बजा कहता हूं सच कहता हूं
‘’तुमको नागर प्रक्रिया संहिता और दंडविधान प्रक्रिया संहिता से शिकायत थी। तुमने इसे न्याय का कर्म कांड बताया था जिसके बिना न्याय अधिक आसानी से मिल सकता था।‘’
’’बताया था नहीं, आज भी यही मानता हूं।‘’
’’तुम मध्यस्थ के रूप में वकालत के पेशे के भी विरु’द्ध थे।‘’
’’था नहीं आज भी हूं, माननीय।‘’
’’तुम्हें यह पता है तुम अपनी बयानबाजी में कितनी बकवास करने, अदालत का कितना समय बर्वाद करने के बाद भी बहुत कम बातें कह पाते हो और यदि तुमने इतना समय बर्वाद न किया होता तो मुझे किसी निर्णय पर पहुंचने में चौथाई समय लगा होता और न्याय प्रक्रिया चार गुनी तेजी से बढ़ रही होती।‘’
मेरी उूपर की सांस उूपर और नीचे,नीचे। उसकी टिप्पणी इस समय सोलह आने और सौ पैसे सही लग रही थी। इस समय सिंहासन बत्तीसी का असर साफ दिखाई दे रहा था। मुझसे सीधे हामी तो न भरी गई, पर मिमियाते स्वर में आधी सहमति दिखाई, ‘’हो सकता है।‘’
’’दोष तुम्हारा नहीं है। सभी वादी, प्रतिवादी, गवाह यही करते हैं। फालतू बातों का पहाड़ लगा देंगे जिसमें उनकी ही बताई सचाई दब कर रह जाएगी। प्रक्रिया इसे रोकने के लिए बनाई गई है और प्रक्रिया से सभी अवगत हों तभी अपनी फरियाद करें या बचाव करें, यह संभव नहीं, इसलिए वकीलों का यह पेशा बनाया गया है जो प्रक्रिया को जानता हो, उनकी बात समझ कर उसे सही, सटीक और संक्षिप्त रूप में रख सके और अदालत का बहुमूल्य समय बचा सके जिससे वह अपना ध्यान बाकी बचे मुकदमों की ओर देने का समय पा सके।
’’अदालत अपने समय को बहुमूल्य मानती है और कई बार तुम लोगों को ही इसकी याद दिलानी पड़ती है। तुम इसका भी मजाक उड़ाते हो।‘’
मैं अब तक इतने दबाव में आ गया था कि मुझसे न हां कहते बना न ना।
‘’अदालत अपनी प्रेमिका से मिलने या बच्चे खाने की मेज पर प्रतीक्षा कर रहे होंगे, इसके कारण अपने समय को बहुमूल्य नहीं मानती, जैसा तुम कर सकते हो या सोच सकते हो, वह इस बात के लिए चिन्तित रहती है कि यह नालायक मेरा इतना समय बर्वाद कर रहा है जब कि ‘न्याय दो ! न्याय दो!! का आर्तनाद करने वालों की गुहार लगाने वालों की कतार लंबी होती जा रही है और उनमें से कुछ थक कर बेहोश होने के कगार पर पहुंच चुके हैं।‘’
इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं था। लेकिन प्रकट स्वीेकार का अपमान झेलने को तैयार न था इसलिए दीवारों को देखने लगा।
’’तुम्हें पता है, वकालत का पेशा कितना पुराना है?”
मेरी बाछें खिल गईं। उस पस्त हिम्मती के दौर में यह एक ऐसा सवाल था जिसका उत्तर मैं जानता था और यह भी जानता था कि यह मेरा मनोबल बांसों उुपर उठा देगा। मैंने उमंग भरे स्वर में कहा, ‘’यह सब ब्रिटिश उपनिवेशवाद की देन है।‘’
’’ब्रिटेन और अमेरिका में भी यही चलन है। यह किस उपनिवेशवाद की देन हो सकती है?”
मैं इसकी आशा करता होता तो या तो ऐसा जवाब न देता, अथवा घर से फर्स्ट एड का किट लेकर अदालत पहुंचा होता। यह बात दूसरी है कि उस किट को छिपा बम समझ कर चेकिंग पर ही धक्का दे कर बाहर कर दिया गया होता और मैं अदालत का सामना ही न कर पाता। मेरी गति क्या थी यह मैं बयान तो नहीं कर सकता पर आप कल्पनाशील हैं तो उसकी कल्पना अवश्य कर सकते हैं।
‘’वकालत के पेशे का इतिहास मालूम है तुम्हें ?”
जब ब्रितानी काल से पीछे इसको संभव ही न मानता था तो इतिहास क्या जानता।
”तुम्हें पता है यह पेशा ऋग्वेद के समय में भी था और हमारी प्राचीन गणसमाजी न्याय’व्यवस्था में भी इसका अस्तित्व था।‘’
मैंने कहना चाहा ‘सर, अभी तक तो आप ऐसे दावों के लिए मेरा उपहास किया करते थे, अब अपनी जगहंसाई क्यों कर रहे हैं ?’ कि तभी अदालत का आदेश सुनाई पड़ा, ‘केस की पूरी तैयारी के साथ कल आना।”