माफ करना, मुझे पक्‍का यकीन हो चला है कि तुमने इनको बेचने का इजारा ले रखा है। फायदे का कारोबार है, कभी न कभी तो फल मिलेगा ही। तुमको यह नहीं दिखाई देता कि उसके मन में जो है, वह उन लोगों को कहने देता है जो बोलना तक नहीं जानते, और दुनिया को भरमाने के शिगूफे वह मन की बात में करता है।”

”जिन्‍हें बोलने तक नहीं आता उनको वह आदमी अपना प्रवक्‍ता बनाएगा जिसके मुहावरे तक तुम नहीं समझ पाते और मुंह चिढ़ाने की भाषा में छेडते हो, ‘तुम्‍हारे खाते में इतने लाख आए? अच्‍छे दिन आए? जिनसे तुम यह मसखरी करते हो वे मुहावरो का अर्थ जानते हैं, मुहावरों में बात करते हैं। वे हंसते हुए कहते हैं, नहीं। वे कुंछ न पाने पर नहीं हंसते हैं, तुम्‍हारी नादानी पर हंसते है, क्‍याकि उन्हें पता है कि बुरे दिनों के बीतने से ही अच्‍छे दिन शुरू हो जाते है। जानते हैं कि जनता के खाते में देश का मिलने वाला काला धन नहीं आता, न उन्‍हें पचता है, यह आशा उन्‍होंने तब भी न की थी, पर वे आश्‍चर्य इस बात कर करते हैं जिन बैकों के भीतर कभी उन्‍हें जाने का साहस न होता था उनमें उनके बैक खाते खुल जाते है और उन्‍हें या उनके नाम पर चलने वाला वह धन जो बीच में लुट या घट कर आधा हो जाता था वह सीधे उसके पास पहुंचने लगता है। उनके लिए यह दो पैस पाना ही लाखों पाने जैसा है। कि उनके साथ कोई अनहोनी हो जाय तो दो लाख उनके खते में आ जाएंगे। कल्‍पनातीत है उनके लिए जिन्‍होंने लाख की संख्‍या को सुना था, देखा नहीं। यह बुरे दिनों में नहीं होता था। वे इस बात से आश्‍वस्‍त हैं अच्‍छे दिन का वादा करने वाले अच्‍छे से अच्‍छे दिन लाने के लिए प्रयत्‍नशील हैं और यही उनकी सफलता है।”

”हो गई छुट्टी गंगाजमुनी तहजीब की।”

”हां, यार इसे तो भूल ही गया था। गंगाजमुनी तहजीब की बात करने वाले और इसका रोना रोने वाले ही गंगाजमुनी तहजीब को नष्‍ट करने की दिशा में लगातार काम करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं।”

”ऐसे बददिमाग से कोई बात की जा सकती है, भला।”

वह उठने लगा तो मैंने रोका नही, कहा, ”थक गए होगे।” कल नाश्ता करके आना।