कविता ही सही
शाम है
मद्धिम उजाला
हवाएं ठहरी हुई हैं!
चकित हूं क्यों
दिशाएं डगमग!
कहां जाउंू
किधर जाउूं ?
या यहीं दुबका रहूं
घड़ियां बिताते!
इसी संशय में मिटा सा घिसटता हूं
भविष्यत की ओर
मारे गेड़ुरी अपनी सुरक्षा में!
28.5.2016
कविता ही सही
शाम है
मद्धिम उजाला
हवाएं ठहरी हुई हैं!
चकित हूं क्यों
दिशाएं डगमग!
कहां जाउंू
किधर जाउूं ?
या यहीं दुबका रहूं
घड़ियां बिताते!
इसी संशय में मिटा सा घिसटता हूं
भविष्यत की ओर
मारे गेड़ुरी अपनी सुरक्षा में!
28.5.2016