Post – 2016-06-04

अदालत का बहुमूल्‍य समय

‘’अब तुम यह समझने में मेरी मदद करो कि हमारी शिक्षा प्रणाली में क्या कमी है जिसके कारण तुम्हें लगता है जानवर और वन्य जन भी अपनी संतानों को हमसे अधिक अच्छी तरह शिक्षित कर लेते हैं।

‘’एक विडंबना है कि हम जिस भौतिक समृद्धि के लिए प्रयत्न करते हैं, वही मनुष्य को गुलाम या नैतिक रूप में अधिक पतित बनाती है। दुनिया का कोई समाज पूरी तरह स्वतंत्र नहीं है। शिक्षा संस्थाओं का जन्म ही मनुष्य को गुलाम बनाने के लिए हुआ। आदिम समाजों में भी शायद ही कोई हो जो अपनी आदिम पवित्रता की रक्षा कर सका हो। उन पर भी सामाजिक संपत्ति को निजी संपत्ति बना कर दूसरों से अधिक सुखी होने की सभ्य कहे जाने वाले समाज की छाया पड़ी है और उनमें शिक्षा की संस्थाएं भी विकसित हुई हैं। नैसर्गिक शिक्ष उनकी तुलना में पशुओं में अधिक सु‍रक्षित है।‘’

‘’मैं पहले से जानता था कि जो बार बार इतिहास की दुहाई देता है वह पीछे लौटता हुआ उस चरण पर पहुंच जाएगा जहां उसका आदर्श समाज जंगल राज का उदरंभर जत्था बन कर रह जाएगा। उसे हमारी न्याय प्रणाली से अधिक आकर्षक मत्‍स्‍य न्याय या जिसकी लाठी उसकी भैंस का न्याय लगेगा। कहो तुम इंसानियत को खत्म करके हैवानियत को जगह देना चाहते हो और हैवानियत को भी पशुता के आदर्श पर ले जाना चाहते हो। गलत कहा?”

‘’जिस कुर्सी पर आप बैठे हैं उस पर बैठ कर आप गलत कुछ कह ही नहीं सकते, क्योंकि सिंहासन बत्तीसी के न्‍याय से आप गलत कहें तो सही की परिभाषा बदल जाएगी और पहले का सही गलत और पहले का गलत सही सिद्ध होने लगेगा। बस आपके मनोरंजन के लिए एक छोटा निवेदन करना चाहता हूं उसे आपने मान लिया तो वह सच आगे भी सच ही बना रहेगा और न माना तो विडंबना देखिए कि मति आपकी मारी गई और किस्मत मेरी फूटी। इजाजत है?”

‘मति मारी गई के मुहावरे पर कुर्सी कुछ ऐंठी जरूर थी पर अदालत को उसी समय याद आया कि उसे वकील और जज दोनों के अधिकार डेलीगेट किए गए हैं और वह यह तय न कर सकी कि यह मुहावरा किस हैसियत को संबोधित है इसलिए उसने मुस्करा कर कुर्सी की अकड़ ढीली कर दी और हामी में सिर हिलाया।

’’निवेदन केवल यह है कि हमने सभ्‍यता की दिशा में बढ़ते हुए जीवों, जन्तुओं से लगातार सीखा है और इस तरह अपने उन अभावों को प्रयास से या यन्त्रविधान से दूर करके असंभव को संभव बनाया है। आप जानते हैं, हमारा योगाभ्यास सांपो के श्वास निस्वास के बारीक अवलोकन का परिणाम है जिसमें दूसरे पशुओं की अंगचेष्टाशओं के अनुकरण और उससे होने वाले लाभों का समन्य है। हवाई जहाज के डैनों का निर्माण हो, या राडार प्रणाली हो या मनुष्य के लिए असंभव पर कुछ प्राणियों के लिए खतरे से पहले बचने के संकेत को समझने और उससे सुनामी और भूचाल जैसी समस्याओं के पूर्वानुमान का उपाय तलाशना हो हम पशुओ ही नहीें कीड़े मकोड़ों के व्‍यहार की कुछ बातों को उपयोगी पा रहे हैं।

‘’अदालत का समय मूल्य वान है फिर भी उसकी समझ में सुधार उससे भी अधिक जरूरी है इसलिए यह याद दिलाना चाहूंगा कि कठमुल्ले दो तरह के होते हैं। एक वे जो अतीत के किसी शून्यकाल की तलाश करके उसी शून्याकाल से चिपके रहना या अपनी वर्तमान समस्याओं से घबरा कर उसी शून्य काल के आचार-व्यवहार की ओर लौटना चाहते हैं, और दूसरे वे जो अपने आधुनिक ज्ञान से इतने अभिभूत होते हैं कि अतीत की ओर देखना तक नहीं चाहते हैं, देखने वालों को उसी अवस्था को आदर्श मानने वाला, वैसा ही जीवन जीने वाला मान कर उनकी ले दे करना शुरू कर देते हैं। एक तीसरा उपाय जिसे वैज्ञानिक कहा जा सकता है और जो ही विज्ञान की जययात्रा में सबसे उपयोगी रहा है वह है सीखना सबसे जीना अपने आप में, अपने समय में, अपने समाज में और देखना भविष्य की ओर। मेरा भ्रम भी हो सकता है पर मुझे लगा अदालत ने दूसरी श्रेणी के कठमुल्लों की सोच को वैज्ञानिक सोच मान लिया है और इससे भारी अनर्थ संभव है जिसका अदालत पर भी असर पड़ेगा। मैं अपने बचाव के लिए तो यह कह ही रहा हूं, अदालत के बचाव और न्यायप्रणाली के बचाव के लिए ऐसा कहने का दुस्साहस कर रहा हूं, जिसे अदालत दुस्साहस मान बैठी तो दुनिया से सच बोलने वालों की आबादी कम हो जाएगी।‘’

अदालत ने लोकहित में स्वीकृति दी, ‘’अपनी बात प्रमाण, साक्ष्य या नजीर के साथ पेश कीजिए।‘’

‘’जानकारी कम है, हवाई बातें मेरे न चाहते हुए भी हवा में तैरती मुझ तक आ पहुंचती हैं, मेरा मूलधन वे ही हैं। इसलिए मैं एक नजीर से बात शुरू करूंगा जो किसी फैसले में नहीं मिलेगी। माफ करें, मैं यह भी नहीं जानता कि नजीर का मतलब क्या होता है, अन्दाज भिड़ाता हूं कि जो नजर आता हो वह नजारा है और उसकी याद दिलाया जाय और उसके पालन की मांग करते हुए उसे पेश किया जाय तो यह नजीर हुई। गलत हो सकता है पर मैं आज तक सही नहीं, जायज बात कहता आया हूं और उसी की मांग आप से करना चाहता हूं।‘’ अदालत ने सिर को इस तेजी से झटकते हुए अनुमति दी जिसका शब्दों में अनुवाद करें तो होगा, ‘कंबख्त अपनी बात तो जल्दी पूरी कर। यह नहीं जानता कि अदालत का समय कितना कीमती है।

मैंने निवेदन किया, ‘’अभी कुछ दिनों पहले एक विचित्र सूचना आई थी। एक बाघिन थी जो अपने तीन शावकों को अनाथ छोड़ कर मर गई। अब जू के अधिकारियों को इस बात की चिन्ता हुई कि मां के संरक्षण के अभाव में इन तीनों शावकों का पालन कैसे किया जाय। उन्होंने उन्हें पहले दूध आदि पिला कर पाला, मांसाहार की आदत डाली, फिर एक सुरक्षित घेरे में रखने लगे जिसमें कुछ हिरन और बकरियां भी चरने को रख दी जातीं। वे काफी बड़े हो गए, कई बार बकरियों को दबोच कर मार भी डालते पर मार कर छोड़ देते। बहुत लंबा समय लगा जब एक दिन उनमें से एक ने अपने शिकार को चींथना और खाना आरंभ किया जो उसे उससे बहुत पहले सीख जाना था। इस तरह की कई परीक्षाओं से गुजरने के बाद जब उन्हेंं विश्वास हो गया कि अब ये खुले जंगल में जिन्दा रह सकते हैं तब उन्हें एक जंगल में छोड़ा गया।‘’

’’मैंने भी देखा था उसे, पर तुम कहना क्या चाहते हो?”

‘’कहना यह चाहता हूं कि शिक्षा जीवों, जंतुओं को भी उनके माता-पिता या बिरादरी से मिलती है इसलिए शिक्षा के बिना हम जीवित रह ही नहीं सकते।‘’

’’इतना समय बर्वाद किया तुमने यह स्वींकार करने में कि शिक्षा प्रणाली के बिना समाज का काम चल ही नहीं सकता और तुम स्वयं शिक्षा-शास्त्रियों और शिक्षाविदों की लानत मलामत करते रहे।‘’

’’आप का इकबाल बुलंद रखते हुए मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि आपकी समझ कुछ संकरी है। मैं इसके लिए एक और नजीर पेश करने की इजाजत चाहूंगा।‘’

अदालत ने मरे मन से सिर हिलाया, ‘चलो, यह भी सही।‘’

’’मैं जिस पार्क को अपना समझता था उसमें किसी के स्वानप्रेम के कारण कुत्तों को दूध मिलने लगा और कुत्तों का एक दल उस नन्हें से पार्क में जम गया। पालतू कुत्तों को न लाने पर रोक लगा कर सभी कुत्तास्वामियों को मना लिया था कि वे अपने कुत्ते पार्क में न लाएंगे, पर इन सार्वजनिक कुत्तों का क्या करते। एक दिन एक सज्‍जन कुत्ते का एक पिल्ला गोद में उठाए चले आए। पार्क को अपने अधिकार में समझने वाले ये लावारिस कुत्ते यदि किसी दूसरे पालतू कुत्तेे या अपने झुंड से बाहर के किसी आवारा कुत्ते को देख लेते तो वह सार्वकौत्तिक प्रहार होता कि वह बाहर जा कर ही सांस लेता । इस कुत्ते का उन्हो ने विरोध किया ही नहीं।उन्‍होने उसे घूमने दौड़ने को छोड़ दिया। इसी बीच उन लावारिस कुत्तों में से एक इसके पास आया। सूंघने, छूने के नादातीत संचार से पता लगा लिया कि कुत्ते का पिल्ला आदमी के संसर्ग में न आदमी बन पाया है न कुत्ता रह गया है, जब कि कुत्‍ता पालने वाले कुत्तों के कई गुण इस विषय में सचेत होने से पहले ही अपना लेते हैं।

उसने उस पिल्ले पर क्या् जादू फेरा कि वह उसके साथ दौड़ने लगा, दाव पेच सीखने लगा और उस नन्हें पिल्ले के प्रहार पर वह उल्टा हो कर उसे… सच तो यह है कि मैं उसको शब्दों में बांध नहीं पा रहा हूं परन्तु एक अपरिचित स्वजातीय को गुर सिखाते वह कुत्ता जिस उल्‍लास में था उसमें वह पहले कभी दीखा ही न था।‘’

’’तुम्हें समय बर्वाद करने का चस्का पड़ चुका है।‘’

’’मैं यह बता रहा था कि पशु जगत हो या आदिम समाज उनके सभी सदस्य एक तरह की शिक्षा पाते हैं, यदि पता लगे कि कोई उससे वंचित है तो उसे सिखाने का प्रयत्न करते हैं और सभी को स्‍वावलंबी और आत्माभिमानी बनने की शिक्षा देते हैं। केवल अपने को सभ्य कहने वाला मनुष्य ही है जो मनुष्यों को चोरी, जमाखोरी, और चोरों जमाखोरों के लिए उपयोगी गुलाम बनाने की शिक्षा देता है।‘’

’’अदालत का कीमती समय बर्वाद करने का तुम्हें कोई अफसोस नहीं।‘’

”अफसोस तो मुझे था पर इस बात पर नहीं कि मैंने अदालत का बहुमूल्य् समय बर्वाद किया है, अपितु इस बात पर कि अदालत ने मेरी बात ध्यान से नहीं सुनी और उसने जानबूझ कर अपना बहुमूल्य समय बर्वाद किया है।