Post – 2016-06-29

सुबूही
दिल जहां रखा था पाया कि वहां था ही नहीं
बात कल की है पुराना यह वाकया भी नहीं।।

सयानों ने कहा गुमशुदगी की रपट लिखवा
लाख कीं कोशिशें मजमून पर बना ही नही ।।

सोचा यह काम भी दीवान के जिम्‍मे कर दूं
बोला वह हाथ है अकड़ा, गरम हुआ ही नहीं ।।

बहुत सोचा, लिए हीटर मैं दुबारा पहुंचा
बोला, वह नामुराद तेरे पास था ही नही ।।

गवाह है कोई, देखा था किसी ने उसको
हलफनामा दो कि फिसला नहीं गिरा भी नही।।

अपना सा मुंह लिए लौटा तो दोस्‍तों ने कहा
भूल जा उसको तेरा वह कभी हुआ ही नहीं।।

बात कुछ सच है मगर सच के सिवा भी कुछ है
वह कहीं छिप कर ले रहा हो इम्‍तहां ही नहीं।।

झुर्रिया दिल में भी पड़ती हैं लोग कहते हैं
खराेंच उसमें कभी आज तक पड़ा ही नहीं।।

जिन्‍दगी में कमी सदमात की होती है नहीं
चोट खाई भी तो घायल कभी हुआ ही नहीं।।

कई तरह के हैं शक औ’ कई तरह के भरम
मेरी गफलत में किसी ने झपट लिया तो नहीं।।

सिकुड़ता फैलता रहता था उसकी आदत थी
कहीं वह आज सिकुड़ कर शिफर हुआ तो नहीं।।

पता भगवान को इसका लगा तो हंसने लगा
कहने को वह मेरा हमदर्द था, रहा ही नहीं।