‘‘कुछ उदास लग रहे हो!’’
‘‘तुम उदास नहीं हो क्या?’’
‘‘पारा मई में बरसों बाद इतना उूपर चढ़ा है, बिजली चली जाए तो घर में लगता है किसी ओवेन में तुम्हें रोस्ट किया जा रहा है! लेकिन तुम शायद बेचैनी और उदासी में फर्क न कर सके! बेचैन मैं था जब पारा इतना चढ़ा हुआ था, अब भी परेशान हूँ, पर उदास तो नहीं हूँ।’’
‘‘अब समझ में आया, तुम शब्दों की बाजीगरी से मुझ जैसों को छकाते रहते हो। मुझे पूरा पता है कि तुमने मुझे क्या सोच कर छेड़ा और बहस को किस डगर पर ले जा कर, एकाएक कन्नी काट कर, जो मैं सोचता या उम्मीद करता था, उससे ठीक उल्टी, या अलग, बात करके या विचित्र लगने वाले परिणाम पर पहुंचा कर तुम मुझे और जिसके भी कान में हमारी बात पड़ रही हो उसे चकित करना चाहते हो। जगलरी, या इंटेलेक्चुअल एक्रोबेटिक्स, फितरतबाजी या दिमागी बाजीगरी! इसकी कद्र तो की जा सकती है, इनाम इकराम भी दिए जा सकते है, पर इससे सबक सिर्फ यह लिया जा सकता है कि यह हमारे काम की चीज नहीं है! इसको दुहराने की कोशिश की तो मारे जाओगे। तुम अपने काम के भी नहीं हो, हाँ दूसरों के मनोरंजन के लिए जरूर हो, और उनके सिक्के फेंकने से तुम्हारा गुजर भी हो जाता है, परन्तु यह बताओ मनोरंजन से अधिक तुम्हारे विचारों का कोई उपयोग है?’’
मैं हैरान रह गया यह सोच कर कि इसके पास अपना दिमाग अभी तक बचा हुआ है, जिसका मतलब है मेरा यह सोचना गलत है कि उसने अपना पूरा दिमाग पार्टी के पास गिरवीं रख दिया है, क्योंकि पार्टी अगर सोचना भी चाहे तो इतनी बारीकी से नहीं सोच सकती! सामूहिक चिन्तन में समझदार लोग सोचते रह जाते हैं और इस बीच कोई मूर्ख या उनसे कम समझदार पर गैरजिम्मेदार अपनी तरंग में कुछ कह जाता है और वह झटपट ऐक्शन में बदल जाता है इसलिए न सोचने का कोई लाभ रह जाता है, न सोचने की जरूरत! इसलिए जिन्हें हम सामूहिक चिंतन कहते हैं वह किसी मूर्ख और गैरजिम्मेदार व्यक्ति का फैसला होता है और उसमें पग पग पर अन्तर्विरोध होते हैं।
उसका कथन सही नहीं था परन्तु इतने सलीके और तार्किक रूप में रखा गया था कि वह उसकी पार्टी का निर्देश हो ही नहीं सकता था। अब सचमुच मेरे उदास होने की बारी थी क्योंकि पहली बार मुझे अपने इस सिद्धान्त का खंडन होता दिखाई दे रहा था कि अनुशासनप्रिय पार्टियों से जुड़े लोगों को सदस्य बनाते समय उनका दिमाग निकाल कर फ्रीजबाक्स में रख दिया जाता है और उसकी जगह एक यंत्र िफट कर दिया जाता है जो पार्टी के आदेश ग्रहण करता और उसके आचरण को उसी दायरे में बाँध कर रखता है।
मैंने कहा, ‘‘अब मैं इस बात का कायल हो गया कि तुम कई बार दिमाग से काम ले बैठते हो। बलिदान का यह भी एक रूप है, अन्यथा इसको एक दो बार दुहराने पर तुमको कलंक कर्दम में डुबो कर जीते जी मार दिया जाता है! आज तुमने यह साहस करके दूसरों के लिए एक उदाहरण पेश किया है! बलिदानियों का मैं हृदय से सम्मान करता हूँ।’’
मैंने सोचा था वह खुश होगा, पर वह खीझ गया! ‘‘भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारे बलिदानी! तुम्हें क्या यह पता नहीं कि असम में कांग्रेस का सफाया हो गया!’’
‘‘क्या तुम इतने विक्षिप्त हो गए हो कि बलिदानियों को भी भाड़ में झोंकने को तैयार हो जाओ! यह भी पता नहीं कि जनता की संख्या तुम्हारे काडर से बहुत अधिक है और वह अपने बलिदानियों के सम्मान की रक्षा के लिए तुम्हें तुम्हारे बनाए हुए भाड़ में झोंक सकती है ।’
वह सकपका गया।
‘‘तुम अखबार नहीं पढ़ते! स्वच्छता अभियान के प्रति लोगों की सोच को नहीं जानते! उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया है!’’
‘‘कभी तो गंभीरता से बात किया करो!’’
‘‘कभी तुमको तुम्हारी डिग्रियों और तमगो के कारण लोग समझते थे, सारी बुद्धि तुम्हारे पास है, वे तुम्हारे कहे को मानते थे और तुम उनको नादान समझते थे। उन्हें पता चला तुम किनके हाथों किस भाव पर बिके हुए हो, तो उन्होंने तुमको भी एक गन्दगी मान कर दरकिनार करना आरंभ कर दिया! अब हाल यह है कि जिससे तुम परहेज करने को कहते हो उससे उन्हें अनुराग हो जाता है। यह नयी लहर है, पर असंभव कोनों में पैदा हो चुकी है! यह परिणाम मैं पहले से जानता था। इसका पूर्वानुमान भी किया था, पर तुमने ध्यान नहीं नहीं दिया।’
‘मैंने समझा नहीं।’
‘तुमने एक सीघा नुस्खा निकाल रखा था कि भाजपा के विरुद्ध कोई कुछ भी करे, कुछ भी कहे, वह ठीक है और तुम ऐसों कामों के साथ हो और लोगों ने समझना शुरू कर दिया कि तुम देश का अहित करने वालों के साथ हो। यह समझ जोर पकड़ने वाली है। इसका लाभ उठाने से भाजपा को रोक नहीं सकते। आत्मनिरीक्षण की जरूरत नहीं है अपनी मूर्खताओं की सूची बनाने से अक्ल ठिकाने आ जाएगी ।