Post – 2016-06-28

हम सही हैं यह गलत है। हम सही हो सकते हैं, यह सही है। पर इसके लिए उस दैन्‍य को छोड़ना होगा जिसमें हम अपनी गलतियों को पहचानने और उनसे उबरने को अपनी पराजय मानते हैं। यह सभी विचारधाराओं में होता है। मेरे पाठकों में भी है जो मानते हैं कि जब तक मैं उनके मन की कहता हूं तब तक ठीक हूं जब कि सच यह है कि जब तक मुझे गलत नहीं सिद्ध किया जाता तब तक मैं ठीक हूं। यह मुझे आज की अपनी पोस्‍ट की प्रतिक्रिया में सन्‍नाटे को देख कर समझ में आया। शीर्षक देख कर ही घबरा गए मेरे प्रिय पाठक पर यही मेरे लेखन की सार्थकता है। मनोबन्‍धों को तोड़ कर सोचने की अवरुद्ध प्रणाली को प्रवाही बनाना।जो कठोर सचाइयों का सामना नहीं कर सकते उनको मैं कल सुबूही पेश करूंगा, सुबूही, अर्थात् शब्‍दों का खेल, जिसके उस्‍ताद अकबर इलाहाबादी हुआ करते थे। खाली जगह को भरना था भगवान आ गया पर दर्शन कल ही होगा।