Post – 2016-07-05

भारतीय मुसलमान
”मैं तो तुम जानते हो, जो हूं उसमें कुछ भी वर्जित नहीं है, परन्‍तु तुम गांधीवादी हो कर भी छानते हो, इसे तो छोड़ो। जानते हो गांधी जी इसके कितने खिलाफ थे।”
”पूरा गांधीवादी कोई हो ही नहीं सकता। उतनी विराटता, उतनी नि:संगता, उतना आत्‍मबल किसी एक व्‍यक्ति में केन्द्रित होना एक आश्‍चर्य है। परन्‍तु गांधी के जीवन और कर्म से एक तिनका उठा कर और अपने व्‍यवहार में ला कर कोई नए कीर्तिमान स्‍थापित कर सकता है और इस दृष्टि से गांधी के जितने अंशभागी हैं उतने बहुत कम के हुए होंगे और आने वाले दिनों में इनकी संख्‍या में वृद्धि होगी क्‍योंकि गांधीवाद ही अकेला दर्शन या मूल्‍यप्रणाली है जिससे मानवता के विनाश को रोका जा सकता है। मैंने कभी गांधीवादी बनने का प्रयत्‍न नहीं किया, पर हो सकता है कुछ अनायास आ गया हो। उनमें एक है, बुराई पर परदा डाल कर महान बनने का प्रयत्‍न न करो। अपने विषय में यदि दूसरों से कुछ बताना हो तो सबसे पहले अपनी बुराइयां बताओ। उनके बाद भी तुम जितने बचे रहते हो वही तुम हो, उससे अधिक सम्मान की अपेक्षा मत करो। और हां, एक बात और । डरो नहीं, जो सच है उसे कहने का साहस दिखाओ, जो तुम्हरा अर्जित नहीं है, उसे पाने की चेष्‍टा न करो। मैं नहीं जानता इसका गांधीवाद से कोई सीधा संबंध है या नहीं।”
”ईसाइयों के बारे में तुम्‍हारी राय अच्‍छी नहीं लगती, मुसलमानों के बारे में तुम्‍हारा क्‍या खयाल है।”
”राय तो हिन्‍दुओं के बारे में भी तुम्हें अच्‍छी नहीं लगेगी। मुसलमानों को मैं उससे भी कम जानता हूं जितना ईसाइयों को। उनके इरादे भांप लेना आसान है, उनमें दंभ, छल, कपट बहुत है, इसके बाद भी, या संभवत: उसी के कारण वे दूर होते हुए भी आसानी से समझ में आ जाते हैं, परन्‍तु मुसलमानों में एक दुराव है, भारतीय मुसलमानों में भी एक असमंजस का भाव है, जिसमें वे सामने या आस पास होते हुए भी कुछ छिपते, बचते और बचाते हुए बात करते हैं। कुछ मिलता जुलता व्‍यवहार हिन्‍दुओं का भी मुसलमानों के साथ होता है। इसका ही नतीजा है कि कोई मुसलमान किसी हिन्‍दू पर पूरी तरह विश्‍वास नहीं करता और कोई गैर मुसलमान किसी मुसलमान पर विश्‍वास नहीं करता। हमारी निकटता के बीच भी एक सतर्कता बनी रहती है।”
”जिन्‍ना ने एक बात कही थी कि हिन्‍दुओं के साथ मुसलमान चैन से नहीं रह सकते। तुम उसी को उलट कर कह रहे हो कि मुसलमानों से साथ हिन्‍दू चैन से नहीं रह सकते।”
”जिन्‍ना ने भारतीय समाज को समझा नहीं था। सचाई यह है कि यदि सत्‍ता के भूखे समाज में कलह न पैदा करें तो दोनों समुदाय एक दूसरे पर पूरी तरह विश्‍वास किए बिना भी एक दूसरे के साथ सहयोग करते हुए, एक दूसरे के हितों की चिन्‍ता करते हुए, बहुत प्रेम से रह सकते हैं।”
”मजेदार बात है भई, सन्‍देह भी और प्रेम भी । उलटबासियां कोई तुमसे सीखे।”
”प्रेम में तो हमेशा सन्‍देह बना रहता है यार। प्रिय विषये हि शंका। मैंने तो कहा था कि प्रेम के चुंबक का उल्‍टा सिरा घृणा है, और फिर भी प्रेम हम करते हैं, या कहो प्रेम के बिनाा हमारा जीवन ही निस्‍सार है। तुम अपनी पत्‍नी और प्रेमिका के अपने ही बच्‍चों बच्चियों के विषय में उनके बहकने वाले दौरों में सतर्क रहते हो, और यदि नहीं रहते तो मूर्ख हो। ठीक यही बात पत्‍नी के विषय में कही जा सकती है जो तुम्‍हें प्‍यार भी करती है और तुम पर नजर भी रखती है।”
”पर यहां तुम उस तरह के अविश्‍वास, उस तरह की सतर्कता की बात नहीं कर रहे हो । पूरे धार्मिक समुदाय को एकपिंडीय बना कर देख रहे हो, सबकेा एक ही रंग में रंग रहे हो।”
”जैसे तुम लोग सैफ्रन और सैफ्रनाइजेशन कह कर करते रहते हो ? यही कह रहे हो न? देखो, कुछ मामलों में हम व्‍यक्ति होते हैं, कुछ मामलों में एक वृहत्‍तर समुदाय का हिस्‍सा जिसमें हम अलग दिखाई नहीं देते, उसी का अंश बन कर गति करते हैं, कई बार भौतिक द्रव्‍यों के समुच्‍चय के रूप में। इसी से हम विदेश में हों और वहां कोई भारतीय मिल जाय, यहां भारत से मेरा तात्‍पर्य हिमालय के दक्षिणी भूभाग से है, तो धर्म, जाति, आदि की भिन्‍नता को न जानते हुए भी, उसके ज्ञान और हैसियत से अवगत न होते हुए भी हम पहली ही नजर में उसे पहचान जाते या स्वयं पहचान लिए जाते हैं कि यह आदमी भारतीय है अर्थात् उस मूल्‍य परंपरा से जुड़ा है जो विविध अनुपातों में परन्‍तु सर्वनिष्‍ठ रूप में भारत, पाकिस्तान , बांग्‍लादेश , श्रीलंका और नेपाल में फैला है। इसी के कारण मुस्लिम देशों में भी भारतीय मुस्लिम, मुस्लिम बाद में, हिन्‍दी रूप में पहले पहचाना जाता है और हिन्‍दी ही कहा जाता है।”
”यार इस विराट में तो हिन्‍दू, मुसलिम सभी सिमट आए, फिर तुम इनके बीच भेद क्‍यों करते हो। इस विश्‍वास के बीच सन्‍देह और अविश्‍वास की दीवार तो तुम खड़ी कर रहे हो।”
”बृहत्‍तर सामुदायिकता के भीतर कई स्‍तरों की लघुतर सामाजिकताएं भी होती है जिनमें कुछ अलगाव ऐसे होते हैं जिनको विरल अपवादों को छोड़ कर सभी साझा करते हैं और इसी में धार्मिक समुदायों की पहचानें होती हैं। तुम किसी मुसलमान के कितने भी अच्‍छे मित्र क्‍यों न हो उसे तुम्‍हारे सामने और तुम्‍हे उसके सामने पूरी तरह खुलने में कठिनाई होगी। हमारे साथ सार्वजनिक और निजी दायरे बने रहेंगे। वह जितने खुल कर एक मुसलमान से धर्म और विश्‍वास संबंधी विचारों को रख और उस पर बात कर सकता है उस तरह तुम्‍हारे साथ नहीं। मेरे कुछ अपने मुस्लिम िमत्र हैं िजनके साथ मैंने कई मोर्चे सँभाले हैं, पर मजहबी मामलों में मैं कोई सवाल नहीं करता । वे नमाजी हैं, बातचीत में कभी समय का ध्यान न रहा तो कई बार मैं याद दिलाता हूँ, तुम्हारी नमाज का समय हो गया । पर वह एक अलग दायरा है जिसमें इससे आगे मेरी कोई जिज्ञासा नहीं । ये दायरे छोटे होते होते घर परिवार के निजी दायरों तक पहुंचते है। सच तो यह है कि आदमी अपने सामने भी पूरी तरह नंगा नहीं हो पाता। कुछ ऐसे विचार और भाव होते हैं जिनको हमारा अवचेतन सामने आने ही नहीं देता या जिनके मूर्त होते ही उनकी अप्रियता के कारण हम उनकी परिभाषाएं ही बदल देते हैं और इस तरह स्‍वयं अपने अंधलोक में पहुंचा देते हैं। इसलिए मनुष्‍यों के मामले मे सदा यह रियायत देते हुए ही सोचा जा सकता है कि संभव है हमारी राय गलत हो, अन्‍यथा हम मनुष्‍य के रूप में नहीं, जानवर के रूप में सोच रहे होंगे जो मानव समाज को जानवरों का समाज बना सकता है। दुर्भाग्यवश अधिकांश लोग यह सावधानी नहीं बरतते ।”
वह सचमुच कुछ आजिज लग रहा था, ”तुम बात करते हो तो परते उतारते उतारते वहां पहुंच जाते हो जहाँ विषय ही गायब हो जाता है।”
“मैं यह कह रहा था कि हमारा विकास अनन्‍त संघातों के बीच होता है परन्‍तु इनमें सबसे प्रबल है हमारी शिक्षा। इसके कई संस्‍थान और कई आचार्य है। माता, पिता, कुल की परंपरा, धर्म और व्‍यवसाय, हमारा परिवेश और समाज सभी हमें अपने अपने ढंग से शिक्षित करते हैं और इनके साथ ही हमारे शिक्षा संस्‍थानों और उन विचारधाराओं की भी भूमिका होती है जिनसे हम जुड़ते हैं। इन सबकी भूमिका को समझना समझाना मेरे वश में भी नहीं, परन्‍तु यहां केवल उस पक्ष पर बल अवश्‍य दिया जा सकता है जिसके कारण हम धार्मिक समुदायों में बंटे होते हैं।
“धार्मिक पहचान में ईश्‍वर और धर्मशास्‍त्र या ग्रंथ से अधिक बड़ी भूमिका यह है कि यह हमें पारस्‍परिक सुरक्षा से जोड़ता है इसलिए ईश्‍वर को नकार भी दो तो भी धार्मिक पहचान को मिटाना संभव नहीं है। अपने को नास्तिक या सेक्‍युलर कहने वाले भी इससे बच नहीं सकते। जैसे संसार देशों में बंटा है, वैसे ही धर्म सीमाओं में भी बंटा है और देशों के बीच बफर लैंड या ऐसा भूभाग भी होता है जो किसी के अधिकार में नहीं होता, जिसे नोमैन्‍स लैंड कहते हैं। शायद ऐसा ही एक नो रिलिजन्‍स लैंड अपने धर्म समुदायों से छिटके परन्‍तु अभी तक किसी अन्‍य धर्म सीमा में प्रवेश से कतराने वालों का होता है। यहां वह अधिक असुरक्षित रहता है।”
”जानते हो मैं कल क्‍या करने वाला हूं ।”
”मैंने तुम्‍हें बताए बिना तुम्‍हारी बकवास को टेपरेकार्डर में दर्ज कर लिया है। कल पार्क के सभी लोगों को बुलाकर उसे सुनाऊँगा और जो उसमें से कुछ भी समझ पाया, उसे सौ रुपये इनाम में दूंगा।”
”पत्‍थर से करो बात तो अनुनाद तो होगा।
“पर आदमी पत्‍थर हो तो वह भी नहीं होगा।। चलो उठो ।”