Post – 2016-06-26

मैं अपनी तुकबन्दियां प्रकाशित कई कारणों से नहीं कराता, जिनमें एक है यह सचाई कि मैं इनको संवारने माजने का समय नहीं दे पाता। उन्‍हीं का दबाव होता है तो टांक लेता हूं कहीं भी और कई बार खो भी देता हूं। जानता हूं इससे उनमें कुछ खोट रह जाती है पर अब सोचता हूं इन्‍हें इस्‍लाह के लिए पोस्‍ट कर देने में कोई हरज नहीं है। हो सकता है कुछ लोग इनमें कुछ सुधार सुझा सकें और वे ठीक ठाक लगें इसलिए अभी अभी जो टांका वह यह रहा:

मुझे बर्वादियों का डर नहीं है,
उन्हीं ने मुझको जो कुछ हूं बनाया।
भटकने के कई मौके दिये पर
सही रस्ता उन्होंने ही दिखाया।
उन्होंने ही तो संभाला तब जतन से
न जब अपना ही अपने काम आया
उन्हीं के चैत्य पर तन कर खड़ा हूं
गिराया गर तो उूपर भी उठाया।
उन्हीं से दोस्ती का है नजीता
सभी सहमे थे मैं कुछ बोल पाया।
२६/०६/१६ ९:२०:२९