Post – 2016-05-26

उनकी बारूद है उनके ही कारखाने की
तोप चलती है मगर बेअसर है क्‍या क‍‍हिए।

“तीन दिन गायब कहां रहे।”

“तुमने प्रतिवादी को ही अपना वकील भी बना दिया और जज भी बना दिया तो इस नई भूमिका की तैयारी तो करनी ही थी। बीच में एक दिन सिक लीव पर भी चला गया। बुढ़ापे का एक मात्र विशेषाधिकार। जब परिजनों का ध्यान खींचना हो तो बीमार पड़ जाओ। अचूक अस्त्र है।”

“ऐसे में खबर कर दिया होता, मैं भी पहुंच गया होता। पड़ोसियों का जुटना शुरू हो जाय तो कद्र आसमान को छूने लगती है।*

“नामुराद तुम यही चाहोगे, क्योंकि तुम्हें पता है, मैं फैसला देने से पहले तुमसे कुछ सवाल भी करूंगा और वे सवाल तुम्हारे गले की फांस सिद्ध हो सकते हैं।”

मैंने उलट कर उस पर ही रख दी, “तुमने इतनी देर कर दी। मैं तो इतने कठोर शब्दों में तुम्हें कुरेदता ही इसलिए रहा हूं कि तुम सवाल करना और जवाब देना सीखो। गालियां देना और तोहमतें लगाना तो गली-मुहल्लेे की औरतें भी तुम लोगों से अधिक अच्छी तरह जानती हैं। उनके तीर बेकार नहीं जाते, तुम्हांरे तोपखाने का भी किसी पर असर ही नहीं होता। तुम्हारी खलिश जरूर मिट जाती है। यह एक लत है, कान खुलनाने या नाखून कुतरने की तरह जो तुम्हारी बेचैनी को तो प्रकट करती है पर तुम्हारी आदत के लिए समर्थन नहीं जुटा पाती। इसके बेअसर होने से जो पहले तुम्हा्रे कीर्तन में समानधर्मा होने की लाचारी में तुम्हारी सुनते भी थे और ‘हां भाई हां’ करते रहते थे, उनकी संख्या तक घटती जा रही है, कभी इस पर ध्यान दिया है? न दिया हो तो आगे से देना। ”