Post – 2016-07-05

‘तुम गांधी के विरुद्ध किस पाठशाला के चलले की बात कर रहे थे जिसके पास धूर्तता और धन और शक्ति केन्द्रित है अौर जो गांधी को गर्हित सिद्ध करने के लिए काम कर रही है।”
पहले तुम यह समझो कि गांधी जी पश्चिमी ईसाइयत को ईसा के अपने सिद्धान्तों के विपरीत मानते थे। मैं तुमसे पहले एक बार कह आया हूं कि ईसा का धर्म पोप के साम्राज्य के तन्‍त्र के ठीक उलट है। यह ईसाइयत धर्म नहीं है, धर्म की अाड़ में सत्‍ता पर कब्‍जा करने की एक जुगत है। ऐसे ईसाई भी रह हैं जो ईसा के बताए मार्ग पर चलते रहे हैं धर्म की उस आत्मा का पालन करते रहे हैं जिसकी शिक्षा ईसा के उपदेशों में मिलती है। इसका इतिहास भी मैंने तुम्हें बताया था। मैंने कल जब ईसाइयत के उस अभियान के विषय में सामग्री जुटाने के क्रम में गांधी जी के अपने विचारों काे समझने का प्रयत्न किया तो मुझे यह जान कर प्रसन्नता हुई कि ठीक ये ही विचार उनके भी थे। उनके शब्दोंे में कहें तो
I consider Western Christianity in its practical working a negation of Christ’s Christianity. I cannot conceive Jesus, if he was living in the flesh in our midst, approving of modern Christian organizations, public worship or modern ministry. (Young India, Sept. 22, 1921)।
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In my humble opinion, much of what passes as Christianity is a negation of the Sermon on the Mount.(वही, Dec.8, 1927)।
”ईसाइयत के प्रति मेरी आलोचनादृष्टि का एक कारण मुझे साम्राज्यवाद से इसका गठजोड़ लगता है और इस माने में मैं इसकी उपस्थिति को उन देशों के लिए घातक मानता हूं जिसमें यह सक्रिय है। आश्चर्य यह कि ठीक यही यही कारण ईसाइयत के वर्तमान रूप के विरोध का गांधी जी के लिए भी था। अन्तर केवल यह कि वह इसका चोली-दामन साथ ब्रितानी सत्ता से जोडते थे, पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता से और दबंग गोरी जातियों द्वारा दुनिया की दूसरी कमजोर जातियों के साम्राज्यवादी शोषण से मानते थे और मैं इसे अमेरिकी कुचक्र का हिस्सा और दूसरे देशों के भीतर अपने देशहित से विमुख और विदेशी इशारों पर चलने वाला धार्मिक-सांस्कृतिक कलेवर के भीतर छिपा आन्तरिक उपनिवेशवाद कहता आया हूं:
Christianity in India has been inextricably mixed up for the last one hundred and fifty years with the British Rule. It appears to us as synonymous with materialistic civilization and imperialistic exploitation by the stronger white races of the weaker races of the world. (वही, March 21, 1929)।
”मैं पुरातनपंथी या रूढि़वादी ईसाइयत उने मानता आया हूं जो ईसा के मूल मन्त्रt को अपनी निष्ठा का हिस्सा मानते हुए उत्पीड़न और शोषण का विरोध करता रहा है और जिसने समय समय पर साम्राज्यथवादी हस्ताक्षेप के विरुद्ध क्रान्तिकारी भूमिका निभाई है जब कि गांधी जी पोप के साम्राज्य और साम्राज्य वादी मंसूबों से जुडे उस संगठित ईसाइयत को आर्थोडाक्स् या रूढि़वादी मानते है। शब्दों के इस मामूली अन्तर को छोड़ दें तो रोमन सम्राट के समर्थन के बाद हमलावर ईसाइयत का विरोध गांधी जी स्वयं भी करते थे:
I rebel against Orthodox Christianity, as it has distorted the message of Jesus. He was an Asiatic whose message was delivered through many media, and when it had the backing of a Roman Emperor it became an imperialist faith as it remains to this day. (Harijan : May 30, 1936)।
”यह गांधी उन ईसाइयों से जो फ्रीडम की अपनी समझ का विस्‍तार करते हुए इनसेस्‍ट और कम्‍युनिज्‍म विरोध के बूते बुकर तक पहुचे हैं, या उन धर्मनिरपेक्षियों से जो अपनी पहचान से जुड़े मत, संस्‍कृति और रीति-नीजि को गर्हित सिद्ध करने की बख्‍शीश के रूप में बुकर या मैगसेसे तक की मंजिलें तय करते हैं, या जो अपनी हैसियत उूंची करने के लिए भूमैव सुखम की तलाश में ईसाइयत का रास्‍ता पकड़ लेते या वे सेक्‍युलरिस्‍ट जो सामी धर्मों की कट्टरता को भी सेक्‍युलरिज्‍म मान कर केवल हिन्‍दू मूल्‍यों, मान्‍यताओं, प्रतीकों और‍ विश्‍वासों पर प्रहार करते हैं तिरस्‍कार और लांछना के अतिरिक्‍त क्‍या पा सकते हैं। इनका एक अदृश्‍य तार ईसाइयत के उस भ्रष्‍ट चरित्र से जुड़ा हुआ है जिसका विवेचन यदि तुम चाहोगे तो आगे कभी करूंगा। ईसाइयत को भारत विजय के लिए इतना अधिक धन मिल रहा है कि सुना एक एक आदिवासी काे दो तीन लाख और उूपर से कुछ सुविधाएं देकर पुराने धर्म और विश्‍वास में विमुख किया जा रहा है। क्रास उठाओ और अपनी अधोगति को क्रास कर जाओ। मानवाधिकार आदि के मुखौटों के पीछे काम करने वाले एनजीओ उसी विघटनकारी तन्‍त्र से समर्थित और पोषित रहे हैं और इनकी शक्ति इतनी बढ़ गई है कि यह सरकारी तन्‍त्र को चुनौती दे सकता है । नक्‍सल गतिविधियों का भी इनसे याराना और इनका रास्‍ता रोकने वालों से दुश्‍मनी तो है ही।
”गांधी धर्म परिवर्तन के विरोधी नहीं थे। यदि किसी धर्म को आप छोड़ न सकें, उसे उसकी जड़ता के साथ, अतर्क्‍य विश्‍वासों के साथ आप को मानने को बाध्‍य होना पड़े तो यह धर्म नहीं है, दासता का एक रूप है। परन्‍तु यह निर्णय व्‍यक्ति का अपना होना चाहिए। उसके लिए किसी दूसरे का नहीं, क्‍योंकि उस दशा में आप उसके गुलाम की तरह व्‍यवहार करेंगे। इसलिए धर्मान्‍तरएा की छूट के साथ वह इसके लिए किसी तरह के दबाव, बहकावे या प्रलोभन के विरुद्ध थे, जब कि ईसाइयत इन्‍हीं हथियारों का प्रयोग करते हुए अपना विस्‍तार कर रही है-
Conversion without a clean heart is denial of God and religion. (Harijan: Dec. 9. 1936)।
I am not against conversion. But I am against modern methods of it. Conversion nowadays has become a matter of business, like any other business.(Christian Missions, p. 7)
I claim to be a man of God. Humbler than the humblest man or woman. My object ever is to make Muslims better Muslims. Hindus better Hindus. Christians better Christians. Parsis better Parsees. I never invite anyone to change his or her religion (. Harijan : Feb 23, 1947)।
”अपनी सरलता में भी इतना जटिल, नम्रता में भी इतना अनम्‍य कोई व्‍यक्ति मुझे दीखता नहीं जो सत्‍ता और भौतिक सुख सुविधा से उदासीन रहने के कारण उन परिघटनाओं के गूढ़ रहस्‍यों और उद्देश्‍यों को भी भांप लेता था और वर्तमान दासता से मुक्ति के लिए ही प्रयासरत नहीं था, अपितु धर्मतन्‍त्र के मुखोटे के साथ प्रवेश कर रही नवउपनिवेशी और विघटनकारी शक्तियों के प्रसार का भी विरोध कर रहा था। ऐसे व्‍यक्ति को, उसके विचार को कलंकित करना ईसाइयत की योजना का हिस्‍सा रहा है और उसने लगातार कदम बढ़ाते हुए शिक्षा और चिकित्‍सा जैसे तन्‍त्रों पर कब्‍जा कर लिया है क्‍योंकि नेहरू या उनके बाद के नेताओं में वह दूर दर्शिता नहीं थी जो गांधी में थी। ईसाइयत के प्रचार के दो सबसे प्रमुख कार्यक्रम रहे हैं शिक्षा और चिकित्‍सा। अकेली, इन्दिरा जी ने कुछ दूर तक इस खतरे को समझा था पर बहुत देर से, तब तक ईसाइयत उनके ही घर में प्रवेश कर चुकी थी और कौन जान किसकी योजनाओं के परिणाम स्‍वरूप उनको ही रास्‍ते से हटा दिया गया और असलियत से ध्‍यान हटाने के लिए सिख संहार का तांडव किया गया। ऐसे लोगों को क्‍या गांधी से घ़णा न होगी जिसकी याद तक उनको नाभदान में बजबजाते संख्‍यावृद्धि करते दोलों में बदल देती है।
”आज उस अंतिम जन के भीतर से, उन अकिंंचनों, दलितो और पिछड़ों के बीच से एक ऐसा महत्‍वाकांक्षी तबका उभरा है जो अपने अभ्‍यूदय के लिए दलित समाज से अपने नाभिनालबद्ध होने का जयकारा लगाता हुआ अपनों को ही छोड़ कर उूची छलांगे लगाता हुआ अल्‍पतम आयास से अधिकतम पाना चाहता है और ईसाइयत इन चारा लोलुप परिन्‍दों को अपने पिटारे में रखने की योजना पर कार्यरत है। इनसक अपने ही समुदाय के प्रति विश्‍वासघात और विघटनकारी योजनाओं में भागीदारी से अलग क्‍या उम्‍मीद करते हो।”
”यार हम पी भी रहे थे, बक भी रहे थे, नोट और प्रोनोट भी देख रहे थे, कुछ उल्‍टा सीधा तो न बक गए ।”
”होश में हम नही कह पाए,
किसी ने न कहा।
तुमने मदहोशी में वह कह दिया
घबराते हुए। ”
”अरे यार, तू भी कविता करेगा तो मेरा क्‍या होगा। उठ बहुत हो गया।”